रविवार, 23 फ़रवरी 2014

जानें बकरी का दूध कौन-कौन रोगों की दवा है

               

बकरी का दूध बहुत से लोगों को भले ही पसंद न हो लेकिन इसके फायदे बहुत हैं। औषधीय गुणों के कारण यह विशेष गंध वाला होता है। इसे अब आम लोग भी समझने लगे हैं। इसीलिए डेंगू जैसे रोगों के मरीजों के लिए इसकी मांग बढ़ने लगी है।
दिलीप कुमार यादव बकरी के दूध को दोयम दर्जे का समझ जाता है लेकिन यह दूध कई मामलों में औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें कई प्राण रक्षक तत्व तो गाय के दूध से भी ज्यादा होते हैं। दिनों-दिन बढ़ती दूध की मांग के दौर में ग्रामीण अंचल में यह सस्ता और सहज ही मिल जाता है। कहावत जैसा खाए अन्न वैसा रहे मनभी सटीक बैठती है। कारण यह है कि बकरियां जंगल में औषधीय पौधों को ही अपना आहार बनाती हैं और उनके दूध में इसकी सुगंध हो जाती है। इस दूध में औषधीय गुणों की मात्रा भी बहुत होती है। बकरी का दूध मधुर, कसैला, शीतल, ग्राही, हल्का, रक्त-पित्त, अतिसार, क्षय, खांसी एवं ज्वर को नष्ट करने की क्षमता रखता है। यह वैज्ञानिकों द्वारा सत्यापित तथ्य है। बकरी पालन करने वाले लोग भी इसीलिए रोगों का शिकार कम बनते हैं क्योंकि उनका पालन करने के कारण बकरी के दूध से उनका संपर्क बना रहता है।
पिछले सालों में डेंगू बुखार के दौरान बकरी के दूध की उपयोगिता जरूर सिद्ध हुई। लोग बकरी का दूध खोजते नजर आए। रुटीन में यदि बकरी के दूध का सेवन किया जाए तो अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है।
बकरी का दूध गाय के दूध से मिलता-जुलता होता है लेकिन इसमें विटामिन बी 6, बी 12, सी एवं डी की मात्रा कम पाई जाती है। इसमें फोलेट बाइंड करने वाले अवयव की मात्रा ज्यादा होने से फोलिक एसिड नामक आवश्यक विटामिन की बच्चों के शरीर में उपलब्धता कम हो जाती है। लिहाजा एक साल से कम उम्र के बच्चों को बकरी का दूध नहीं पिलाना चाहिए।
बकरी के दूध में मौजूद प्रोटीन गाय, भैंस की तरह जटिल नहीं होता। इसके चलते यह हमारे प्रतिरोधी रक्षा तंत्र पर कोई प्रतिकूल असर नहीं डालता। संयुक्त राज्य अमेरिका में गाय का दूध पीने से कई तरह की एलर्जी के लक्षण बच्चों में देखे जाते हैं। इनमें लाल चकत्ते बनना, पाचन समस्या, एक्जिमा आदि प्रमुख हैं। बकरी का दूध इन सबसे स्वयं बचाता है।
बकरी के दूध में गाय के दूध से दोगुनी मात्रा में स्वास्थ्यवर्धक फैटी एसिड पाए जाते हैं। बकरी के दूध में प्रोटीन के अणु गाय के दूध से भी सूक्ष्म होते हैं। इसके कारण यह दूध कम गरिष्ठ होता है और गंभीर रोगी भी इसे पचा सकता है। गाय का दूध किसी बच्चे के पेट में पचने में जहां आठ घण्टे लेता है, वहीं बकरी का दूध मात्र 20 मिनट में पच जाता है।
जो व्यक्ति लैक्टोज को पचाने की पूर्ण क्षमता नहीं रखते हैं वह बकरी का दूध आसानी से पचा लेते हैं।
बकरी का दूध अपच दूर करता है और आलस्य को मिटाता है। इस दूध में क्षारीय भस्म पाए जाने के कारण आंत्रीय तंत्र में अम्ल नहीं बनाता। थकान, सिर दर्द, मांस पेशियों में खिंचाव, अत्याधिक वजन आदि विकार रक्त, अम्लीयता और आंत्रीय पीएच के स्तर से संबंध रखते हैं। बकरी के दूध से म्यूकस नहीं बनता है। पीने के बाद गले में चिपचिपाहट भी नहीं होती। मानव शरीर के लिए जरूरी सेलेनियम तत्व बकरी के दूध में अन्य पशुओं के दुग्ध से ज्यादा होता है। यह तत्व एण्टीऑक्सीडेंट के अलावा प्रतिरोधी रक्षा तंत्र को उच्च व निमA करने का काम करता है। एचआईवी आदि रोगों में इसे कारगर माना जाता है। इसमें आने वाली विशेष गंध इसके औषधीय गुणों को परिलक्षित करती है।

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Source – KalpatruExpress News Papper

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