आपाधापी के इस
युग में हर व्यक्ति तनावग्रस्त है। खुशी की तलाश में लोग जी-तोड़ मेहनत कर रहे
हैं लेकिन खुशी उन्हें नसीब नहीं हो रही है। अधिक धन कमाने वाले लोग धन संभालने
के तनाव में आराम की नींद नहीं सो पाते हैं और कम कमाने वाले लोग अधिक धन कमाने
की होड़ में नहीं सो पाते हैं। इस तनावग्रस्त जीवन में खुशी का आगाज कैसे हो, इस विषय पर दिल्ली स्थित जी.बी.पन्त
हॉस्पिटल के कार्डियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मोहित दयाल गुप्ता
ने लखनऊ स्थित सीएमएस स्कूल में आयोजित सेमिनार में तनावग्रस्त जिंदगी से मुक्ति
पर चर्चा की। उन्होंने कई किस्से कहानियों के जरिए लोगों को तनावमुक्त रहने के
नुस्खे बताए। रिया तुलसियानी की रिपोर्ट..
कार्यक्रम की
शुरुआत डॉ. मोहित गुप्ता ने एक कहानी से की। उन्होंने बताया, ‘एक बार पेंसिल बनाने वाले ने पेंसिल से कहा, मैं तुम्हारे अंदर तीन शक्तियां भरूंगा
जिससे हमेशा तुम्हारी पहचान होगी। पहली, तुम जहां भी चलोगी अपनी अमिट छाप छोड़ोगी। दूसरी, जिंदगी में तुम्हे कई बार छीला जाएगा जिससे
तुम्हें बहुत कष्ट होगा।
लेकिन, उस कष्ट के बाद तुम्हारी लिखावट बहुत सुंदर
हो जाएगी। तीसरा, तुम्हारी
पहचान बाहरी सुंदरता से नहीं बल्कि आंतरिक सुंदरता से होगी’। यह कहानी सुनाने का तात्पर्य यह था कि
मनुष्य को भी पेंसिल की तरह बनना चाहिए जो कष्ट सहने के बावजूद अंदरूनी सुंदरता
पर ध्यान दे। जहां भी जाए अपनी छाप छोड़े। शास्त्रों में लिखा है कि मनुष्य की
पहचान उसके धन और शानो-शौकत से नहीं बल्कि उसके विचारों और व्यवहार से है। आज हम
जिन वैल्यूज की बात करते हैं लोग उन्हें खो चुके हैं।
आगे वह बताते
हैं कि तनावमुक्त होने के लिए सबसे पहले जरूरी है व्यक्ति अपने जीवन के मूल्यों
को पहचाने।
कोई भी कार्य
करे लेकिन अपने मूल्यों से समझोता न करे।
आजकल आलम यह
है कि हर सुबह सबकी जिंदगी का ‘एक्सीलेटर’ ताकत की गोली ‘बी कॉम्पलेक्स’ से शुरू होता है और रात को नींद की गोली ‘एलप्रेक्स’ से ‘ब्रेक’ लग जाता है। सोचने वाली बात है, क्या हम इस दुनिया में सिर्फ धन कमाने और
तनावग्रस्त रहने के लिए आए थे। कभी किसी शायर ने भी कहा था, ‘आए थे बिना लिबास के, एक कफन के लिए पूरी जिंदगी सब्र करना पड़ा।’ हमारे पास सबकुछ है लेकिन प्यार खत्म हो
चुका है। हम अपने आप से भी प्यार नहीं करना चाहते हैं।
जिस शांति की
हम परिकल्पना करते हैं वह शांति लुप्त हो चुकी है। समय इतना खराब हो चुका है कि
एक गरीब व्यक्ति भोजन के लिए तरसता है हम सैकड़ों रुपये रोजाना एसएमएस में खत्म
करते हैं। व्यक्ति के अंदर से संवेदनाएं खत्म हो चुकी हैं। जिंदगी में खोखलापन आ
चुका है। स्मार्ट फोन, लैपटॉप और
इंटरनेट से हमारी जिंदगी हाईटेक तो जरूर हुई है लेकिन हाईटच खत्म हो गया है।
हमारे अंदर
अहंकार इतना भर चुका है कि उस अहंकार के वश हम गलतियां करते जाते हैं। एक बार एक
बहुत बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट की अचानक मृत्यु हो गयी। सारा काम उसके बेटे की
जिम्मेदारी पर आ गया।
बेटे को काम
की कोई जानकारी नहीं थी। वह ऑफिस पहुंचा तो एक बड़ी संख्या में खड़े कर्मचारियों
ने उसका स्वागत किया। उसे मन ही मन अहंकार की भावना आई और तनाव भी हुआ कि उसे
काम की कोई जानकारी नहीं है। फिर उसने मन में सोचा, ‘इन लोगों को पता न चले कि मुङो काम नहीं
आता इसलिए मैं अपने आपको व्यस्त दिखाऊंगा और कुछ दिन तक किसी से मिलूंगा नहीं।’ वह अपने केबिन में जाकर बैठा ही था कि
दरवाजा खटका। उसने उस व्यक्ति को अंदर बुला लिया और 15 मिनट तक फोन पर बात करता रहा। फोन रखकर
पूछा कि बताइए जनाब, ‘हम आपकी क्या
सेवा कर सकते हैं।’ उस व्यक्ति ने
कहा, ‘आपके ऑफिस का
फोन खराब है, ठीक करने आया
हूं।’ यह सुनकर वह
व्यक्ति (बॉस) शर्म से लाल हो गया।
कार्यशाला को
आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं, कहा जाता है कि ग्लोबल व्ॉार्मिग हो गयी है लेकिन मेरे अनुसार वॉर्मिग
पर्यावरण में नहीं बल्कि हमारे आचरण में हो गयी है। कहते हैं दिल को गरम और मन
को ठंडा होना चाहिए लेकिन अब दिल ठंडा और मन गरम हो चुका है। जिस बात को दिल से
सोचना चाहिए, उसे दिमाग से
और जिसे दिमाग से सोचना चाहिए, उसे दिल से सोचते हैं। इसीलिए कई बार गलत फैसलों के चलते तनाव हो जाता है।
हर व्यक्ति के मस्तिष्क में आधा किलो का दिमाग होता है उसे इस्तेमाल करना चाहिए।
हमेशा तनाव में समय बिताने के बजाय हल्के रहकर जो करना चाहते हैं वह करें। किसी
ने कहा है, ‘हर जज्बात को
जुबा नहीं मिलती/ हर आरजू को दुआ नहीं मिलती/ मुस्कुराहट बनाए रखो तो दुनिया
आपके साथ है/ आंसुओं को तो आंखों में भी पनाह नहीं मिलती।’
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Source –
KalpatruExpress News Papper
|
OnlineEducationalSite.Com
सोमवार, 4 अगस्त 2014
..आंसुओं को आंखों में भी पनाह नहीं मिलती
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