सृष्टि के
प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रrाजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे। तब ब्रrाजी ने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल
से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुभरुजी
सुंदर स्त्री प्रकट हुई, जिनके एक हाथ
में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं
माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को
वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रrाजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती
कहा।
सरस्वती को
वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति
करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं।
वसंत पंचमी के
दिन को माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
पुराणों के
अनुसार भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार के रूप में सरस्वती से खुश होकर उन्हें
वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी।
इस कारण हिंदू
धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
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Source – KalpatruExpress News Papper
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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014
बसंत पंचमी को लेकर प्रचलित कथा
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