रविवार, 6 अप्रैल 2014

जमीन, किसान को समृद्धि दे मूंग की खेती



गेहूं के खेत खाली होने वाले हैं। सरसों की कटाई शुरू हो चुकी है। इन खेतों में दलहनी मूंग की खेती बेहद लाभकारी हो सकती है। इससे जमीन की उपज क्षमता में इजाफे के साथ पोषक दाल भी मिल जाती है। अहम बात यह है कि इसमें लागत बेहद कम आती है।
दलहनी फसलों में मूंग की बहुमुखी भूमिका है। इसमें प्रोटीन अधिक मात्रा में पाई जाती है, जो कि स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। मूंग की फसल से फलियों की तुड़ाई करने के बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा देने से हरी खाद का काम करती है।
इसकी खेती समूचे प्रदेश में की जाती है।
इसकी खेती खरीफ एवं जायद दोनों मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। खेती हेतु समुचित जल निकास वाली दोमट तथा बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन जायद में मूंग की खेती में अधिक सिंचाई करने की आवश्यकता होती है।
किस्में-
 जायद में उत्पादन हेतु पन्त मूंग, नरेन्द्र मूंग, मालवीय जाग्रति, सम्राट मूंग, जनप्रिया, मेहा, मालवीय ज्योति, पूसा संस्थान की मूंग की किस्में उपयुक्त हैं।
इनमें से कई किस्में ऐसी हैं जो 60 दिन में पक जाती हैं। कुछ प्रजातियां ऐसी हैं, जो खरीफ और जायद दोनों में उत्पादन देती हैं जैसे पन्त मूंग , नरेन्द्र मूंग, मालवीय ज्योति, सम्राट, मेहा, मालवीय जाग्रति आदि प्रजातियां दोनों मौसम में उगाई जा सकती हैं।
खेत की तैयारी-
 खेत की पहली जुताई हैरों या मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए।
तत्पश्चात दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को अच्छी तरह भुरभुरा बना लेना चहिये। आखिरी जुताई में पाटा लगाना अति आवश्यक है, जिससे खेत में नमी अधिक समय तक बनी रह सके। ट्रैक्टर, पावर टिलर, रोटावेटर या अन्य आधुनिक यन्त्र से खेत की तैयारी शीघ्र की जा सकती है।
बुवाई का समय-
 बुवाई जायद में 10 मार्च से 10 अप्रैल तक हल के पीछे कूंडो में करनी चाहिए। कूंड से कूंड की दूरी 25 से 30 सेण्टीमीटर रखनी चाहिए। बीज की बुवाई कूंड में 4 से 5 सेण्टीमीटर गहराई में करनी चाहिए, जिससे कि गर्मी में जमाव अच्छा हो सके। जायद में या गर्मी की फसल में बुवाई के पश्चात हल्का पाटा लगाना अति आवश्यक है।
मूंग की बुवाई में बीज दर-
 जायद में 15 से 18 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। इसका बीज शोधन 25 ग्राम थीरम अथवा 2 ग्राम थीरम, 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज शोधित करने के बाद मूंग को राइजोवियम कल्चर के 1 पैकेट से 10 किलोग्राम बीज का उपचार करना चाहिए जिससे कि जमाव और अच्छा हो सके।
उर्वरक प्रबन्धन-
 उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियो के अनुसार ही करना चाहिए फिर भी 10 से 15 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश की जगह सल्फर प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए। इन सभी की पूर्ण मात्रा बुवाई के समय कूड़ों में बीज से 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे देना चाहिए। इससे अच्छी पैदावार मिलती है।
सिंचाई प्रबन्धन-
 मूंग में सिंचाई भूमि की किस्म, तापक्रम हवाओं की तीव्रता पर निर्भर करती है। जायद की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद और बाद में हर 10 से 15 दिन के अंतराल करते रहना चाहिए जिससे हमें अच्छी पैदावार मिल सके।
1-खर-पतवार नियंत्रण-
 पहली सिंचाई के 30 से 35 दिन के बाद ओट आने पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ-साथ वायु का संचार होता है, जो मूलग्रंथियों में क्रियाशील जीवाणु द्वारा वायुमंडलीय नत्रजन एकत्रित करने में सहायक होती है। खरपतवार का रासायनिक नियंत्रण जैसे की पेंडामेथालिन 30 ईसी की 33 लीटर अथवा एलाकोलोर 50 ईसी 3 लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 2 से 3 दिन के अन्दर जमाव से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
कीट एवं रोग-
 मूंग में प्राय: पीला चित्रवर्ण मोजेक रोग लगता है रोग के विषाणु सफेद मक्खी द्वारा फैलते हैं। इसकी रोकथाम इस प्रकार करनी चाहिए जैसे कि समय से बुवाई करना अति आवश्यक है दूसरा मोजेक अवरोधी प्रजातियां का प्रयोग बुवाई में करना चाहिए। तीसरा मोजेक वाले पौधे को सावधानी से उखाड़ कर नष्ट देना चाहिए और रसायन का प्रयोग करने में डाईमेथोएट 30 ईसी 1 लीटर प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि रोग हमारी फसल पर प्रभाव नहीं डालते हैं।
इन सभी सावाधानियों को बरतने के बाद जायद में 10-12 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है।
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Source – KalpatruExpress News Papper









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