रविवार, 6 अप्रैल 2014

करें सूरजमुखी की खेती



छेती आलू के खेतों में सूरजमुखी की खेती की जा सकती है। यूं तो इसकी खेती साल में रबी, खरीफ एवं जायद तीनों मौसमों में होती है लेकिन जायद सीजन में रोग संक्रमण कम होता है और उपज अच्छी मिलती है। इसकी खेती सभी तरह की जमीन में होती है लेकिन ज्यादा भुरभुरी मिट्टी को इसके लिए उपयुक्त नहीं माना जाता।
बुवाई के लिए फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत तक किसान इसकी बुवाई करते हैं। लेकिन देरी से बुवाई करने पर जुलाई में बरसात शुरू होने और फसल में फूल की अवस्था होने के कारण नुकसान होने की संभावना रहती है। बुवाई के समय जमीन में बीज चार से पांच सेण्टीमीटर गहरे डालने चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेण्टीमीटर रखनी चाहिए। बुवाई के एक पखवाड़े बाद पौधों की दूरी को ठीक किया जाता है। हर लाइन में पौधे से पौधे के बीच की दूरी 15 सेण्टीमीटर रहनी चाहिए। अन्य सघन पौधों को सावधानी पूर्वक उखाड़ देना चाहिए। 10 मार्च तक बुवाई हर हालत में पूरी कर लेनी चाहिए।
बीज दर एक हेक्टेयर के लिए 12 से 15 किलोग्राम रहती है। हाइब्रिड किस्मों का बीज 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ही डाला जाता है। बुवाई के पहले 10 दानों को भीगी बोरी में अंकुरित करके देख लेना चाहिए। यदि सात दिनों में ही कल्ले निकलें तो बीज की मात्रा बढ़ा लेनी चाहिए। आलू वाले खेतों में उर्वरक का प्रयोग कम करें । विशेषज्ञ 80- 60-40 किलोग्राम की दर से नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की बुवाई के समय संस्तुति करते हैं। नत्रजन की आधी मात्रा डालनी चाहिए। बाकी उर्वरक पूरे डाले जाते हैं। यदि मिल सके तो 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम या फिर 10 किलोग्राम सल्फर व इतना ही भुना हुआ चूना मिलाकर खेत में डालना चाहिए। अच्छी फसल के लिए जायद की फसल में चार से पांच बार सिंचाई की आवश्यक्ता होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए यांत्रिक विधियों को प्रयोग में लाएं।
आलू की तरह इसकी फसल में भी मिट्टी चढ़ाई जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इसका फूल काफी भारी होता है। मेंड़ों पर 15 सेण्टीमीटर मिट्टी न चढ़ाने से पौधों के गिरने का भय रहता है।
इसकी अच्छी फसल के लिए जरूरी है कि फसल में परसेंचन कराया जाए। यह मधुमक्खियों के माध्यम से आसानी से हो सकता है। अन्यथा की दशा में मुलायम कपड़े से फूल पर आए परागकणों को आपस में मिलाना पड़ता है।
प अच्छी उपज के लिए जायद की फसल में चार से पांच बार सिंचाई की आवश्यक्ता होती है।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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