story #1 बदलाव -
एक लड़का हर sunday सुबह सुबह तालाब के किनारे jogging करने जाता था. और हमेशा एक बूढी महिला को
देखता था. जो किनारे पर बनी बेंच पर बैठकर तालाब के छोटे छोटे कछुओ को उठाकर उनकी
पीठ साफ़ किया करती थी.. एक ऐसे ही sunday को जब वो लड़का वहाँ से गुज़रा तो उसी महिला को
देखा.. इस बार वो उनके पास गया और पूछा.. “नमस्ते,
मैं हमेशा
आपको कछुओ की पीठ साफ़ करते हुए देखता हूँ.. आप ऐसा क्यों करती है?” महिला ने पहले तो उसे देखा, और फिर शांत मुस्कराहट के साथ कहा- ” मैं हर रविवार को यहाँ आती हूँ.. और शान्ति
का सुख लेते हुए.. इन छोटे छोटे दोस्तों के कवच साफ़ करती हूँ.. .. दरअसल, इनकी पीठ पर जो काई, और दूसरी चीज़े चिपकी रह जाती है.. उनसे इनके
कवच की गर्मी पैदा करने की क्षमता कम पड़ जाती है. और तैरने में भी इन्हें तकलीफ
देती है.. कुछ सालो में इनके कवच कमजोर भी पड़ जाते है.. इसलिए मैं यहाँ बैठकर
इन्हें साफ़ करती हूँ..”
लड़का थोडा
हैरान था.. वो बोला ”
ये है तो
बहुत ही अच्छी बात है.. और मैं समझ सकता हूँ की ये एक अच्छा काम है पर.. क्या आपको
नहीं लगता की दुनिया भर में न जाने ऐसे कितने कछुए होगे. और शायद उनकी मदद करने के
लिए कोई नहीं है.. आपको नहीं लगता की आप अपने वक़्त का बेहतर इस्तेमाल कर सकती
हैं..”
महिला ने
कहा,
” मुझे इसे
करने में ख़ुशी मिलती है.. दुनिया में बदलाव पैदा करने का ये मेरा तरीका है.” लड़का और भी हैरान हुआ.. बोला “इससे भला दुनिया में कैसा बदलाव आएगा?” महिला ने अपने हाथ में रखे कछुए की तरफ इशारा
करते हुए कहा.. ”
भले ही पूरी
दुनिया में इससे कोई बदलाव न आये.. पर इस छोटे से कछुए से पूछो, मेरे इस कार्य से इसके जीवन में कितना बड़ा
बदलाव आएगा”सबक: यदि आप सहायता करने के काबिल है. तो करें. हो सकता है आपके द्वारा की हुई छोटी
सी मदद पूरी दुनिया में बदलाव की लहर न ला पाए. पर वो एक व्यक्ति, जिसकी आपने हेल्प की है, उसकी दुनिया आप खुशहाल कर सकते है.
story #2 ग्लास का भार
एक बार एक साइकोलॉजी की प्रोफेसर class में आई. और एक glass उठा लिया.. सबने सोचा की अब वो वहीँ पुराना ‘ग्लास आधा ख़ाली है या आधा भरा’ वाला lesson पढ़ाएगी. पर उसके बदले उन्होंने छात्रों से
पूछा की उनके हाथ में जो glass
है उसका वजन
कितना है?
सभी छात्रों
ने अपने अपने अनुसार उत्तर दिए.. किसी ने 50 gram कहा, तो किसी ने 100
ग्राम.. पर
महिला प्रोफेसर ने जवाब दिया: ” मेरे ख्याल से इस glass
का exact weight matter नहीं करता.. बल्कि ये matter करता है की मैं इसे कितनी देर तक hold करके रखती हूँ. अगर मैं इसे केवल 1-2 minute के लिए उठा के रखती हूँ तो ये मुझे सामान्य
सा लगेगा.. पर यदि मैं इसे एक घंटा उठा के रखती हूँ तो मेरा हाथ दुखने लगेगा.. पर
यदि मैं इसे पूरा दिन उठा के रखूं.. तो यक़ीनन मेरा हाथ सुन्न पड़ जायेगा.. थोड़ी देर
के लिए paralyse
हो जायेगा..
मतलब की इसका थोडा सा भार भी, यदि मैं ज्यादा देर तक उठा की रखूं. तो मुझे तकलीफ हो सकती है..” सभी इस उत्तर से सहमत थे. वो आगे बोली, ” इसी तरह अगर, एक छोटी सी problem
की चिंता
मैं करती रहूँ.. तो पहले वो कोई ख़ास भार नहीं देगी मन पर.. पर यदि मैं उसी के बारे
में सोचती रहूँ.. उसी से परेशान रहूँ.. उसी पर stress करती रहूँ.. तो वो छोटी से परेशानी भी मुझे
बहुत बड़ी तकलीफ दे सकती है.. मैं डिप्रेशन का शिकार हो सकती हूँ.. मैं दूसरा
कुछ भी कार्य करने में असमर्थ हो जाउंगी.. यही तो हमारी actual परेशानी है..” सबक: आप अपने परेशानियो को मन से जाने दे, ये बहुत जरुरी है. आपकी परेशानियां आपके मन में रहे या न रहे ये आप decide कर सकते है. किसी भी problem का इतना stress न लें.. की आपके स्वास्थ को दिक्कत हो..
story #3 ग़लत विश्वास
एक experiment के दौरान, एक marine
biologist ने एक बड़े
से टैंक में एक shark
मछली को
रखा.. और उसके साथ ही कुछ छोटी मछलियों को भी उसी टैंक में डालदिया.. जैसा की हम expect कर सकते है की shark ने तुरंत ही उन सारी मछलियों का सफाया कर
दिया.. इसके बाद marine
biologist ने tank में एक बहुत ही मजबूत fiberglass लगा दिया.. और टैंक के दो हिस्से कर दिए.. एक
हिस्से में shark
थी. और
दुसरे हिस्से में उसने फिर से छोटी मछलियों को डाला.. जैसे ही shark की नज़र उन पर पड़ी.. वो उन्हें खाने के लिए
लपकी. पर इस बार बीच में fiberglass
होने की वजह
से shark
उससे जा
टकराई.. एक बार टकराने के बाद भी shark ने हार नहीं मानी.. वो हर कुछ minute के अंतराल के बाद उस दिशा में बढती.. जहा
मछलिया थी.. और टकरा के फिर पलट आती.. इस दौरान छोटी मछलिया आसानी से और आज़ादी से
तैर रही थी.. और कुछ एक डेढ़ घंटे के बाद shark ने हार मान ली. ये experiment पुरे हफ़्ते भर में कई बार किया गया.. धीरे
धीरे shark
के हमले कम
होते गए.. और वो ज्यादा जोर भी नहीं लगाती थी. बार बार कोशिश करते
रहने से,
पर फिर भी
मछलियों तक न पहुँचपाने से शार्क ने थक कर हार मान ली. और प्रयास करना छोड़ दिया.
कुछ दिनों के बाद marine
biologist ने बिच में
मौजूद fiberglass
को हटा
दिया. पर इसके बाद भी shark
ने कभी हमला
नहीं किया. shark
को पिछले
कुछ हफ्तों में विश्वास हो गया था की वो उन मछलियों तक नहीं पहुँच सकती. और दूसरी
छोटी मछलिया बिना किसी नुकसान के तैरने लगी.. shark उन तक पहुँचने के कोशिश भी नहीं करती थी. सबक: हममे से कई लोग,
हार और
निराशा को experience
करने के बाद, give up कर देते है. वो ये सोचते है की क्योंकि वो
पहले कई बार हार चुके है,
और सफल नहीं
हुए है. इसलिए वे आगे भी ऐसे ही रहेगे.. ऐसा मत कीजिये.
ये तीनो छोटी छोटी hindi short stories ने मुझे motivation और सीख प्रदान की थी.. उम्मीद है
आपको भी ये रास आई होगी.
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Source – Hindi Soch Website
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