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आदि पुरुष कहे
  जाने वाले मनु ने धर्म की परिभाषा दी है कि जो धारण करने योग्य हो, वह धर्म होता है। हम इस परिभाषा को
  नवरात्रि जैसे विशुद्ध धार्मिक विधान पर भी लागू कर सकते हैं। इन नौ दिनों में
  मां दुर्गा की आराधना की जाती है। व्रत रखा जाता है। यथासंभव मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र जीवन जीने की
  कोशिश की जाती है। 
वासंतिक
  नवरात्रि पर विशेष: ऊर्जा का आह्वान 
नवरात्रि में मातृशक्ति की उपासना शक्ति अर्थात
  ऊर्जा के रूप में की जाती है। इस उपासना का मंतव्य स्वयं को परिमार्जित करके
  ऊर्जा का आह्वान करना है। आदि पुरुष कहे जाने वाले मनु ने धर्म की परिभाषा दी है
  कि जो धारण करने योग्य हो, वह धर्म होता है। हम इस परिभाषा को नवरात्रि जैसे विशुद्ध धार्मिक विधान पर
  भी लागू कर सकते हैं। इन नौ दिनों में मां दुर्गा की आराधना की जाती है। व्रत
  रखा जाता है। यथासंभव पवित्र जीवन जीने की कोशिश की जाती है। 
धार्मिक
  दृष्टि से देखने पर तो यह सब निश्चित तौर पर कर्मकांड के हिस्से ही लगते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। 
दरअसल, हमारे पूर्वजों ने जीवन से जुड़ी अपनी सभी
  वैज्ञानिक बातों को हमें प्रतीकों और मिथकों के माध्यम से बताया और इन सबको धर्म
  का नाम दिया, ताकि आम लोग
  इनका विधिवत तरीके से श्रद्धापूर्वक पालन करें। तो आइए, देखते हैं कि इस नवरात्रि का विज्ञान क्या
  है। 
सबसे पहले बात
  करते हैं नवरात्रि अर्थात नौ रातों की। नौ ही क्यों इसके दो मुख्य कारण हैं। पहली
  बात तो यह कि भारतीय दर्शन में 108 का अंक अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसका
  कारण यह हो सकता है कि योगियों ने सौरमार्ग को सत्ताइस बराबर भागों में बांटा है, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। प्रत्येक
  नक्षत्र को चार बराबर पदों में बांटा गया है। इनका गुणनफल 108 होता है। इस प्रकार माला के 108 मनकों का जाप सौरमार्ग की परिक्रमा पूरी
  करने का प्रतीक है। 108 की सभी
  संख्याओं का जोड़ होता है नौ। इस नौ के अंक की खूबी यह है कि इस अंक का किसी भी
  संख्या से गुणा किया जाए, तो गुणनफल की
  संख्याओं का जोड़ नौ ही आएगा। इस प्रकार अंक नौ पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता
  है। पूर्ण कौन है मात्र ईश्वर ही पूर्ण है। 
इसलिए नौ का
  अंक ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। 
महान
  वैज्ञानिक आइंस्टीन का मानना था कि संपूर्ण जगत मूलत: ऊर्जा से बना हुआ है।
  पदार्थ ऊर्जा के ही संगठित रूप हैं। हमारे यहां देवी को ऊर्जा के ही रूप में
  देखा गया है। 
देवी यानी कि
  रचनात्मकता से भरपूर वह शक्ति, जिसमें जन्म देने की क्षमता है, कुछ नया बनाने की क्षमता है। मान्यता है कि विश्व के आदिकाल में जब ब्रrा को इस संसार की रचना करने की इच्छा हुई, तो उन्हें नारी शक्ति का आह्वान करना पड़ा।
  नवरात्रि के नौ दिनों को तीन-तीन दिनों के तीन भागों में बांटा गया है। प्रथम
  तीन दिनों में मां दुर्गा की आराधना होती है। मां दुर्गा ने महिषासुर का विनाश
  किया था। इस प्रकार ये तीन दिन हमें हमारे अंदर की आसुरी प्रवृत्तियों को समाप्त
  करने का संदेश देते हैं। वस्तुत: वे भावना और विचार, जो नकारात्मक हों और ध्वंसात्मक हों, इस श्रेणी में आते हैं। बीच के तीन दिन
  लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना के दिन होते हैं। लक्ष्मी जी को धन की देवी माना गया
  है और इस धन में आध्यात्मिक धन भी शामिल है, क्योंकि इसी आध्यात्मिक धन को पाकर हम धन्य होते हैं। अंतिम तीन दिन ज्ञान
  की देवी सरस्वती को समर्पित हैं। यह मूलत: विवेक की देवी हैं। 
विवेक का अर्थ
  होता है- सही एवं गलत का निर्णय लेने की ज्ञानपूर्ण दृष्टि का होना। मां सरस्वती
  की आराधना हमें विवेक का प्रकाश प्रदान करके अपनी संपत्ति का समुचित उपयोग करके
  एक संतुलित जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार नवरात्रि में देवियों
  की ऊर्जा हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन को संपूर्णता प्रदान करती है। ऊर्जा
  के इस आह्वान के केंद्र में सूर्य हैं और सूर्य ऊर्जा का भंडार हैं। इस प्रकार
  नवरात्रि का पर्व हमारे लिए स्वयं को धो-पोंछकर नवीन ऊर्जा को धारण करने योग्य
  बनाने का एक धार्मिक किंतु अत्यंत वैज्ञानिक उपक्रम है। इस अवसर पर रखे जाने
  वाले उपवास का यही उद्देश्य है। 
प्रात:काल में
  शुभ होती है देवी की आराधना - 
चैत्र और
  आश्विन नवरात्रि दोनों ही मुख्य माने जाते हैं। इनको यथाक्रम वासंती और शारदीय
  नवरात्रि कहते हैं। इनका आरंभ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है, यह प्रतिपदा सम्मुखी शुभ होती है। 
घटस्थापना
  प्रात:काल अभिजीत मुहूर्त में करें। स्मरण रहे कि देवी का आह्वान, प्रवेशन, नित्यार्चन और विसर्जन- यह सब प्रात:काल में शुभ होते हैं, अत: उचित समय का अनुपयोग न होने दें। 
उपवास जरूरी
  है इस नवरात्रि में - 
स्त्री हो या
  पुरुष, सबको नवरात्रि
  करना चाहिए। यदि कारणवश स्वयं न कर सकें तो प्रतिनिधि (पति, पत्नी, ज्येष्ठ पुत्र, सहोदर या ब्राrाण) द्वारा कराएं। 
नवरात्रि, नौ रात्रि पूर्ण होने से पूर्ण होता है
  इसलिए यदि इतना समय न मिले या सामथ्र्य न हो तो सात, पांच, तीन या एक दिन व्रत करें और व्रत में भी उपवास, अयाचित नक्त या एकभुक्त, जो बन सके यथा सामथ्र्य वही कर लें। 
नवरात्रि में
  घटस्थापन के बाद सूतक हो जाए तो कोई दोष नहीं, परंतु पहले हो जाए तो पूजनादि स्वयं न करें। चैत्र के नवरात्रि में शक्ति की
  उपासना तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही शक्तिधर की उपासना भी की जाती है। उदाहरणार्थ एक ओर देवी भागवत, कालिका पुराण, मार्कण्डेय पुराण, नवार्ण मंत्र के पुरश्चरण और दुर्गा पाठ की
  शतसहस्नयुत चंडी आदि होते हैं तो दूसरी ओर श्रीमद्भागवत, अध्यात्म रामायण, वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामायण, राममंत्र- पुरश्चरण, एक-तीन-पांच-सात दिन की या नौ दिन की अखंड
  रामनाम ध्वनि और रामलीला आदि किए जाते हैं। यही कारण है कि यह देवी-नवरात्रि और
  राम-नवरात्रि नामों से प्रसिद्ध हैं। 
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Source – KalpatruExpress News Papper | 
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गुरुवार, 3 अप्रैल 2014
वासंतिक नवरात्रि पर विशेष: ऊर्जा का आह्वान
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