शुक्रवार, 5 जून 2015

Moving global environmental decay

गतिमान विश्व में क्षय होता पर्यावरण


जैसा की आप सभी जानते हैं कि 5 जून को पूरे भारतवर्ष में विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है| प्रदुषण से क्षय होते पर्यावरण की गंभीरता को देखते हुए हम आपके समक्ष यह लेख प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि आप सभी इस विषय पर कुछ देर सोचें और और क्षय होती सृष्टि को अपने नविन विचारों से सुरक्षित करने का प्रयास करें| 

World Environment Day

संयुक्त राष्ट्र ने अपने एक पत्र में लिखा कि जिस तेजी से विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है, उससे यह तो पक्का है कि 2050 में खाने-पीने, रहने आदि की बड़ी मारा-मारी होगी। इसलिये हमारी जिम्मेदारी बनती है कि प्रकृति के संसाधनों का अगर हम दोहन कर रहे हैं, तो उनकी रक्षा और संरक्षण करना भी हमारा कर्तव्य है। 

दूसरी सबसे बड़ी चिंता है ग्लोबल वॉर्मिंग की। इसकी वजह से हमारे पर्यावरण को बड़ा नुकसान हो रहा है। ग्लेश‍ियर्स के पिघलने की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। अगर हम पर्यावरण की रक्षा नहीं कर पाये तो दुनिया भर के हजारों द्वीप डूब जायेंगे। 

विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री ने लगाए पौधे 

विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने निवास 7 रेसकोर्स पर पौधा लगाया। उनके साथ पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर थे। आज प्रधानमंत्री पूरे देश में पौधा लगाने के अभियान की शुरुआत करने जा रहे हैं।
narendra modi

वहीं पर्यावरण मंत्रालय आज शहरी वन योजना की शुरुआत करेगा, जिसके तहत राज्यों से वैसे जंगलों के विकास के लिए योजनाएं बनाने को कहा जाएगा, जिनकी अनदेखी हो रही है। लोगों से अपने परिवार के सदस्यों की याद में पौधा लगाने को प्रोत्साहित किया जाएगा।

इटली में होगा सम्मेलन
इस साल संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और संयुक्त राष्ट्र महासभा के सहयोग से इटली में एक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें विभिन्न देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। ‘सेवन बिलियन ड्रीम्स। वन प्लेनेट। कंज्यूम विद केयर’ इस साल की थीम है। दुनियाभर के लोगों को प्राकृतिक संसाधनों के रख-रखाव और इस्तेमाल की दर को कंट्रोल करने के लिए जागरूक किया जाएगा, ताकि वे स्वस्थ पर्यावरण के साथ पृथ्वी के विकास के सपने को साकार कर सकें।

छोटी-छोटी मगर उपयोगी बातें 
  • प्लास्टिक, पेपर, ई-कचरे के लिए बने अलग-अलग कूड़ेदान में कूड़ा डालो ताकि वह आसानी से रीसाइकल के लिए जा सके।
  • निजी वाहन की बजाय कार-पूलिंग, गाडियों, बस या ट्रेन का उपयोग करो। 
  • कम दूरी के लिए साइकिल चलाना पर्यावरण और सेहत के लिहाज से बेहतर है।
  • पानी बचाने के लिए लो-फ्लशिंग सिस्टम लगवाएं, जिससे शौचालय में पानी कम खर्च हो। 
  • शॉवर से नहाने की बजाय बाल्टी से नहाओ। 
  • ब्रश करते समय पानी का नल बंद रखो। हाथ धोने में भी पानी धीरे चलाओ।
  • नदी, तालाब जैसे जल स्त्रोतों के पास कूड़ा मत डालो। 
  • घर की छत पर या बाहर आंगन में टब रखकर बारिश का पानी जमा कर सकते हो, जिसे फिल्टर करके इस्तेमाल करो।
दिल्ली बचाओ!
जानकार कहते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर काफी तेजी से बढ़ रहा है। सबसे अधिक प्रदूषण हवा में है। सड़क पर उड़ती धूल, उद्योग, वाहनों का धुआं इतना अधिक है कि अब सुबह के समय ताजी हवा में भी प्रदूषण पाया गया है। यहां बड़ी संख्या में निकलने वाले कूड़े को रीसाइकिल करना भी काफी मुश्किल भरा काम है। इसके अलावा ध्वनि और जल प्रदूषण भी चरम पर है। यहां की बदतर आबोहवा के कारण ही दिल्ली को 2014 के एशियन गेम्स के होस्ट बनने की दौड़ से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।

क्या करें!!! 

  • पढ़ने की टेबल खिड़की के सामने रखो ताकि दिन में नेचुरल लाइट से पढ़ सको।  
  • जब भी कमरे से बाहर जाओ तो पंखा और लाइट बंद कर दो।
  • अपने दोस्तों को पेपर वाले बधाई-कार्ड की जगह ईमेल कार्ड भेजो। 
  • बाजार जाते कपड़े की एक थैली जरूर ले जाएँ। प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल न करें| 
  • पौधे लगाओ, क्योंकि ये पौधे ही हमारे पर्यावरण को बचा सकते हैं।

कूड़े को बनो बिजली उपयोगी 
10 लाख की आबादी वाले महाराष्ट्र के सोलापुर शहर में रोजाना 5,000 टन कचरा निकलता है| पहले यह कूड़ा पुणे-हैदराबाद हाइवे पर करीब 13 एकड़ के दायरे में गंधाता रहता था| लेकिन अब कूड़े का ढेर गायब है और बीच में कूड़े से बिजली बनाने वाली कंपनी ऑरगेनिक रिसाइकिलिंग सिस्टम (ओआरएस) का बिजलीघर दिखाई देता है|
नगर निगम के ट्रक बिजलीघर के अंदर कचरा डालकर चले जाते हैं| और इसके बाद यह कचरा बिजली, ऑर्गेनिक खाद और सडक़ों में इस्तेमाल के लिए तैयार प्लास्टिक में बदल जाता है| यहां से 3 मेगावाट बिजली ग्रिड को सप्लाई कर दी जाती है| यह काम पिछले तीन साल से सफलता पूर्वक चल रहा है| तीन साल का यह समय महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले कूड़े से बिजली बनाने की कई परियोजनाएं चार-छह महीने चलकर बंद हो चुकी हैं| यहां कूड़े से बिजली पैदा करने के साथ-साथ खाद और सड़कों के लिए प्लास्टिक मैटीरियल भी बनाया जाता है

सोलापुर की तर्ज पर ही महाराष्ट्र में पुणे और कर्नाटक में बेंगलुरु ने भी इसी टेक्नोलॉजी से कूड़े से बिजली बनाने के संयंत्रों को मंजूरी दे दी है| बेंगलुरु में 10 मेगावाट का और पुणे में 7 मेगावाट का कूड़े से बिजली बनाने वाला संयंत्र लगाने का काम शुरू हो रहा है| उधर 40 साल से कूड़े से बिजली बनाने का संघर्ष कर रही दिल्ली को भी अब राह मिलती नजर आ रही है| यहां जिंदल सॉ कंपनी ने कूड़े से बिजली बनाने काम शरू कर दिया है| वाराणसी जैसे शहर इस तरह के प्रयोगों को अपना सकते हैं क्योंकि वाराणसी में हाल ही में कूड़े से बिजली बनाने का एक प्रयास नाकाम हो चुका है|

देसी टेक्नोलॉजी का कमाल
दरअसल यह टेक्नोलॉजी कुछ-कुछ वैसी ही है, जैसे मनुष्य का पाचन तंत्र होता है| बिजली बनाने के अलावा जो स्लरी बचती है, उससे ऑर्गेनिक कंपोस्ट बन जाता है| कंपनी इसे खाद बनाने वाली कंपनियों को बेचकर अलग से पैसा कमा रही है| वहीं प्लास्टिक कचरा रोड इंडस्ट्री को बेच दिया जाता है|

सरकार भी कर रही मदद
कूड़े से बिजली बनाने वाली कंपनियों पर भार न पड़े इसलिए केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (सीइआरसी) इस तरह के बिजलीघर शुरू होने से पहले ही सुनिश्चित कर देता है कि बिजलीघर से अपेक्षाकृत महंगे दाम पर बिजली खरीदी जाएगी|
एक तरह से बिजली तो बाइ प्रोडक्ट है| इसीलिए इन कंपनियों को यह सहूलियत दी जा रही है.’’ लेकिन रोशनी की किरण के बीच लोगों को यह याद रखना होगा कि दिल्ली जैसे शहरों ने पहले से जो कूड़े के पहाड़ खड़े कर लिए हैं, वे अब भी खत्म नहीं किए जा सकते, क्योंकि वहां का कूड़ा पत्थर बन चुका है. इन पहाड़ों के लिए दिल्ली नगर निगम की वही स्कीम ठीक है जिसमें इन्हें ढककर हरा-भरा बनाया जा रहा है| हां, यह पहल इतना सुनिश्चित जरूर करेगी कि दिल्ली जैसे शहरों में कूड़े के नए पहाड़ न बनें|

इस लेख की समाप्ति के साथ हम सभी यह शपथ लें की हम कम से कम अपने आसपास के क्षेत्र को हरा भरा रखेंगे| बदलाव किसी एक से नहीं आता सबके साथ से आता है परन्तु शुरुआत किसी एक को ही करनी पढ़ती है|

एक बढ़ें, सभी बढ़ें!!! 
आओ पौधें लगाएं, पृथ्वी बचाएं!!!

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