हिन्दू धर्म
में दस यम और दस नियम को आचरण में शामिल किया गया है। नियम ही धर्म है। नियम का
पालन नहीं करने से व्यक्ति अनुशासन खो देता है और जीवन में कई तरह के संकटों से
घिर जाता है। धर्म के नियमों का पालन करने से जीवन में हमेशा सुख और शांति बनी
रहती है। इनका पालन नहीं करने से व्यक्ति चिंताग्रस्त रहकर रोग और शोक को
आमंत्रित कर लेता है।
सत्य बोलना हर
धर्म सत्य बोलना सिखाता है लेकिन कितने लोग हैं, जो इसका पालन करते हैं? मन, वचन और कर्म
से सत्यनिष्ठ रहना, दिए हुए वचनों
को निभाना, प्रियजनों से
कोई गुप्त बात नहीं रखना और उनके सामने झूठ नहीं बोलना ही सत्य नियम का पालन
करना है।
इसका लाभ- सदा
सत्य बोलने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता कायम रहती है। सत्य बोलने से
रिश्ते-नाते भी कायम रहते हैं और व्यक्ति को आत्मिक बल प्राप्त होता रहता है।
आत्मिक बल से आत्मविश्वास बढ़ता है, जो हमारी सफलता का आधार है।
धृति स्थिरता, चरित्र की दृढ़ता एवं ताकत ही धृति कही गई
है।
जीवन में जो
भी क्षेत्र हम चुनते हैं, उसमें उन्नति
एवं विकास के लिए यह जरूरी है कि निरंतर कोशिश करते रहें एवं स्थिर रहें। जीवन
में लक्ष्य होना जरूरी है तभी स्थिरता आती है। लक्ष्यहीन व्यक्ति जीवन खो देता
है।
इसका लाभ-
चरित्र की दृढ़ता से शरीर और मन में स्थिरता आती है। सभी तरह से दृढ़ व्यक्ति
लक्ष्य को भेदने में सक्षम रहता है। संकट या विपरीत परिस्थिति के समय व्यक्ति
संयम से काम लेता है। इस स्थिरता से जीवन के सभी संकटों को दूर किया जा सकता है।
यही सफलता का रहस्य है।
दया यह क्षमा
का विस्तृत रूप है। इसे करुणा भी कहा जाता है।
जो लोग यह
कहते हैं कि दया ही दुख का कारण है, वे दया के अर्थ और महत्व को नहीं समझते। यह हमारे आध्यात्मिक और सांसारिक
विकास के लिए बहुत आवश्यक गुण है।
इसका लाभ- जिस
व्यक्ति में सभी प्राणियों के प्रति दयाभाव है वह स्वयं के प्रति भी दया से भरा
हुआ रहता है। इसी गुण से भगवान प्रसन्न होते हैं। यही गुण-चरित्र से हमारे
आस-पास का माहौल अच्छा बनता है। लोग आपके विषय में अच्छा सोचने लगते हैं।
मिताहार भोजन
का संयम ही मिताहार है। यह जरूरी है कि हम जीने के लिए खाएं, न कि खाने के लिए जिएं। सभी तरह का व्यसन
त्यागकर एक स्वच्छ भोजन का चयन कर नियत समय पर खाएं। स्वस्थ रहकर लंबी उम्र जीना
चाहते हैं तो मिताहार को अपनाएं। होटलों एवं ऐसे स्थानों में जहां हम नहीं जानते
कि खाना किसके द्वारा या कैसे बनाया गया है, वहां न खाना ही उचित है।
इसका लाभ- आज
के दौर में मिताहार की बहुत जरूरत है। अच्छा आहार हमारे शरीर को स्वस्थ बनाए
रखकर ऊर्जा और स्फूर्ति भी बरकरार रखता है। अन्न ही अमृत है और यही जहर बन सकता
है। कार्यक्षमता बढ़ाकर सफल होने के लिए मिताहार अर्थात सात्विक, अच्छा और सुपाच्य आहार जरूरी है।
शौच आंतरिक
एवं बाहरी पवित्रता और स्वच्छता को बनाए रखना ही शौच है। इसका अर्थ है कि हम
अपने शरीर एवं उसके वातावरण को पूर्ण रूप से स्वच्छ रखें। हम मौखिक और मानसिक
रूप से भी स्वच्छ रहें।
इसका लाभ-
वातावरण, शरीर और मन की
स्वच्छता एवं व्यवस्था का हमारे अंतर्मन पर सात्विक प्रभाव पड़ता है। स्वच्छता
से सकारात्मकता और दिव्यता बढ़ती है। यह जीवन को सुंदर बनाने के लिए बहुत जरूरी
है। स्वच्छता से अच्छे भाव और सकारात्मक विचार का विकास होता है और हमें अच्छा
वर्तमान और भविष्य मिलता है।
ह्री पश्चाताप
को ही ह्री कहते हैं। अपने बुरे कर्मो के प्रति पश्चाताप होना जरूरी है। यदि आप
में पश्चाताप की भावना नहीं है तो आप अपनी बुराइयों को बढ़ा रहे हैं। विनम्र
रहना एवं अपने द्वारा की गई भूल एवं अनुपयुक्त व्यवहार के प्रति क्षमा मांगना
जरूरी है। इसका यह मतलब कतई नहीं कि हम पश्चाताप के बोझ तले दबकर अवसाद में चले
जाएं या अफसोस महसूस करें।
इसका लाभ-
पश्चाताप हमें अवसाद और तनाव से बचाता है तथा हममें फिर से नैतिक होने का बल
पैदा करता है।
मंदिर, माता-पिता या स्वयं के समक्ष खड़े होकर भूल
को स्वीकारने से मन और शरीर हल्का हो जाता है।
आस्तिकता
वेदों में आस्था रखने वाले को आस्तिक कहते हैं। माता िपता, गुरू और ईश्वर में निष्ठा एवं विश्वास रखना
भी आस्तिकता है। आस्तिकता हमारे मानसिक द्वंद्व को रोककर शांति प्रदान करती है।
इसका लाभ-
आस्तिकता से मन और मस्तिष्क में जहां सकारात्मकता बढ़ती है वहीं हमारी हर तरह की
मांग की पूर्ति भी होती है। अस्तित्व या ईश्वर से जो भी मांगा जाता है वह तुरंत
ही मिलता है। अस्तित्व के प्रति आस्था रखना जरूरी है।
ईश्वर
प्रार्थना बहुत से लोग पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन सनातन हिन्दू धर्म में ईश्वर या देवी-देवता के लिए संध्यावंदन करने का
निर्देश है। संध्यावंदन में प्रार्थना, स्तुति या ध्यान किया जाता है वह भी प्रात: या शाम को सूर्यास्त के बाद।
इसका लाभ- 10 या 15 मिनट आंख बंद कर ईश्वर या देवी-देवता का ध्यान करने से व्यक्ति ईथर माध्यम
से जुड़कर उक्त शक्ति से जुड़ जाता है। 10 या 15 मिनट के बाद
ही प्रार्थना का वक्त शुरू होता है। फिर यह आप पर निर्भर है कि कब तक आप उक्त
शक्ति का ध्यान करते हैं।
इस ध्यान या
प्रार्थना से संसार की सभी समस्याओं का हल मिल जाता है।
मति बुद्धि को
मति मान सकते हैं। कहते हैं कि जैसी मति वैसी गति। जैसी गति वैसी ही दुर्गति या
सुगति। अच्छी बुद्धि या मति के लिए धर्मग्रंथ और नित्य साधना का पालन करना
चाहिए। किसी प्रामाणिक गुरू के मार्गदर्शन से पुरुषार्थ करके अपनी इच्छा शक्ति एवं
बुद्धि को आध्यात्मिक बनाना ही मति है।
इसका लाभ-
संसार में रहें या संन्यास में, निरंतर अच्छी बातों का अनुसरण करना जरूरी है तभी जीवन को सुंदर बनाकर शांति, सुख और समृद्धि से रहा जा सकता है। हमारे
जीवन की सफलता में हमारी मति का योगदान रहता है।
खराब मति वाले
को अच्छी बातें भी खराब नजर आती हैं और उसकी बुद्धि हमेशा संदेह और शंका से ही
भरी रहती है।
तप मन का
संतुलन बनाए रखना ही तप है। व्रत जब कठिन बन जाता है तो तप का रूप धारण कर लेता
है। निरंतर किसी कार्य के पीछे पड़े रहना भी तप है। निरंतर अभ्यास करना भी तप
है। त्याग करना भी तप है। सभी इंद्रियों को नियंत्रण में रखकर अपने अनुसार चलाना
भी तप है।
उत्साह एवं
प्रसन्नता से व्रत रखना, पूजा करना, पवित्र स्थलों की यात्रा करना, विलासप्रियता एवं फिजूलखर्ची न चाहकर सादगी
से जीवन जीना, इंद्रियों के
संतोष के लिए अपने आपको अंधाधुंध समर्पित न करना भी तप है।
इसका लाभ-
जीवन में कैसी भी दुष्कर परिस्थिति आपके सामने प्रस्तुत हो, तब भी आप दिमागी संतुलन नहीं खो सकते यदि
आप तप के महत्त्व को समझते हैं तो। अनुशासन एवं परिपक्वता से सभी तरह की
परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
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Source – KalpatruExpress News Papper
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