एक नए
वैज्ञानिक शोध के अनुसार संभोग, प्रसव और स्तनपान के दौरान शरीर में स्नवित होने
वाला हार्मोन ऑक्सिटॉसिन
भोजन को लेकर पैदा हुई अरुचि यानी एनॉरेक्सिया के इलाज में
मददगार साबित हो सकता
है।
यह नतीजा
ब्रिटेन और कोरिया के वैज्ञानिकों के अध्ययनों से सामने आया है। वैज्ञानिकों ने
कहा
है कि ऑक्सिटॉसिन की खुराक लेने से भोजन और अपनी आत्मछवि के प्रति अरुचि
होने की
संभावना कम होती है।
ब्रिटेन में
हर 150 में से एक
किशोरी इस तरह की समस्या से परेशान है। इस दिशा में काम
करने वाली संस्था बीट ने
कहा है कि इस नई जानकारी से एनॉरेक्सिया का इलाज अभी दूर की
कौड़ी है।
ऑक्सिटॉसिन हार्मोन संभोग, प्रसव और स्तनपान के दौरान प्राकृतिक रूप से शरीर में
स्नवित होता है। इसके
पहले कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि यह हार्मोन कई
मनोवैज्ञानिक
समस्याओं के इलाज में कारगर होता है। साथ ही इसे ऑटिज्म से पीड़ित लोगों के
उपचार में उपयोगी पाया गया है।
पुराने शोध-
ब्रिटेन की प्रत्येक 150 लड़कियों में एक लड़की एनॉरेक्सिया से
पीड़ित है। ऑस्ट्रेलिया में चार
हफ्तों तक हुए एक अध्ययन में पाया गया था कि जिन
लोगों को ऑक्सिटॉसिन की खुराक दी
गई उनमें अपने वजन और शरीर के आकार-प्रकार को
लेकर चिंता में कमी आई।
ऐसा ही एक
हालिया शोध का परिणाम साइकोन्यूरोएंडोक्राइनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
इस शोध में
एनॉरेक्सिया से पीड़ित 31 लोगों और 33 स्वस्थ लोगों को वैज्ञानिकों ने कृत्रिम
रूप से
ऑक्सिटॉसिन की खुराक दी थी। उसके बाद उन्हें अलग-अलग वजन और आकार-प्रकार
के लोगों
की तस्वीरें दिखाई गईं।
शोध में पता
चला कि एनॉरेक्सिया से पीड़ित लोग पहले उन लोगों की तस्वीर पर ज्यादा ध्यान दे
रहे थे जिनका वजन ज्यादा था और शरीर बेढंगा था।
लेकिन
ऑक्सिटॉसिन की खुराक लेने के बाद उनकी नकारात्मक
तस्वीरों पर
ध्यान देने की संभावना कम थी।
डर वाले भाव-
प्लॉज वन जर्नल में प्रकाशित ऐसे ही एक अन्य
शोध में इन्हीं लोगों पर किए गए शोध में चेहरे
पर आने वाले भावों जैसे गुस्सा, घृणा और खुशी पर इन लोगों की प्रतिक्रिया
का अध्ययन किया
गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि एनॉरेक्सिया के औषधीय उपचार के
क्षेत्र में अभी काफी काम
करने की जरूरत है। इस शोध में कहा गया कि एनॉरेक्सिया
का संबंध किसी चीज के प्रति
अत्यधिक डर से हो सकता है। जानवरों पर किए गए शोध के
अनुसार ऑक्सिटॉसिन की खुराक
देने से चेहरे पर आने वाले डरावने भाव के प्रति
सजगता कम हो जाती है।
ऑक्सिटॉसिन
उपचार के बाद इन लोगों ने घृणा के भाव वाली तस्वीरों पर ध्यान देना कम कर
दिया।
इन लोगों के गुस्से के भाव वाले चेहरे पर ध्यान देने की संभावना भी कम हो गई।
प्रोफेसर
जैनेट ट्रेजर लंदन के किंग्स कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग में काम करती हैं। ये
दोनों
अध्ययन उन्हीं की देखरेख में हुए हैं।
परीक्षण की
ज़रूरत-
वह कहती हैं, अभी यह शोध अपने शुरुआती चरण में है। इसमें बहुत कम लोगों पर शोध किया
गया
है।
लेकिन उपचार
से होने वाले लाभ की संभावना काफी उत्साहजनक है। हमें ज्यादा बड़े स्तर पर
परीक्षण की जरूरत है। इस शोध में जैनेट की सहयोगी रहीं प्रोफेसर योउल-री किम
दक्षिण
कोरिया के इंजे विश्वविद्यालय में काम करती हैं। वह कहती हैं, हमारा शोध दिखाता है कि
ऑक्सिटॉसिन से
एनॉरेक्सिया के मरीजों को लाभ पहुंचता है। वह कहती हैं, फिलहाल एनॉरेक्सिया
का प्रभावी औषधीय उपचार
नहीं है। एनॉरेक्सिया से जुड़े मामलों पर काम करने वाली सामाजिक
संस्था बीट से
जुड़ी लियान्ने थॉर्नडाइक कहती हैं, यह बीमारी काफी जटिल है।
अभी इस बीमारी
के जैविक कारणों के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। हमें उम्मीद है कि इस शोध
के बाद नए एवं प्रभावी उपचार की शुरुआत होगी। हालांकि अभी तो यह शुरुआत ही है।
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Source –
KalpatruExpress News Papper
|
OnlineEducationalSite.Com
शनिवार, 26 अप्रैल 2014
प्यार के हार्मोन के साइड इफेक्ट
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