बुधवार, 25 जून 2014

बड़े काम का घरेलू मुर्गीपालन जाने कैसें ?



क्रायलर प्रजाति की मुर्गियाँ लाभप्रद-
 क्रायलर प्रजाति की मुर्गियाँ घर के आसपास घूमकर अपना भोजन जुटा लेती हैं जिन्हें अलग से 
शेड बनाका रखने की आवश्यकता नहीं होती।
इस प्रजाति की मुर्गियों में बीमारियों से लड़ने की अधिक क्षमता होती है और बृद्घि दर भी 
 सामान्य मुर्गियों के मुकाबले लगभग दुगुनी होती है।
क्रायलर प्रजाति की मुर्गियों का माँस देसी मुर्गियों के समान होने के कारण दो से तीन गुना 
अधिक दर पर विक्रय होता है। एक सामान्य व्यक्ति आसानी से 50 मुर्गियों का पालन कर दो 
माह में 12 से 14 हजार रुपये की आय प्राप्त कर लेता है। इसके साथ ही क्रायलर प्रजाति की 
 मुर्गियों का अण्डा भी अधिक दाम में बिकता है क्योंकि लोग इसे देसी प्रजाति की मुर्गियों के 
समान मानते हैं।
बिहार में नीतीश सरकार के दौर में घरेलू मुर्गीपालन की केन्द्रीय योजना का असर रहा कि वहाँ 
के गरीब लोगों को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक विकल्प मिल गया। खेती में घटते 
मुनाफे की खाई को पाटने के लिए भी अन्य इलाकों में किसानों को इसी तरह की तरकीबें 
अपनानी होंगी। कृषि एवं अन्य मेहनत मजदूरी के कार्यों में हुये मशीनीकरण के बाद अब गांव के 
 लोगों को भी पूरे वर्ष कृषि क्षेत्र में मजदूरी का काम नहीं मिलता वहीं परम्परागत कार्य करने 
वाले व्यवसाइयों का कार्य भी लगभग बंद हो गया है। इस समस्या को देखते हुये भारत सरकार 
की योजनाओं के माध्यम से कई इलाकों में बेकायार्ड पोल्ट्री के लिए लोगों को प्रेरित किया गया। 
उन्हें यथा संभव तनकनीकी ज्ञान भी दिया गया। इससे लोगों को किसी भी जरूरत के समय 
नगदी पाने का अतिरिक्त श्रोत मिल गया।
वर्ष में आठ माह चलता है घरेलू मुर्गीपालन-
 उक्त किस्म की मुर्गी के चूजे दिन के समय घर के आसपास घूमकर खरपतवार अथवा अन्य 
हरेचारे और घर में बची हुयी खाद्य सामग्री का उपयोग कर तेजी से विकसित होते हैं। उनके 
भोजन और रखरखाव पर अतिरिक्त पैसा खर्च नहीं होता। दो माह में ही इन चूजों का बजन 
बढ़कर लगभग दो किलोग्राम तक पहुँच जाता है । इन्हें 150 से 200 रुपए प्रति नग से लेकर 500
रुपए तक लोग आसानी से मांग के अनुरूप बेच लेते हैं।
इस किस्म की मुर्गी का अण्डा भी देशी अण्डे की कीमत पर बिकता है।
गर्मियों में तापमान 48 डिग्री सैल्सियस के आसपास पहुँच जाता है तो इस प्रजाति की मुर्गियों की 
बृद्घिदर काफी कम हो जाती है और मुत्युदर भी बढ़ जाती है। इसी प्रकार सर्दियों के दिनों में 
 तापमान गिरकर 5 डिग्री सैल्सियस के आसपास हो जाता है तब भी क्रायलर प्रजाति की मुर्गियों 
में बृद्घिदर घटने के साथ मृत्युदर बढ़ने लगती है। ऐसी स्थिति में घरेलु मुर्गीपालन का कार्य वर्ष 
में लगभग आठ माह ही चल पाता है।
मुर्गी पालन से जुड़ी जानकारी के लिए इच्छुक लोग मथुरा स्थित वेटरिनरी विश्वविद्यालय में डा. 
 पीके शुक्ला से संपर्क कर सकेते हैं। यहाँ से मनचाही नस्ल के चूजे एवं मुर्गे आदि प्राप्त किए 
जा सकते हैं। यहाँ प्रशिक्षण एवं आवश्यक तकनीकी जानकारी भी ली जासकती है।
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Source – KalpatruExpress News Papper







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