रविवार, 21 सितंबर 2014

Courageous Freedom Fighter Sukhdev Biography In Hindi

sukhdev singhस्वतंत्रता सेनानी सुखदेव का जीवन परिचय
प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी सुखदेव, जिन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में एक बेहद महत्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभाई, का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना, पंजाब के अपने पैतृक घर में हुआ था. युवावस्था में ही अपने प्राणों का बलिदान करने वाले सुखदेव का वास्तविक नाम सुखदेव थापर था. बचपन से ही सुखदेव ने भारतीय लोगों पर अत्याचार होते देखा था यही कारण है कि किशोरावस्था में पहुंचते ही वह अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिए चलाई जा रही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे.


सुखदेव थापर की क्रांतिकारी गतिविधियां

सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे. इस संस्था के सदस्य के तौर पर सुखदेव ने पंजाब और उत्तर भारत के अनेक शहरों में क्रांतिकारी गुटों का संगठन किया. एक समर्पित कार्यकर्ता होने के कारण सुखदेव कभी-कभार लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ने वाले भारतीयों को भारत के शानदार इतिहास और स्वाधीनता की महत्ता से जुड़े पाठ पढ़ाया करते थे. अपने कुछ प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारी मित्रों की सहायता से सुखदेव ने लाहौर मेंनौजवान भारत सभा का गठन किया. इस सभा का मुख्य कार्य क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन और ज्यादा से ज्यादा युवाओं को इसमें भागीदार बनाना था.

अंग्रेजी शासन काल में जेल में बंद भारतीय और अंग्रेजी कैदियों के साथ बहुत भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जाता था. जहां अंग्रेज अपराधियों को स्वच्छ खाना और वर्दी दी जाती थी. उनके रहने-सहने की व्यवस्था पर पूरा ध्यान दिया जाता था. वहीं दूसरी ओर भारतीय लोगों को पहनने के लिए गंदे कपड़े मिलते थे. उनके रसोई घर में चूहों और अन्य जीवों का आक्रमण रहता था. इसके अलावा समाचार पत्र या पढ़ने के लिए कोई किताब भी उन्हें प्रदान नहीं की जाती थी. ऐसे हालतों से त्रस्त होकर वर्ष 1929 में जतिन दास ने जेल में रहते हुए भूख हड़ताल का आह्वान किया. इस हड़ताल में सुखदेव समेत काफी सारे कैदियों ने भाग लिया.

18 दिसंबर, 1928 को लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए सुखदेव, राजगुरू और भगत सिंह ने उन पर हमला करने वाले मुख्य पुलिस अधिकारी स्कॉट पर गोली चलाई लेकिन यह गोली किसी अन्य पुलिस अफसर सांडर्स को जा लगी. गोली चलाने के तुरंत बाद तीनों लोग वहां से भाग निकले और किसी तरह पुलिस से बचते रहे. 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंकने के बाद सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरू को हिरासत में ले लिया गया. केस की सुनवाई के दौरान उन पर सांडर्स की हत्या का आरोप भी साबित हो गया और तीनों को फांसी की सजा दी गई.



23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू तीनों को फांसी दे दी गई. यहां तक कि परिवार वालों को बिना बताए और सबकी नजरों से बचाते हुए सतलुज नदी के किनारे तीनों का दाह संस्कार कर दिया गया. मात्र 24 वर्ष की आयु में देश के लिए अपने प्राण त्यागने वाले सुखदेव थापर को अपने साहस, कर्तव्य-परायणता और देशभक्ति के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

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