आमतौर पर
धारणा है कि उम्र दराज लोग ही मधुमेह के शिकार होते हैं लेकिन वास्तविकता ऐसी
नहीं है।
मधुमेह के
पीड़ितों में बच्चों की भी एक बड़ी संख्या है।
छह महीने की
उम्र से ही बच्चों में मधुमेह का रोग बहुत तेजी से बढ़ता देखा जा रहा है। जहां
वयस्कों में 50 फीसदी तक
अग्नाशय (इंसुलिन बनाने का अंग) नष्ट होने पर मधुमेह का पता लगाया जा सकता है
वहीं बच्चों में 80 फीसदी तक
अग्नाशय नष्ट होने के बाद मधुमेह का पता लगता है।
बच्चों में
अग्नाशय नष्ट होने की गति बहुत तेज होती है और अचानक ही इंसुलिन बनना बंद हो
जाता है। ऐसा भी हो सकता है कि तीन महीने पहले कराई गई जांच में कोई असामानता न
हो लेकिन तीन महीने बाद की जांच में 80 फीसदी तक नुकसान हो सकता है। दोनों में अन्तर यह है कि वयस्कों में होने
वाली टाइप-दो मधुमेह को दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन बच्चों में
होने वाली टाइप-एक मधुमेह में इंसुलिन देने के अलावा कोई उपाय नहीं होता है।
हालांकि पता
लगने के बाद भी अभिभावक बच्चों को इंसुलिन देने को तैयार नहीं होते हैं। मरीज के
माता-पिता हमेशा यही चाहते हैं कि दवाइयां खाकर इलाज हो जबकि दवाइयां खाने से
इंसुलिन बनाने वाले बचे हुए 20 फीसदी बीटा सेल्स भी नष्ट हो जाते हैं। दवाइयां खाने से शुरुआत में आराम
मिलता है लेकिन एक-डेढ़ महीने में सारे सेल्स नष्ट हो जाते हैं। तब मरीज को पूरी
तरह से इंसुलिन पर निर्भर होना पड़ता है। मधुमेह से और भी संक्रामक बीमारियां हो
सकती हैं लेकिन उन बीमारियों को तब तक ठीक नहीं किया जा सकता है जब तक मधुमेह
नियंत्रण में न हो। जबकि बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता वयस्कों से अधिक होती है
फिर भी मधुमेह के कारण 17-18 वर्ष का होने
तक बच्चे के गुर्दे खराब हो सकते हैं। मधुमेह किसी भी उम्र के बच्चे को हो सकता
है इसलिए इसके कोई भी लक्षण मिलने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें और ब्लड शुगर
की जांच अवश्य कराएं। इंसुलिन हो या दवाइयां मधुमेह को नियंत्रित करके मरीज
सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है।
इधर मधुमेह
पीड़ित बच्चों के मामले लगातार आ रहे हैं। एक बार एक महिला अपने बच्चे को लेकर
आई जिसे शहद जैसा गाढ़ा यूरिन होता था।
उसके यूरिन
में इतनी मिठास थी कि वह बच्चा उसे चाटने लगता था। जब उसके ब्लड शुगर की जांच की
गई तो टाइप वन शुगर पाया गया। तब इलाज शुरू हुआ और बच्चे में सुधार हुआ। टाइप-एक
मधुमेह के लिए लोगों में अभी जागरूकता की बहुत कमी है। कुछ घटनाएं मन में गहरी
पीड़ा भी छोड़ जाती हैं। कुछ वक्त पहले सीतापुर के पास के गांव से एक व्यक्ति
मधुमेह से ग्रसित अपनी छह साल की बेटी सरोज (काल्पनिक नाम) को इलाज के लिए लेकर
आता था। एक साल तक इलाज के दौरान उसने अपनी बेटी को रोजाना इंसुलिन दिया। उन्हें
मन ही मन यह बात कचोटती थी कि सरोज को जीवनपर्यन्त इंसुलिन देना पड़ेगा। उनके
मरने के बाद कौन सरोज का ध्यान रखेगा या फिर कौन उनकी बीमार बेटी से शादी करेगा।
फिर अचानक उन्होंने आना बंद कर दिया। पड़ोसियों से पता चला कि पिता ने सरोज को
इंसुलिन देना बन्द कर दिया और छह महीने के बाद उसकी मृत्यु हो गई।
टाइप-एक मधुमेह
टाइप-एक मधुमेह अनुवांशिक हो सकती है। इसके अतिरिक्त किसी गुणसूत्र की असामानता
जैसे- गुणसूत्र का छोटा होना या फिर उसका क्रम बिगड़ जाने से भी मधुमेह हो सकता
है। इसके अलावा कुछ वायरस होते हैं जैसे मम्स, रोता, रूबैला, साइटोमिटैलो वायरस। गाय के दूध में पाया
जाने वाला ‘इम्ब्रोवाइन
सिरम एल्बोमिन’ नामक प्रोटीन
एक विशेष प्रकार का जीन सक्रिय करता है और धुएं वाले खाद्य पदार्थ जैसे सिजलर्स
में ‘नाइट्रोसामीन’ नामक पदार्थ इत्यादि प्रतिरोधक क्षमता में
बाधक बन सकते हैं। लेकिन इनसे मधुमेह तभी होता है जब बच्चे में गुणसूत्रों की
असमानता हो या फिर अनुवांशिकता के कारण मधुमेह का खतरा हो। बच्चों को टाइप-एक
मधुमेह ही होता है और होने के बाद उन्हें जीवन पर्यन्त इंसुलिन लेना आवश्यक होता
है।
इसे इंसुलिन
डिपेंडेंट डायबिटीज कहते हैं।
टाइप-दो
मधुमेह टाइप-दो मधुमेह में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन बनता है मगर वह इंसुलिन पूरे
शरीर तक नहीं पहुंच पाता है। यह बच्चों में कम वयस्कों में अधिक होता है।
इसमें इंसुलिन
देने के बजाय दवाइयों के इस्तेमाल से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है।
टाइप- दो मधुमेह शारीरिक कार्यो में कमी, व्यायाम न करने से या फिर अधिक चिकनाई वाली चीजें खाने से होता है। इसके कोई
लक्षण नहीं होते हैं इसलिए ब्लड शुगर की जांच से ही इसका पता लगाया जा सकता है।
इसे नॉन इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज कहते हैं। ज्यादातर लोग इस मधुमेह के होने
पर ऊर्जा उत्पन्न करने वाले काबरेहाइड्रेट के स्नेत आलू और चावल खाना बंद कर
देते हैं जबकि यह गलत है। कोई भी खाद्य पदार्थ पूरा छोड़ने के बजाय डॉक्टर की
सलाह से कम मात्रा में खाते रहना चाहिए।
पिछले दस
सालों से वयस्कों के साथ-साथ बच्चों में भी मधुमेह तेजी से बढ़ रहा है। भारत की
कुल जनसंख्या में लगभग 6 करोड़ 30 लाख लोग मधुमेह से ग्रसित हैं, जिसमे से 7.8 फीसदी टाइप-एक मधुमेह के मरीज हैं जो
मुख्यत: बचपन या युवावस्था से होता है। हालांकि बच्चों में टाइप-दो मधुमेह भी हो
सकता है लेकिन ज्यादातर टाइप-एक ही पाया जाता है। बच्चों में बढ़ रहे मधुमेह के
खतरों पर रिया तुलसियानी की डॉ. अनुज महेश्वरी से बातचीत पर आधारित आलेख: आ
टाइप-एक मधुमेह के लक्षण . रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ने से बच्चे को बार-बार
पेशाब होना।
. पेशाब गाढ़ा
होना या फिर बिस्तर में हो जाना ।
. अधिक भूख लगने
के बावजूद वजन कम होना और कमजोरी महसूस करना।
. शरीर से अधिक
तरल पदार्थ निकलने से प्यास अधिक लगना।
टाइप-एक
मधुमेह को नियंत्रित करने के तरीके . खान-पान में चीनी की मात्रा में कमी हो।
. आहार में वसा
की मात्रा कम हो।
. इंसुलिन लेने
के दौरान शुगर की नियमित जांच हो।
. अधिक से अधिक
मौसमी फल और तरल पदार्थो का सेवन।
. प्रतिदिन
नियमित व्यायाम, प्राणायाम और
एरोबिक्स।
. जितनी भूख हो
उतना ही खाएं, भूख से अधिक
खाने से भी मधुमेह बढ़ने का खतरा रहता है।
डॉ. अनुज
महेश्वरी अध्यक्ष, उप्र डायबिटीज
एसोसिएशन
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Source –
KalpatruExpress News Papper
|
OnlineEducationalSite.Com
बुधवार, 12 मार्च 2014
बच्चों में मधुमेह से खारब हो सकते गुर्दे
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