शनिवार, 31 मई 2014

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर विशेष-



पुरातन समय में भारतीय घरों में मेहमान के स्वागत में तंबाकू पेश करने की परिपाटी रही है। देहाती इलाकों में तमाम पचड़े और विवाद सामूहिक हुक्के के सामने निपटाए जाते हैं। खाप पंचायतें भी अपनी गुड़गुड़ के साथ जहर उगलती रही हैं। अमेरिका की कई जनजातियों के अनुष्ठानों में आज भी चार-पांच वनस्पतियों में तंबाकू की भेंट भी अर्पित की जाती है। किन्तु, जब हर साल 60 लाख लोग तंबाकू जनित बीमारियों से दम तोड़ रहे हों, तब इस परिपाटी को यदि अभी अलविदा नहीं कहा तो कल तक बहुत देर होने की संभावना है।
तंबाकू से जुड़े खतरों के प्रति आगाह करने और इसके सेवन पर अंकुश लगाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और इसकी सहयोगी संस्थाओं द्वारा 1987 से प्रतिवर्ष 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस साल की थीम है- तंबाकू पर टैक्स बढ़ाएं। संगठन का कहना है कि टैक्स बढ़ने से चीजें महंगी होंगी और बड़ी संख्या में लोग अपनी जेब सलामत रखने के लिये उससे अवश्य पीछा छुड़ा लेंगे। दरअसल सरकार द्वारा चलाए गए अभियानों का असर तो हो रहा है मगर उसकी गति बेहद धीमी है क्योंकि प्रभावशाली तंबाकू कंपनियों के हथकंडों के समक्ष तंबाकू पर रोक संबंधी कार्यवाहियां नाकाम हो रही हैं। ऐसे में एक सशक्त जन आंदोलन से ही उम्मीद की जा सकती है।
समय के साथ तंबाकू सेवन का रूप भी बदला है। आज तंबाकू का सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, चिलम आदि विविध रूपों में सेवन इस कदर बढ़ा है कि विश्व में हर साल 60 लाख लोग तंबाकू से होने वाली कैंसर, हृदय, फेफड़े आदि की बीमारियों से दम तोड़ देते हैं। इसके अतिरिक्त 6 लाख व्यक्ति जो स्वयं तंबाकू का सेवन नहीं करते, किंतु तंबाकूसेवियों के साथ रहने के कारण सिगरेट आदि के धुएं से अनेक बीमारियों (सेकेंडरी एक्सपोजर) से ग्रस्त हो जाते हैं। गौरतलब है कि इनमें से एक चौथाई साल भर से भी छोटे बच्चे होते हैं।
महत्त्वपूर्ण बातें :
 हाइपरटेंशन के बाद तंबाकू विश्व में सर्वाधिक मौतों का कारण।
हर दसवें वयस्क की मृत्यु के लिए तंबाकू जिम्मेदार।
तंबाकू के धुएं में करीब 4,000 रसायन होते हैं, जिनमें से 200 हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और 25 ऐसे जो निर्विवाद रूप से कैंसर पैदा करते हैं।
4-5 सिगरेटों में मौजूद निकोटीन को यदि शरीर एकबार ग्रहण कर ले तो व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी।
तंबाकू विरोधी मुहिम के चलते ब्राजील, कनाडा, सिंगापुर और थाईलैंड में इसके उपभोग में गिरावट दर्ज की गई है।
अभी केवल विश्व की मात्र 6 प्रतिशत जनसंख्या ही तंबाकू के एक्सपोजर से पूर्णतया सुरक्षित है।
तंबाकू के खेतों में अधिकतर बच्चे मजदूरी करते हैं।
क्या-क्या है सिगरेट में....

वाइनिल क्लोराइड (प्लास्टिक मेटेरियल में होता है)
डीडीटी (कीटनाशक में पाया जाता है)
पौलोनियम 210 (रेडियोएक्टिव तत्व)
निकोटिन (कीटनाशक में प्रयोग)
कार्बन मोनोक्साइड (जहरीले धुएं में मौजूद)
मेथेनॉल (रॉकेट ईंधन में काम आता है)
एसीटोनी (सॉल्वेंट)
साइनहाइड्रिक एसिड (गेज चैंबर्स में प्रयोग)
अपील और जनहित याचिकाएं
बेंगलुरू के इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ ने हाल में जारी अपील में तंबाकूरहि त समाज के निर्माण के लिए भारत के तंबाकू सम्बंधी अधिनियम, 2003 को कड़ाई से लागू करने और सिगरेट, बीड़ी, जर्दा सहित तंबाकू के सभी उत्पादों पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग की है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में भी तंबाकूउ त्पादों के निर्माण, विक्रय, आयात आदि पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस तरह की मुहिम से तंबाकू जगत से जुड़े तमाम समूहों, कारोबारियों में हड़कंप है। वे प्रतिबंधों के खिलाफ कोर्ट में चले गए हैं। पूर्ण तंबाकू नियंत्रण प्रशासन के लिए एक चुनौती है। नियंत्रण उपायों पर आने वाला खर्च इसकी बिक्री से प्राप्त राजस्व का 154 गुना आंका गया है।
सुकून कहां, खतरा ही खतरा-
 तंबाकू सेवन करने वाले इस बात की पैरवी करते हैं कि इससे तनाव कम होता है और उन्हें कुछ देर के लिए मानसिक सुकून मिलता है। लेकिन यह सब होता कैसे है? शोधकर्ताओं के मुताबिक जब व्यक्ति सिगरेट पीता है तो कुछ ही सेकंड्स में निकोटिन सीधे दिमाग तक पहुंचता है। दिमाग में प्रवेश करते ही यह ब्रेन सेल्स (न्यूरॉन्स) पर असर डालता है। न्यूरॉन्स एक-दूसरे को कम्युनिकेट कर पूरे शरीर में संदेश भेजते हैं। निकोटिन इस प्रक्रिया को तेज कर देता है। ब्लडस्ट्रीम में जाते ही यह एड्रीनल ग्लैंड्स को एक्टिव करता है, जिससे एड्रेनलिन हार्मोन स्त्रावित होता है। इससे सेंट्रल नर्व सिस्टम की प्रक्रिया तेज होती है और ब्लडप्रेशर, हार्ट रेट और सांस लेने की गति बढ़ जाती है।
संवाद जरूरी-
 तंबाकू व्यवसाय व वितरण के रेग्युलेशन के लिए अन्य देशों से संवाद जरूरी है। इस कारोबार में खासे गैर-कानूनी तत्व हैं। तंबाकू उत्पादों से जुड़े घराने सरकारी तंत्र पर हावी हो जाते हैं। वैसे अधिकांश तंबाकू सेवी इसकी हानियों को समझते हैं और 70 प्रतिशत सिगरेट प्रेमी इसे छोड़ना चाहते हैं पर वे स्वयं को असमर्थ समझते हैं। दरअसल इस कार्य के लिए दृढ़ संकल्प चाहिए। यह पूरी तरह तभी रुकेगा जब समाज में इसके लिए माहौल बनाया जाए। इसलिए जरूरी है कि तंबाकू के सेवन के खिलाफ हर स्तर पर लगातार प्रचार होता रहे, मुहिम चलती रहे।

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जब आपका बच्चा जाए पहली बार स्कूल



अपने बच्चे को प्री-स्कूल या आंगनवाड़ी भेजना बहुत बड़ा कदम है और यह तनाव भी पैदा करता 
है। यहां हम आपको बताएंगे कि आप क्या उमीद रखें, जब आप अपने बच्चे को पहली बार स्कूल 
लेकर जाएं।
1-     अपने बच्चे से प्री-स्कूल या आंगनवाड़ी के बारे में बात करें, उन्हें समझने की कोशिश करें कि आप 
उसे अपने से दूर नहीं भेज रही है। उनसे उनके व्यवहार के बारे में बात करें और मूल बातें सिखाएं।
2-     स्कूल के पहले दिन के लिए क्या-क्या आवश्यक है, इस बारे में पता करें- जैसे पढ़ने का समय,
नाश्ते का समय आदि ताकि आप उन्हें समझ सकें कि स्कूल से वे क्या उम्मीद रखें।
3-     स्कूल की जरूरत की चीजें खरीदने में मजा लाए जैसे आपके बच्चे के पसंदीदा काटरून की पेंसिल 
खरीदें, अपने बजट का ध्यान रखें।
4-     एक रात पहले उनसे पूछें कि स्कूल को लेकर उनके मन में क्या सवाल है? ब् उन्हें स्कूल छोड़ने 
जाएं और जब स्कूल खत्म हो तब स्कूल के बाहर उनका इंतजार करें।
5-     अपने बच्चे की टीचर से हर रोज बातचीत करते रहें, उनसे समय-समय पर मिलकर बच्चे के बारे
 में जानकारी लें।
    इससे आपके बच्चे को स्कूल में नई सफलता मिलने लगेंगी। पता करें कि आप ऐसा क्या कर 
सकती हैं, जिससे आपके बच्चे और उसकी टीचर को मदद मिले।
6-     अपने बच्चे से रोज पूछें कि उसने स्कूल में क्या किया? आपके बच्चे को पता होना चाहिए कि 
स्कूल कितना जरूरी है।
अपने बच्चे की टीचर से हर रोज बातचीत करते रहें।
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न दें बच्चों को बुरी आदतें



माता-पिता अपने बच्चे की पहली पाठशाला होते हैं और आदर्श भी, इसीलिए मां-बाप का व्यवहार 
और उनकी आदतें बच्चे के व्यक्तित्व को निखारने में काफी हद तक असर डालती हैं। आपकी 
छोटी सी बेटी आपकी साड़ी लपेट कर मेकअप करने की कोशिश करती है या फिर बेटा पेंटिंग 
करने के चक्कर में आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचते हुए अपने कपड़े और फर्श खराब करता है तो आप 
उन्हें सीखते हुए देख काफी खुश होती हैं। जब आपके वही प्यारे-प्यारे बच्चे गलत आदतों का 
शिकार हो जाएं तो आप को समझ नहीं आता कि क्या करें और ऐसे में आप कुछ गलतियां कर 
जाती हैं :
गलत भाषा का प्रयोग-
कई बार बच्चों को डांटते समय गुस्से में हमारे मुंह से कुछ गलत शब्द निकल जाते हैं। बार-बार 
उन अपशब्दों के प्रयोग का बच्चों पर गलत असर पड़ता है। वे भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने 
लगते हैं।
अपशब्दों से बचें-
 बच्चों के सामने अपशब्द कहने से बचें। अगर गलती से ऐसा कुछ हो जाए तो उन्हें प्यार से 
समझएं कि आपने गलती से गुस्से में यह शब्द बोला है और आगे से ऐसे शब्दों का इस्तेमाल 
नहीं करेंगी अगर बच्चा बाहर से कोई भी गलत शब्द सीखकर आता है तो भी उसे प्यार से उसका 
इस्तेमाल दोबारा न करने को कहें।
बात-बात पर गुस्सा करना-
 कई बार हम बच्चों की मौजूदगी में ही किसी न किसी से लड़ना या किसी पर गुस्सा करना शुरू 
कर देते हैं। इतना ही नहीं, बच्चों की मस्ती करने पर भी उन्हें डांट देते हैं। आपको बात-बात पर 
गुस्सा करते देख बच्चे भी वही सीखते हैं। नतीजा यह होता है कि वे अपने भाई या बहन से बात 
करते समय चीखने िचल्लाने जैसी हरकतें करने लगते हैं।
आदतें बदलें-
 अपनी आदतें बदलने की कोशिश करें। गुस्सा हर इंसान को आता है लेकिन आप उनके सामने 
शांत दिमाग से काम लें। बच्चों को ऐसी कहानियां सुनाएं, जिनमें बुरा व्यवहार करने वालों का बुरा
 अंत हुआ हो। इस प्रकार बच्चे समझ जाएंगे कि ऐसा व्यवहार करना सही नहीं होता।
टीवी से चिपके रहना-
 अधिकतर मांएं बच्चों को ज्यादा टीवी न देखने की नसीहत देते हुए खुद सारा समय सास बहू के 
सीरियल देखती रहती हैं। मां की देखादेखी जब बच्चे भी टीवी देखने लगते हैं, तो उन्हें पढ़ने की 
सलाह दे दी जाती है। ऐसे में बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता और वे मां से छुप कर टीवी 
देखने लगते हैं।
क्या है सही-
 बच्चों को टीवी न देखने की सीख देने से पहले स्वयं को बदलें। अपनी टीवी पर चिपके रहने की 
आदत पर नियंत्रण रखें। उन्हें एक डेढ़ घंटा टीवी देखने दें और इस बात को फन टाइम से जोड़ने 
की कोशिश करें। यह ध्यान रखें कि बच्चे क्या देख रहे हैं। हो सके तो उनके साथ बैठे और 
बीच-बीच में उनसे बातें करती रहें।
जंक फूड अधिक खाना-
 कई मांओं की आदत होती है कि बाजार में चाट-पकौड़े, समोसे, पेस्ट्री या केक देख कर वे स्वयं 
पर कंट्रोल नहीं रख पातीं। जब आपका बच्चा ऐसी चीजों की फरमाइश करता है तो आप उसे दस 
 तरह की स्वास्थ्य से संबंधित बातें सुनाकर खाने से मना कर देती हैं। बच्चों को तो जंक फूड 
वैसे ही बहुत पसंद होता है और वे आप से छुप कर स्कूल में या किसी ठेले वाले से जंक फूड 
खाने लगते हैं।
सही-गलत-
 पहले अपनी आदत पर रोक लगाएं। बच्चों को जंक फूड से होने वाले बुरे प्रभावों के बारे में 
बताएं। उन्हें घर पर चाट, समोसे, बर्गर व पिज्जा जैसी चीजें बना कर दें। कभी-कभार बाहर खाने 
में कोई नुक्सान नहीं लेकिन जंक फूड के प्रति दीवानगी न रखें।
आलसीपन, झूठ बोलना व चुगली करना-
 ठीक है कि दिन भर घर के कामों से आप थक जाती हैं। बच्चों के स्कूल से आने पर प्यार से 
उन्हें खाना खिलाती हैं और होमवर्क भी कराती हैं पर कभी- कभी बच्चे कुछ ऐसी मांग कर देते हैं 
कि आप खीझ कर कह देती हैं कि मैं तो बहुत थक गई हूं। मुझ से यह काम नहीं होगा। उसी 
दौरान आप फोन या पड़ोसन से किसी न किसी की चुगली करने लगती हैं। कई बार बातों-बातों 
में आप झूठ भी बोल देती हैं। इन सभी बातों को बच्चे बड़ी गंभीरता से लेते हैं और उनके मन 
पर ऐसी बातों का असर भी पड़ने लगता है।
अपनी इमेज अच्छी रखें-
 बच्चों के सामने अपनी इमेज अच्छी रखें। उन्हें अच्छा साहित्य पढ़ने को दें।
बच्चों के हर काम को उनके साथ मिलकर पूरे मन से करें। इससे उन्हें सुरक्षा का एहसास होगा 
और वे अपनी हर बात आपसे कह पाएंगे।
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