बात अगस्त 2013 की है। करीब एक महीने से मुझे बुखार आ रहा था। मेरी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और करीब चार महीने अगस्त से नंवबर तक बिस्तर से उठ नहीं पाई। मैं पूरे पांच महीने तक पढ़ नहीं सकी। छठे महीने में जब स्कूल पहुंची तो मैं बहुत घबराई हुई थी, क्योंकि कोर्स में बहुत ज्यादा पिछड़ चुकी थी। मैं अपने सर के पास जाकर रोने लगी और कहने लगी कि मैं इस साल बोर्ड की परीक्षा नहीं दे पाऊंगी। मेरा एक साल बेकार हो जाएगा। लेकिन मेरे सर ने मुझे ढाढस बंधाया और खूब मेहनत करने की सलाह दी। मेरे मम्मी-पापा ने भी मेरा हौसला बढ़ाया।
आखिरकार
मैंने पढ़ाई शुरू कर दी। इसमें मेरे प्रिंसिपल सर, मैथ्स टीचर,
मेरे पैरेंट्स और मेरी दादी ने मेरा हौसला तो बढ़ाया ही, उन्होंने मदद भी की। सबकी सलाह पर मैंने हू-ब-हू अमल किया। पूरा कोर्स
पढ़ने की बजाय मेन-मेन पॉइंट्स पर फोकस किया। मेरे पैरेंट्स ने कोचिंग लगा दी।
पापा गेस पेपर्स लेकर आए, जिनकी मदद से मैंने खूब प्रैक्टिस
की। इस बीच मम्मी मेरा पूरा ख्याल रखती थीं।
जनवरी-फरवरी, दो महीनों में मैंने कठिन परिश्रम किया और मार्च में दसवीं बोर्ड की
परीक्षा दी। मेरे पेपर अच्छे हुए और परिणाम 80.16 परसेंट
रहा। सचमुच, मेहनत करना खाली कभी नहीं जाता।
(वैष्णवी अवस्थी, नीलगांव,सीतापुर,
यूपी)
Courtesy- www.jagran.com
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