झील बन जाओ ! |
एक बार एक
नवयुवक किसी जेन मास्टर के पास पहुंचा .
“ मास्टर , मैं अपनी
ज़िन्दगी से बहुत परेशान हूँ , कृपया इस परेशानी से निकलने का उपाय बताएं !” , युवक बोला .
मास्टर बोले
, “ पानी के
ग्लास में एक मुट्ठी नमक डालो और उसे पीयो .”
युवक ने ऐसा
ही किया .
“ इसका स्वाद
कैसा लगा ?”,
मास्टर
ने पुछा।
“ बहुत ही
खराब … एकदम खारा .” – युवक थूकते
हुए बोला .
दोनों धीरे
-धीरे आगे बढ़ने लगे और थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी एक झील के सामने रुक गए
.
“ चलो , अब इस नमक
को पानी में दाल दो .” , मास्टर ने निर्देश दिया।
युवक ने ऐसा
ही किया .
“ अब इस झील
का पानी पियो .” , मास्टर बोले .
युवक पानी
पीने लगा …,
एक बार फिर
मास्टर ने पूछा ,: “ बताओ इसका स्वाद कैसा है , क्या अभी भी तुम्हे ये खरा लग रहा
है ?”
“नहीं , ये तो मीठा
है , बहुत अच्छा
है ”, युवक बोला .
मास्टर युवक
के बगल में बैठ गए और उसका हाथ थामते हुए बोले , “ जीवन के दुःख बिलकुल नमक की तरह
हैं ; न इससे कम
ना ज्यादा . जीवन में दुःख की मात्र वही रहती है , बिलकुल वही . लेकिन हम कितने दुःख
का स्वाद लेते हैं ये इस पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं .
इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो कि खुद को बड़ा कर लो …ग़्लास मत
बने रहो झील बन जाओ .”
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Note: The inspirational story shared here is not my original
creation, I read/heard this story earlier and am providing a modified
Hindi version of the same.
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