नासिक शहर
दक्षिण-पश्चिमी भारत के पश्चिमोत्तर महाराष्ट्र राज्य में गोदावरी नदी के किनारे
बसा हुआ है। यह मुंबई से 180 किलोमीटर पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और
रेलमार्ग पर स्थित है। नासिक एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र है। प्रतिवर्ष
यहां हजारों तीर्थयात्री गोदावरी नदी की पवित्रता और महाकाव्य रामायण के नायक
भगवान श्रीराम द्वारा अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ यहां कुछ समय तक
निवास करने की किंवदंती के कारण आते हैं।
नामकरण कहा
जाता है कि रामायण में वर्णित पंचवटी, जहां श्रीराम, लक्ष्मण और
सीता सहित वनवास काल में बहुत दिनों तक रहे थे, नासिक के निकट ही है। किंवदंती है कि इसी स्थान पर लंका के राजा रावण की बहन
शूर्पणखा को लक्ष्मण ने नासिका विहीन किया था, जिसके कारण इस स्थान को नासिक कहा जाता है। नासिक हिन्दुओं की आस्था व
प्राकृतिक सौन्दर्य का अनोखा मिश्रण है।
इतिहास नासिक
में 200 ई. पू. से
द्वितीय शती ई. तक की पांडुलेण नामक बौद्ध गुफाओं का एक समूह है। इसके अतिरिक्त
जैनों के आठवें र्तीथकर चंद्र प्रभुस्वामी और कुंतीबिहार नामक जैन चैत्य के 14वीं शती में यहां होने का उल्लेख जैन लेखक
जिनप्रभु सूरि के ग्रंथों में मिलता है। 1680 ई. में लिखित तारीखे-औरंगजेब के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर औरंगजेब की धर्माधता के शिकार हुए थे। इन विनष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, राम जी, कपालेश्वर और
महालक्ष्मी के मंदिर उल्लखेनीय हैं। इन मंदिरों की सामग्री से यहां की जामा
मस्जिद की रचना की गई। मस्जिद के स्थान पर पहले महालक्ष्मी का मंदिर स्थित था।
नीलकंठेश्वर महादेव के उस प्राचीन मंदिर की चौखट, जो असरा फाटक के पास था, अब भी इसी मंदिर में लगी दिखाई देती है।
प्रसिद्ध
मंदिर नासिक के प्राय: सभी मंदिर मुस्लिम शासन काल के अंतिम दिनों के बने हुए
हैं और स्वयं पेशवाओं तथा उनके संबंधियों अथवा राज्याधिकारियों द्वारा बनवाये गए
थे। इनमें सबसे अधिक अलंकृत और श्री संपन्न मालेगांव का मंदिर राजा नारूशंकर
द्वारा 1747 ई. में 18 लाख रुपये की लागत से बना था। यह मंदिर 83 फुट चौड़ा और 123 फुट लंबा है। शिल्प की दृष्टि से नासिक के
सभी मंदिरों में यह सर्वोत्कृष्ट है। इसका विशाल घंटा 1721 ई. में पुर्तगाल से बनकर आया था।
कालाराम मंदिर
कालाराम नामक दूसरा मंदिर 1798 ई. का है। जो बारह वर्षों में 22 लाख रुपये की लागत से बना था। यह 285 फुट लंबे और 105 फुट चौड़े चबूतरे पर अवस्थित है। कहा जाता
है यह मंदिर उस स्थान पर है, जहां श्रीराम ने वनवास काल में अपनी पर्णकुटी बनाई थी। किंवदंती है कि यादव
शास्त्री नामक पंडित ने इस मंदिर का पूर्वी भाग इस प्रकार बनवाया था कि मेष और
तुला की संक्रांति के दिन, सूर्योदय के समय सूर्यरश्मियां सीधी भगवान राम की मूर्ति के मुख पर पड़ती
हैं। श्री राम की मूर्ति काले पत्थर की है।
नारायण का
मंदिर सुंदर नारायण का मंदिर 1756 ई. में और भद्रकाली का मंदिर 1790 ई. में बने थे। नासिक में त्रयंबकेश्वर
महादेव का ज्योतिर्लिग भी स्थित है। इसी कारण नासिक का माहात्म्य और भी बढ़ जाता
है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नासिक का नाम सतयुग में पद्यनगर, त्रेता में त्रकिंटक, द्वापर में जनस्थान और कलियुग में नासिक
है।
त्रयंबकेश्वर
मंदिर नासिक से 38 किलोमीटर दूर
है त्रयंबकेश्वर मंदिर। यहां भक्तजन कभी भी आ सकते हैं। इस पवित्र स्थान पर सदैव
भक्तों का हुजूम देखने को मिलता है। इस मंदिर को भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों
में सबसे प्रमुख माना जाता है, क्योंकि यहां त्रिदेव के दर्शन होते हैं।
गोदावरी नदी
के उद्गम स्थल और ब्रrागिरी की
खूबसूरत पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में नागर वास्तु कला में बने इस मंदिर को देखना
अपने आप में एक उपलब्धि है। काले पत्थर से निर्मित यह मंदिर अपनी प्राचीन भारतीय
स्थापत्य कला के कारण भी सैलानियों को आकर्षित करता है। यह मंदिर 270 वर्गफुट में फैला हुआ है।
यहां स्वयंभू
रूप में अंगूठे के आकार जितने बड़े तीन लिंग हैं, जिन्हें ब्रrा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है।
शिव पूजा का
केंद्र त्रयंबकेश्वर मंदिर कृते तु पद्यनगरं त्रेतायां तु त्रकिंटकम, द्वापरे च जनस्थानुं कलौ नासिकमुच्चते।
नासिक को शिव
पूजा का केंद्र होने के कारण दक्षिण काशी भी कहा जाता है। यहां आज भी साठ के
लगभग मंदिर हैं।
कलौ गोदावरी
गंगा के अनुसार कलियुग में गोदावरी गंगा के समान ही पवित्र मानी गई है। मराठा
साम्राज्य में महत्त्व की दृष्टि से पूना के बाद नासिक का ही स्थान माना जाता
है। एक अन्य किंवदंती के अनुसार नासिक का यह नाम पहाड़ियों के नवशिखों या शिखरों
पर इस नगरी की स्थित होने के कारण हुआ था। ये नौ शिखर हैं- .- जूनीगढ़ी .- नवी
गढ़ी .- कोंकणीटेक .- जोगीवाड़ा टेक .- म्हास टेक .- महालक्ष्मी टेक .- सुनार
टेक .- गणपति टेक .- चित्रघंट टेक मराठी की प्रचलित कहावत नासिक नव टेका वर
वसाविले अर्थात नासिक नौ टेकरियों पर बसा है, नासिक के नाम के बारे में इस किंवदंती की पुष्टि करती है।
त्रयंबकेश्वर
गौतम ऋषि की तपोभूमि है। यह स्थान नासिक से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि गौतम ऋषि ने शिव की तपस्या
करके गंगा को यहां अवतरित करने का वरदान मांगा था, जिसके फलस्वरूप यहां गोदावरी नदी की धारा प्रवाहित हुई। इसलिए गोदवरी को
दक्षिण भारत की गंगा भी कहा जाता है। इस स्थान पर किया श्राद्ध और पिण्डदान सीधा
पितरों तक पहुंचता है। इससे पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है और वह
उत्तम लोक में स्थान प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान एवं पितरों की संतुष्टि हेतु ब्राrाण भोजन करवाने से पितर तृप्त होकर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते
हैं। यहां गौतम ऋषि की गुफा है, जिसमें 108 शिवलिंग बने
हुए हैं। वहीं आगे जाकर नाथ संप्रदाय के सबसे पहले नाथ गोरखनाथ का भी मंदिर है।
राम-लक्ष्मण तीर्थ भी यहीं हैं, जहां अपने वनवास के दौरान कुछ दिन रुककर भगवान श्रीराम ने अपने पिता दशरथ का
श्राद्ध किया था। यहां राम का काफी विशाल मंदिर भी बना हुआ है। यहीं गंगासागर
नाम का
बड़ा-सा कुंड भी बना हुआ है।
कुम्भ पर्व
चक्र कुम्भ पर्व विश्व में किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा
संग्रहण है। सैंकड़ों की संख्या में लोग इस पावन पर्व में उपस्थित होते हैं।
कुम्भ का संस्कृत अर्थ है- कलश।
ज्योतिष
शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिन्ह है। हिन्दू धर्म में कुम्भ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक
पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है- हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में संगम
जहां गंगा, यमुना और
सरस्वती मिलती हैं।
नासिक में
कुम्भ पर्व भारत में 12 में से एक
ज्योतिर्लिग, त्रयंबकेश्वर
नामक पवित्र शहर में स्थित है। यह स्थान नासिक से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और गोदावरी
नदी का उद्गम भी यहीं से हुआ है। 12 वर्षो में एक बार सिंहस्थ कुम्भ मेला नासिक एवं त्रयंबकेश्वर में आयोजित
होता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार नासिक उन चार स्थानों में से एक है, जहां अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरी
थीं। कुम्भ मेले में सैंकड़ों श्रद्धालु गोदावरी के पावन जल में स्नान कर आत्मा
की शुद्धि व मोक्ष की प्रार्थना करते हैं। यहां पर शिवरात्रि का त्योहार भी बहुत
धूम धाम से मनाया जाता है।
महत्त्वपूर्ण
उत्कीर्णलेख नासिक के निकट एक गुफा में क्षहरात नरेश नहपान के जमाता उशवदात का
एक महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख प्राप्त हुआ है। जिससे पश्चिमी भारत के द्वितीय शती
ई. के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यह अभिलेख शक संवत संबंधित नारियल के कुंज के
दान में दिए जाने का उल्लेख है। नासिक का एक प्राचीन नाम गोवर्धन है। जिसका
उल्लेख महावस्तु में है। जैन तीर्थो में भी नासिक की गणना है। जैन स्तोत्र
तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस स्थान को कुंतीविहार कहा गया है।
पर्यटन शहर का
मुख्य हिस्सा नदी के दाएं (दक्षिण) तट पर है, जबकि बाएं किनारे पर स्थित खंड पंचवटी में कई मंदिर हैं। यह शहर नदी घाटों
(सीढ़ीदार स्नान स्थल) से युक्त है। नासिक में पांडु (बौद्ध) और चामर (जैन) गुफा
मंदिर भी है, जो पहली
शताब्दी के हैं। यहां स्थित कई हिंदू मंदिरों में काला राम और गोरा राम को सबसे
पावन माना जाता है। नासिक से 22 किमी. दूर त्रयंबकेश्वर गांव, जहां 12 शैव
ज्योतिर्लिग मंदिर हैं, तीर्थस्थलों
में सबसे महत्त्वपूर्ण है।
सीता गुफा नासिक
के पास सीता गुफा नामक एक नीची गुफा है, जिसके अंदर दो गुफाएं हैं। पहली में नौ सीढ़ियों के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियां हैं और दूसरी
पंचर}ेश्वर महादेव
का मंदिर है। नासिक से दो मील गोदावरी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम है। गोदावरी
का उद्गम त्रयंबकेश्वर की पहाड़ी में है।
(साभार:
भारतकोश)
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Source –
KalpatruExpress News Papper
|
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मंगलवार, 4 मार्च 2014
किस शहर को मंदिरों का शहर कहा जाता है
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