रविवार, 30 मार्च 2014

कैलाश मानसरोवर : एक साहसिक तीर्थयात्रा



सभी तीर्थ करने के बाद कैलाश मानसरोवर का तीर्थ करना हिंदू धर्म के अलावा जैन, बौद्ध और अन्य धर्म के श्रद्धालुओं में लोकप्रिय है। यह बहुत ही साहसिक तीर्थयात्रा है, जिसकी शुरुआत सितंबर में की जाती है। उत्तराखंड तिब्बत में होने से लगभग दो महीने में यह यात्रा पूरी होती है।
परिक्रमा का है महत्त्व
कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। ल्हासा चू और झोंग चू के बीच पर्वत है, जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति शिवलिंग की तरह है। इसकी परिक्रमा का काफी महत्त्व बताया गया है। मान्यता है कि जो इसकी 108 परिक्रमा पूरी करते हैं, उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है।
पुराना है इतिहास
कैलाश (तीर्थ) हिमालय के तिब्बत में स्थित एक तीर्थ है जिसे रजतगिरि भी कहते हैं। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार शिव और ब्रrा आदि देवगण,रावण, भस्मासुर आदि ने यहां तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अजरुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी।
जैन धर्म में भी उल्लेख-
 जैन धर्म में भी इस स्थान का महत्त्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते हैं। कहा जाता है कि प्रथम र्तीथकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था।
बौद्ध साहित्य में मानसरोवर का उल्लेख अनवतप्त के रूप में हुआ है। उसे पृथ्वी पर स्थित स्वर्ग कहा गया है।
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Source – KalpatruExpress News Papper







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