अभिनय के क्षेत्र में अपने लिए एक विशिष्ट स्थान सुनिश्चित करने के बाद अभिनेता गोविंदा ने राजनीति में भी सक्रिय रूप से योगदान दिया. कॉमेडी फिल्मों से लेकर गंभीर भूमिकाएं करने वाले गोविंदा का जन्म 21 दिसंबर, 1963 को मुंबई में हुआ था. गोविंदा के पिता अरुण अहुजा विभाजन से पहले पंजाब के गुजरांवाला में रहते थे. अनुभवी फिल्म निर्माता महबूब खान के कहने पर अरुण अहुजा मुंबई आ गए थे. 1937 में मुंबई आने के बाद महबूब खान ने उन्हें अपनी फिल्म एक ही रास्तामें अभिनय करने का अवसर दिया. अरुण अहुजा के अभिनय को औरतफिल्म में पहचान मिली. गोविंदा की माता नजीम मुसलमान थीं. धर्म परिवर्तन करने के बाद उन्होंने अपना नाम निर्मला देवी रख लिया था. निर्मला देवी भी फिल्म अदाकारा थीं. फिल्म सवेरा में एक दूसरे के साथ काम करने के बाद अरुण अहुजा और निर्मला देवी ने वर्ष 1941 में विवाह कर लिया था. अरुण अहुजा ने अपने जीवन में एक फिल्म का निर्माण किया जिसकी वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा. आर्थिक हालत खराब होने के कारण अरुण अहुजा का स्वास्थ्य भी बदतर हो गया. अहुजा परिवार को अपना आलीशान घर छोड़कर छोटे से घर में रहना पड़ा जहां गोविंदा का जन्म हुआ. छ: भाई-बहनों में सबसे छोटे गोविंदा का पारिवारिक नामचीची है. जिसका पंजाबी में अर्थ होता है सबसे छोटी अंगुली. गोविंदा ने महाराष्ट्र के वर्तक कॉलेज से कॉमर्स विषय के साथ स्नातक की उपाधि ग्रहण की लेकिन अंग्रेजी अच्छी ना होने के कारण उन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली. गोविंदा के परिवार में उनकी पत्नी सुनीता, बेटी नर्मदा, जो स्वयं एक उभरती हुई अदाकारा हैं और बेटा यशवर्धन हैं. गोविंदा के परिवार के अधिकांश सदस्य बॉलिवुड समेत एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का हिस्सा हैं.
गोविंदा का फिल्मी सफर
पिता के कहने और नौकरी ना मिलने के कारण गोविंदा ने फिल्मों में रुचि लेना प्रारंभ किया. गोविंदा के मामा ने उन्हें सबसे पहले फिल्म तन-बदन में अभिनय का अवसर दिया. इसके बाद वर्ष 1985 में उन्होंने लव 86 में काम किया. जुलाई आते-आते गोविंदा 40 फिल्मों के लिए चयनित हो चुके थे. गोविंदा की पहली प्रदर्शित फिल्म इलजाम (1986) थी. जो उस वर्ष की सबसे बड़ी हिट साबित हुई थी. इस फिल्म ने गोविंदा को ना सिर्फ एक अभिनेता बल्कि एक बेहतरीन डांसर के रूप में भी स्थापित कर दिया था. इसके बाद गोविंदा के पास फिल्मों के प्रस्ताव लगातार आते रहे.आंखें, शोला और शबनम, अनाड़ी नं-1, हसीना मान जाएगी, राजा बाबू, कुली नं-1, साजन चले ससुराल, हीरो नं.-1, दीवाना-मस्ताना, पार्टनर आदि उनके कॅरियर की बेहतरीन फिल्में समझी जाती हैं. वर्ष 2010 में प्रदर्शित हुई फिल्म रावण में भी गोविंदा ने अपनी अदाकारी के बल पर प्रशंसा बटोरी.
गोविंदा का राजनैतिक कॅरियर
वर्ष 2004 में कांग्रेस के टिकट पर गोविंदा ने मुंबई से लोकसभा चुनाव जीता. चुनावी प्रचार के दौरान गोविंदा ने मुंबई के लोगों के लिए प्रवास, स्वास्थ्य और ज्ञान को अपने एजेंडे का मुख्य हिस्सा बताया. लोकसभा सदस्य बनने के बाद गोविंदा ने अपने एज़ेंडे के अनुरूप कोई कार्य नहीं किया. शुरूआती दस महीने में तो उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त स्थानीय विकास और निर्माण के लिए धनराशि का उपयोग तक नहीं किया. यह बात मीडिया में आने के बाद गोविंदा ने स्थानीय विकास के प्रति ध्यान आकर्षित किया.
लोकसभा सदस्य के रूप में उनका यह कार्यकाल हमेशा ही विवादों से घिरा रहा. कभी झूठे आयु प्रमाण पत्रों के कारण तो कभी अपने उपेक्षित दृष्टिकोण के कारण, गोविंदा आलोचनाओं में उलझते रहे. एक निजी चैनल द्वारा हुए स्टिंग ऑपरेशन में जब शक्ति कपूर को दोषी पाया गया, तब भी गोविंदा शक्ति कपूर के समर्थन में रहे. डांस बार को बंद करवाने जैसी कार्यवाही का भी गोविंदा ने खूब विरोध किया. वह राजनीति में सक्रिय और अपेक्षित भागीदारी नहीं निभा पाए परिणामस्वरूप वर्ष 2008 में उन्होंने अपने एक्टिंग कॅरियर पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए राजनीति को अलविदा कह दिया.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें