शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

Motivational Story In hindi

मुश्किल था डांसर से शूटर तक का सफर : रचना गोविल
                        

कुछ कर दिखाने की ललक ही सफलता की राहें आसान करती है। अगर निश्चय पक्का हो तो रास्ते भी पलकें बिछाए हमारा इंतजार करते हैं। जरूरी है अपने हुनर को पहचानना और उस राह पर चलना।
खासकर महिलाएं इस बात का ध्यान रखें कि अपने उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार का समझोता न करें। महिलाएं अधिक जिम्मेदारी उठाने के कारण अपने भविष्य के विषय में नहीं सोच पाती हैं। हर काम की योजना बनाएं और समय का खास ध्यान रखें।
अगर दिन का पहला काम देर से शुरू किया तो हर काम में देरी होगी और अन्त में काम अधूरे रह जाएंगे। काम न करने के बहाने हजार हैं लेकिन करने का सिर्फ एक ही सिद्धांत है करना है
यह कहना है भारतीय खेल प्राधिकरण की क्षेत्रीय निदेशक रचना गोविल का जिन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए दिन- दूनी, रात-चौगुनी मेहनत की। पिता डॉ. एस.सी. गुप्ता का खेलकूद में सहयोग न होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर 12 पदक जीतने वाली, लखनऊ में पली -बढ़ीं 53 वर्षीया रचना बताती हैं कि उन्होंने हमेशा नंगे पैरों से लम्बी दौडों़ की बाजी जीती।
अभ्यास के लिए भी वह सड़कों पर नंगे पैर दौड़ीं, पैरों में अक्सर छाले भी पड़े, दर्द से कराहना भी पड़ा लेकिन उन पर ध्यान दिए बगैर अपना अभ्यास जारी रखा।
एक समय ऐसा आया कि पैरों के तलवे इतने मजबूत हो चुके थे कि छोटे-छोटे कंकड़ों के चुभने पर पता ही नहीं चलता था। मैं दिनचर्या में समय की बहुत पाबंद थी। मां पुष्पा प्रकाश बहुत बीमार रहती थीं, दिन भर काम की व्यस्तता थी इसलिए सुबह चार बजे उठकर माता- पिता के लिए दलिया बनाती थी फिर पुरुषों के पहनावे में, ताकि कोई अकेली लड़की देख कोई छेड़छाड़ का प्रयास न करे, अभ्यास के लिए अंधेरे में ही निकल पड़ती थी। मेरी गाड़ी की आवाज पड़ोस के बच्चों के लिए 4:30 बजे के अलार्म की तरह काम करती थी।
उस वक्त स्पोर्टस् में बहुत कम लड़कियां थीं जिससे अभ्यास में बहुत दिक्कत होती थी। अकेली लड़की देखकर छेड़खानी से भी लोग नहीं चूकते थे। बहुत आश्चर्य होता था जब शॉर्टस् पहने हुए कोई लड़की सड़क पर दौड़ती हुई नजर आती थी।
कई बार पुरुष मित्र के साथ भी जाती थी। यह देखकर मोहल्ले की औरतों ने मेरी मां को बहुत भड़काया, ‘लड़की बिगड़ रही है’, लेकिन मेरी मां को मुझ पर पूरा भरोसा था। उन्होंने मुङो कभी नहीं रोका। बल्कि यही शिक्षा दी किलोग तो बोलते रहेंगे, मैं उनकी बातों के बजाय अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करूं । मां के इसी विश्वास के कारण मैं आगे बढ़ती रही और सन् 1979 से 1985 तक राष्ट्रीय स्तर पर हुई लंबी दौड़ प्रतियोगिताओं में चार रजत और पांच कांस्य पदक हासिल किए। लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक और मदुरै के अन्ना मलई विश्वविद्यालय से पर्सनल मैनेजमेंट एण्ड इंडस्ट्रियल रिलेशनशिप में परास्नातक की डिग्री प्राप्त रचना, मणिपुरी नृत्य में माहिर थीं लेकिन स्कूल प्रतियोगिताओं में अक्सर विजेता होने के कारण उन्होंने नृत्य छोड़ स्पोर्टस् को अपना करियर चुना। राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के बाद सन् 1987 में स्पोर्ट्स को अलविदा कहा। फिर विवाह के बंधन में बंधी और सन् 1997 में सात वर्षीय बेटे प्रखर वेल कुलश्रेष्ठ को शूटिंग सिखाना शुरू किया। प्रखर को राइफल चलाने में कठिनाई आने के कारण उन्होंने खुद उस पर हाथ आजमाया।
रचना बताती हैं कि मैंने प्रखर को शिक्षा दी कि कोई भी काम बिना मेहनत के नहीं होता लेकिन कहने के बाद लगा कि पहले खुद चलाकर देखूं कि क्या कठिनाई आती है। तब मैंने पहली बार राइफल उठाई और मैं खुद शूटिंग की मुरीद हो गई। मित्र से राइफल उधार लेकर एक साल तक रोजाना एक घंटा कड़ा अभ्यास किया और सन् 1998 में चंडीगढ़ में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 10 एमटी एयर पिस्टल से (381/400) में स्वर्ण पदक जीता और साथ ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी तोड़ा। यह सिलसिला चलता रहा। सन् 1998 से 2003 तक कई और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर चार स्वर्ण और तीन रजत पदक जीते। वह बताती हैं कि कई साल अभ्यास में न रहने के बाद पति पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ के सहयोग से सन् 2007 में छह महीने के अभ्यास के बाद फिर से शूटिंग शुरू की। फिर सन् 2008 में तीन विश्व कप प्रतियोगिता में विजेता रहीं।
रचना पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने 47 वर्ष की उम्र में शूटिंग में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा और तीन बार विश्व कप प्रतियोगिता में भाग लिया। इसके अतिरिक्त रचना सन् 1980-83 तक तीन बार राज्य स्तर पर एथलेटिक टीम की कैप्टन भी रह चुकी हैं।
काम करने की इच्छा हो लेकिन संकल्प शक्ति कमजोर हो तो सफलता आधी-अधूरी हाथ लगती है। काम करने की जिद ही सफलता का राज है। ऐसा ही एक उदाहरण हैं, सन् 2000 में अजरुन पुरस्कार प्राप्त , भारतीय खेल प्राधिकरण की क्षेत्रीय निदेशक रचना गोविल, जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बावजूद चुनौतियों को स्वीकार किया और मनचाहा मुकाम हासिल किया। मणिपुरी नृत्य में अपना करियर बनाने की चाहत रखने वाली रचना ने नृत्य छोड़ मैराथन में जान लगाई और लगभग राष्ट्रीय स्तर पर 12 पदक अपनी झोली में किए। यही नहीं बहुमुखी प्रतिभा की धनी रचना ने निशानेबाजी में भी कई पदक हासिल किए और राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी तोड़ा।

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Source – KalpatruExpress News Papper

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