गुप्तकाल की विरासत दशावतार मंदिर
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भौगोलिक और
सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद बुंदेलखंड में जो एकता और समरसता है, उसके कारण यह क्षेत्र अपने आप में सबसे
अनूठा बन पड़ता है। अनेक शासकों और वंशों के दीर्घ शासन का इतिहास होने के
बावजूद बुंदेलखंड की अपनी अलग ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत है। भारत के
गौरवशाली इतिहास में भी बुंदेलखंड की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आज हम आपको
बुंदेलखंड के एक छोटे से हिस्से ललितपुर और वहां के कुछ ऐतिहासिक स्थलों के बारे
में बता रहे हैं:
ललितपुर उत्तर
प्रदेश राज्य का प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध एक शहर है। यह उत्तर में झंसी, दक्षिण में सागर, पूर्व में मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर एवं शिवपुरी तथा पश्चिम गुना से सटा
हुआ है। बेतवा, धसन और जमनी
यहां की प्रमुख नदियां हैं। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में देवगढ़, नीलकंठेश्ववर त्रिमूर्ति, रंछोरजी, माताटीला बांध और महावीर स्वामी अभ्यारण
विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस जिले की स्थापना सत्रहवीं शताब्दी में बुंदेल
राजपूतों द्वारा की गई थी।
देवगढ़ ललितपुर से 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देवगढ़ एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में जाना जाता
है। यह जगह बेतवा नदी के तट पर स्थित है। इस जगह पर गुप्त, गुर्जर, प्रतिहार, गोंड, मुगल, बुंदेल और मराठों के वंश के कई ऐतिहासिक स्मारक और किले आज भी मौजूद हैं।
इसके अलावा यहां कई हिन्दू और जैन मंदिर भी स्थित हैं। देवगढ़ स्थित दशावतार
मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर की वास्तुकला उत्कृष्ट है। पहले इस
मंदिर को उत्तर भारत के पंचय} मंदिर के नाम से जाना जाता था। यहां के देवगढ़ किले के भीतर 31 जैन मंदिर हैं।
इन सभी
मंदिरों में सबसे सुंदर मंदिर जैन र्तीथकर शांतिनाथ का मंदिर है। इन मंदिरों की
सजावट चंदेल राजाओं ने हिन्दू चिन्हों से की जो कि बेहद खूबसूरत लगते हैं। इसके
अलावा मंदिर की दीवारों पर प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत और रामायण के चित्र भी बने
हुए हैं। यहां घूमने के लिए सबसे उचित समय सितम्बर से मई है।
माताटीला बांध-
माताटीला बांध का निर्माण 1958 ई. में किया गया था। देवगढ़ से 93 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जगह लगभग बीस
वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। यहां पर काफी संख्या में छोटे-छोटे
पर्वत हैं, जो इस जगह की
खूबसूरती को और अधिक बढ़ाते हैं। यहां घूमने के लिये उचित समय सितम्बर से मई है।
दशावतार मंदिर-
कला और पुरातत्व का वह बेशकीमती नमूना है, जिसकी हर कृति और शिलालेख गुप्तकाल की
आखिरी विरासत है।
यह विश्व का
इकलौता मंदिर है, जहां भगवान
विष्णु के दशावतारों को एक ही मंदिर में पिरोया गया है। इसी वजह से इसे दशावतार
पुकारा गया। दशावतार मंदिर को इसलिए भी श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि यहां रामायण और महाभारत की देव
प्रतिमाओं का अनूठा संगम है।
मूर्तियों में
जहां द्रौपदी और पांडव एक साथ दर्शाए गए हैं, वहीं हाथी की पुकार पर सब कुछ छोड़ विष्णु आगमन प्रतिमा का भी हर भाव खुद
में नायाब है।
विशेषज्ञों के
मुताबिक, जो पंच ललित
कलाएं हैं, जिनके आधार पर
हमारी संपूर्ण कलाएं समाहित की जाती हैं, उन सभी कलाओं का यहां की मूर्तियों में दर्शन मिलता है। यहां की मूर्तियों
में भारतीय दर्शन के सभी प्राचीन धार्मिक चिन्हों- हाथी, शंख पुष्प, कमल आदि का भी समावेश किया गया है, जो देश के दूसरे हिस्सों की शिल्पकृतियों में नहीं मिलता। कई मूर्ति
शिल्पकारों का तो यहां तक कहना है कि देवगढ़ में हिंदुस्तान की सर्वश्रेष्ठ कला
का नमूना देखने को मिलता है।
इतिहासकारों
के मुताबिक, पुरातात्विक
महत्त्व के हिसाब से जो वैष्णव कला से संबंधित मूर्ति शिल्प हैं उसके चंद मंदिर
ही विश्व में बचे हैं जो अंकोरवाट, जावा, सुमात्रा और
इंडोनेशिया में हैं।
यहां की
मूर्तियों में सबसे लोकप्रिय गजेंद्र की मोक्ष मुद्रा इतनी वास्तविक और सजीव है
कि उसे देखते ही पता चलता है कि भगवान विष्णु बहुत ही हड़बड़ी में आए हैं।
उन्होंने पादुकाएं भी नहीं पहनी हैं। नंगे पैर हैं और ऐसे भाग रहे हैं जैसे किसी
आपात स्थिति में जा रहे हों। इसके अलावा जिस हाथी का उद्धार करने विष्णु साक्षात
आए, उसकी मुद्रा
भी बेहद अहम है।
हाथी को देखने
से लगता है कि वह मृतप्राय स्थिति में है और उसे भगवान विष्णु के अलावा कोई
उद्धारक नहीं दिखाई दे रहा। उसके चेहरे पर पीड़ा की जो रेखाएं हैं उसे मूर्ति
शिल्प के जरिये इतने वास्तविक तरीके से उकेरा गया है कि उसे देखकर प्रतीत होता
है कि यह मूर्ति न होकर साक्षात हाथी खड़ा हो गया हो।
इसके अलावा
शेषसाही प्रतिमा पर अगर ध्यान दें तो पाएंगे कि जो एक व्यक्ति शयन की स्थिति में
होता है तो बहुत ही आरामदेह मुद्रा में होता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह
सारी चिंताओं से मुक्त होकर शयन कर रहा है। इसी तर्ज पर भगवान विष्णु के चेहरे
के जो भाव मूर्ति शिल्पकार ने उकेरे हंै उसमें ऐसा लग रहा है कि बिल्कुल आराम की
मुद्रा में भगवान हैं और लक्ष्मी जी चरण दबा रही हंै।
आज की
मूर्तियों में यह खासियत देखने को नहीं मिलती, क्योंकि मुगलकाल से जो मूर्तिकला का क्षरण शुरू हुआ, उसके बाद मूर्ति शिल्प में न वह हुनर रह
गया है और न वह कौशल रह गया है, और न ही वह परंपरा जीवित रह पाई जो हमारे पास ईसा से पहले 2000-2500 सालों से चली आ रही थी। उसका स्थान
चित्रकला ने लेना शुरू कर दिया।
ललितपुर से इन
मंदिरों की दूरी मात्र 100 और 150 किलोमीटर है। चंदेरी में भी विदेशी
पर्यटकों की संख्या अब बढ़ रही है। मात्र 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांची पर पूरी
दुनिया के बौद्ध धर्मावलंबी स्तूप देखने आते हैं।
बुंदेलखंड के
ललितपुर जनपद में स्थित देवगढ़ का दशावतार मंदिर गुप्तकाल की बची-खुची धरोहरों
में से एक है। दाम्पत्य प्रेम के साथ देव प्रतिमाओं की अनोखी मुद्रा वाली यहां
की कला-कृतियां शिल्पकला की बेजोड़ विरासत मानी जाती हैं।
लेकिन, कई शताब्दियों की शिल्पकला का यह गढ़ और
ऐतिहासिक मंदिर इन दिनों पर्यटन विभाग की उपेक्षा ङोलने के कारण थोड़ा मलिन पड़
गया है।
महावीर स्वामी
अभ्यारण्य –
ललितपुर स्थित
महावीर स्वामी अभ्यारण्य की स्थापना 1977 ई. में हुई थी। यह अभ्यारण्य 5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
यहां पक्षियों की कई प्रजातियां देखी जा सकती हैं। कई जानवर जैसे तेंदुआ, नीलगाय, साम्भर, नीली बैल, लंगूर और बंदर आदि भी देखे जा सकते हैं।
यहां घूमने के लिए सबसे सही समय नवम्बर से अप्रैल है। इसके अतिरिक्त यहां वन्य
विभाग द्वारा रहने के लिए रेस्ट हाउस की सुविधा भी उपलब्ध है।
नीलकंठेश्वर
त्रिमूर्ति –
नीलकंठेश्वर
मंदिर ललितपुर के दक्षिण से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। घने जंगलों के मध्य स्थित शिव त्रिमूर्ति
मंदिर चंदेल शासन के समय का है।
इस मंदिर के
प्रवेश द्वार के ठीक सामने परम शिव त्रिमूर्ति स्थित है। शिव त्रिमूर्ति में एक
मुखलिंग स्थित है। इस मुखलिंग की ऊंचाई 77 सेंटीमीटर और व्यास 1 फीट 30 सेंटीमीटर है।
रणछोरजी –
यह जगह बेतवा
नदी के तट पर स्थित ठोरा से लगभग 4- 5 किलोमीटर की दूरी पर है। त्रिमूर्ति मंदिर
के समीप यहां भगवान विष्णु और देवी माता की बेहतरीन मूर्तियां स्थापित हैं। इसके
अलावा यहां प्राचीन समय के कई मंदिर स्थित हैं।
कुछ समय पहले
यह जगह सघन जंगलों से घिरी हुई थी।
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Source –
KalpatruExpress News Papper
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OnlineEducationalSite.Com
मंगलवार, 5 अगस्त 2014
Dashavtar Temple - Complete Guide (Travel, History) In Hindi
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