होली की
शुरुआत होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन।
इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन
पहले होती है और धुलेंडी के दिन इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल
पक्ष अष्टमी से शुरू होकर चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तक होलाष्टक रहता है।
अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में
हम कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है।
इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं।
वर्ष 2014 में होलाष्टक -
वर्ष 2014 में होलाष्टक 8 मार्च से प्रारम्भ हो रहा है और 16 मार्च तक रहेगा। इन आठ दिनों में क्रमश:
अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को
गुरु, त्रयोदशी को
बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य
वर्जित माने गए हैं। इसके अंतर्गत 10 मार्च को बरसाना में लट्ठमार होली और 11 मार्च को नंदगांव में लट्ठमार होली, 16 मार्च को होलिका दहन और 17 मार्च को होली (धुलेंडी) खेली जाएगी।
मान्यताएं –
होलाष्टक के
शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किये जाते हैं। जिसमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद
माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए
डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र
में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं।
क्योंकि
होलिका दहन की परम्परा को सनातन धर्म को मानने वाले सभी मानते हैं इसलिए
होलाष्टक की अवधि में हिंदू संस्कृति के कुछ संस्कार और शुभ कार्यो की शुरुआत
वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और मृत्यु के पश्चात किए जाने वाले कृत्यों की
मनाही नहीं की गई है। तभी तो कई स्थानों पर धुलेंडी वाले दिन ही अन्नप्राशन
संस्कार की परम्परा है। अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, अंत्येंष्टि आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है। शास्त्रीय मान्यताओं के
अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं।
होलिका पूजन
करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर
उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया
जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। होली का डंडा स्थापित
होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं
किया जाता है।
सबसे पहले इस
दिन, होलाष्टक शुरू
होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है।
इस दिन इस
स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकड़ियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है।
होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकड़ियां डाली जाती
है। इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते हैं। अर्थात होली की शुरुआत
हो जाती है। बच्चे और बड़े इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते
हैं।
होलाष्टक में
कार्य निषेध –
होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत
में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ
होता है, वहीं कुछ
कार्य ऐसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक
के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। होलाष्टक के मध्य के दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं
किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये
जाते हैं। इन दिनों में 16 संस्कारों पर
रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।
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Source – KalpatruExpress News Papper
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बुधवार, 12 मार्च 2014
होली की शुरुआत कब होती है
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