सोमवार, 31 मार्च 2014

कितनी महफूज है इंटरनेट की दुनिया



आठ महीने पहले एडवर्ड स्नोडेन ने यूएस नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी से जुड़ी कुछ गोपनीय जानकारी सार्वजनिक की थी, जिसके बाद से ही तकनीक और खासतौर पर इंटरनेट की दुनिया में कई तरह की चिंताएं सामने आई हैं।
जगजाहिर हुई इस जानकारी से पता चला कि अमरीकी जासूस और उनके ब्रितानी सहयोगी, आम और खास तमाम लोगों के बारे में हर तरह का ब्योरा जुटाने के लिए इसी इंटरनेट का इस्तेमाल करते रहे हैं। इतना ही नहीं, अमरीकी जासूसों ने सोशल मीडिया के जरिए भी लोगों के बारे में वह जानकारी जुटाई जो लोग आमतौर पर किसी से साझ नहीं करना चाहेंगे।
यानी इंटरनेट के ढांचे में एक तरह से सेंध लग चुकी है। जैसे बिग- बैंग सिद्धांत के अनुरूप ब्रrांड का विस्तार हो रहा है, उसी तरह तकनीक के मामले में इंटरनेट की दुनिया भी बहुत फैल चुकी है।
इस फैली हुई दुनिया को राउटर्स, केबल्स, डाटा सेंटर और तमाम दूसरे हार्डवेयर की जरूरत थी जो साल 1994 से वर्ष 2013 के बीच कई गुना बढ़ चुके हैं। इंटरनेट की दुनिया में उन कंपनियों और संगठनों की बड़ी अहम भूमिका है जो उच्च क्षमता वाले फाइबर ऑप्टिक केबल्स के जरिए दुनिया भर में एक जगह से दूसरी जगह तक डाटा पहुंचाने का काम करते हैं। इस मामले में गूगल और अमेजन जैसी कंपनियां अव्वल हैं।
डाटा ट्रांसफर
 इंटरनेट पर हम जो कुछ भी करते हैं, वह सारी जानकारी गूगल या अमेजन जैसी किसी कंपनी के पास दर्ज होती है। मसलन लंदन में रहने वाला कोई विद्यार्थी ब्राजील में रहने वाले अपने किसी मित्र को ई-मेल भेजता है, तो उस ई-मेल में छिपी जानकारी पूरे नेटवर्क से होकर गुजरती है और इसी प्रक्रिया में वह जानकारी संबंधित कंपनी के पास भी हमेशा के लिए महफूज हो जाती है। इसी प्रक्रिया में यह जानकारी सुरक्षा एजेंसियों तक पहुंच जाती है। नवम्बर 2013 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर दी थी कि यूएस नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी ने लेवल-3 केबल्स के जरिए गूगल और याहू तक में सेंध लगाई होगी। एक बयान में कंपनी ने बताया था, हम जिस भी मुल्क में काम करते हैं, वहां के कानून से बंधे होते हैं। कई मामलों में कानून हमें किसी भी तरह की जानकारी साझ करने से मना करता है और इस बारे में चर्चा करना हमारे लिए अपराध है।
समुद्र के नीचे बिछी केबल्स की निगरानी
 स्नोडेन ने जो दस्तावेज सार्वजनिक किए थे, उन्हें बीते साल जून में ब्रितानी अखबार गार्डियन ने छापा था।
इससे संकेत मिलता है कि अमरीका और ब्रिटेन के पास उच्च तकनीक वाले जासूसी कार्यक्रम हैं जो इंटरनेट के माध्यम से आने-जाने वाली हर जानकारी को पकड़ सकते हैं।
इसमें समुद्र के नीचे बिछी वे केबल्स भी शामिल हैं जिनके जरिए आपके-हमारे मोबाइल फोन में दर्ज हर ब्योरा एक जगह से दूसरी जगह पहुंचता है। सार्वजनिक हो चुके गोपनीय दस्तावेज बताते हैं कि अमरीकी साङोदार ब्रिटेन का जीसीएचक्यू हर दिन 60 करोड़ संदेशों की निगरानी करता था। इंटरनेट और मोबाइल फोन से जुड़ी इस जानकारी को खंगालने के इरादे से 30 दिन तक कथित रूप से सहेजकर भी रखा जाता था।
हालांकि जीसीएचक्यू ने ऐसी किसी हरकत से इंकार किया है।
अंदाजा लगाना मुश्किल
यूएस नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी ने इस तरह कितनी और भी दूसरी जानकारी जुटाई, इसका सटीक अनुमान लगाना कठिन है। वहीं इस हरकत की वैधानिकता पर भी राय बंटी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि चरमपंथी तंत्र को तहस-नहस करने के लिए इस तरह की जानकारी काफी अहम साबित हो सकती है। वहीं कुछ यह भी कहते हैं कि इससे आम लोगों की आजादी खतरे में पड़ जाती है।
डाटा पॉवर
वैसे स्नोडेन ने जो कार्य किया है, उससे सरकारी स्तर पर और बड़े स्तर के संगठनों में इंटरनेट के इस्तेमाल के तौर-तरीकों में बदलाव आ सकता है।
पत्रकार ग्लेन ग्रीनवाल्ड के लिए स्नोडेन के दस्तावेजों का विेषण करने वाले सुरक्षा विशेषज्ञ ब्रूस श्नायर कहते हैं, डाटा, पावर यानी प्रभाव है और डाटा ही मनी यानी पैसा है।ब्रूस श्नायर ने कहा, निगरानी से कहीं बड़ा सवाल यह है कि इस डेटा पर किसका नियंत्रण है। सूचना युग में यह प्रमुख सवाल है। लेकिन तकनीकी जानकारों का कहना है कि इससे ऑनलाइन काम करना बहुत मुश्किल हो जाएगा और साथ ही दुनियाभर में लोगों से जुड़ना भी कठिन हो जाएगा। (साभार:बीबीसी)
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करनाचाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:facingverity@gmail.com.पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Source – KalpatruExpress News Papper

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें