शुक्रवार, 23 मई 2014

हर स्पर्श प्यार नहीं होता



तेजी से विकास करते और खुद को सभ्य साबित करने की जद्दोजहद करते समाज में अनैतिकता चरम पर है। आपराधिक कार्यो के लिए न केवल ढेरों अवसर लोगों को मिल रहे हैं बल्कि स्वतंत्र होते समाज का गलत फायदा भी काफी हद तक उठाया जा रहा है। समाज में तेजी से पैठ बनाते जघन्य अपराधों में से एक है चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज यानी बाल यौन शोषण। मासूम बच्चों को आए दिन लोग अपनी हवस का शिकार बना रहे हैं। बच्चे जो उनकी गंदी सोच से परिचित भी नहीं होते, उनके साथ ये विकृत मानसिकता वाले लोग क्रूरता से पेश आते हैं और बाल मन पर बहुत गहरी चोट दे जाते हैं। प्रस्तुत है बाल यौन शोषण और उसके प्रभावों पर चर्चा करती स्मिता सिंह की रिपोर्ट:
बचपन में हुए शारीरिक असॉल्ट जीवन में एक ऐसा दाग छोड़ जाते हैं, जो उम्र बीतने के साथ भरता नहीं और नासूर बनकर हमेशा साथ चलता है। इसीलिए जब आपका बच्चा स्कूल जाने लगे या दो वर्ष की उम्र पार ले तो उसके हर कदम पर नजर रखें, उसके तौर-तरीकों और व्यवहार में अगर जरा सा भी फर्क आपको दिखाई दे तो उसे बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें। रिश्तेदारों से लेकर दोस्तों और पड़ोसियों पर नजर रखें, कहीं ऐसा न हो कि आप बच्चा समझकर अपने नन्हे को किसी को दे रहे हैं और वह उसके साथ कुछ अनैतिक कार्य करे। कई बार यह सवाल उठता है कि क्या इन्हें रोका जा सकता है लेकिन सच यह है कि हम ऐसे लोगों की फितरत तो नहीं बदल सकते, कड़ी से कड़ी सजा देने के बाद भी हम उनके सुधरने की उम्मीद भी नहीं कर सकते लेकिन अपने बच्चों को तो सही-गलत के बारे में बता सकते हैं ताकि वे खुद इस बात का निर्णय कर सकें कि कौन उन्हें किस तरह स्पर्श कर रहा है। किसी का स्पर्श कितना सही है और कितना गलत, क्योंकि हर स्पर्श प्यार नहीं होता, कई बार यह गलत भावनाओं को भी दर्शाता है। मनोचिकित्सकों और बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे इस योग्य नहीं होते कि वे इंसानी छुअन की पहचान कर पाएं जिसकी वजह से वे आसानी से किसी के भी बहकावे में आ जाते हैं। इसीलिए अभिभावकों का यह दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चे को धीरे- धीरे सब कुछ समझ दें ताकि वह सेक्सुअल टच की पहचान कर पाने में सक्षम हो जाए।
केस 1 :- वह हमारे बड़े चाचा थे। मैं उनके साथ खेलती थी। मैं जब थोड़ी बड़ी हुई तब उन्होंने मेरे साथ बुरा काम किया था। इस हादसे के बाद मैं उनसे डरने लगी थी और बहुत बुलाने पर भी उनके पास नहीं जाती थी। माता-पिता या किसी रिश्तेदार से मैंने इसका जिक्र नहीं किया। मैं सारे समय मां के पास ही चिपकी रहती थी। बड़ी हुई तो मेरे मन में पुरुषों के प्रति नफरत भरी थी। ऐसा कहने वाली 55 साल की यह महिला मनोविकार के चलते चिकित्सकीय परामर्श के लिए लाई गई थी।
केस 2 :- मैं और मेरे ताऊ का लड़का संयुक्त परिवार में एक साथ खेलकर बड़े हुए। वह उम्र में मेरे से एक साल बड़ा था। मैं जब चौथी क्लास में था तब उसने मेरे साथ अप्राकृतिक कृत्य किया था। मैं इस घटना को कभी भूल नहीं पाया। 40 साल के इस मरीज के मन पर इस घटना ने ऐसा प्रभाव डाला कि विवाह होने के बाद वह कभी भी सामान्य विवाहित जीवन नहीं जी सका।
बच्चे को सिखाएं अच्छे-बुरे स्पर्श में फर्क-
 मनोवैज्ञानिकों की मानें तो बुरे स्पर्श का अर्थ सिर्फ बच्चे के संवेदनशील अंगों को छूना नहीं होता बल्कि हर वह स्पर्श गलत है, जो बच्चे को असहज बना दे। अगर आपका बच्चा किसी व्यवहार से भी असहज महसूस करता है तो उसे सिखाएं कि कैसे वह नम्रता के साथ मना कर सकता है। इसके अलावा उसे यह भी समझया जाना चाहिए कि असहज व्यवहार होने पर बिना हिचक और शर्म के वह अपने अभिभावक और स्कूल प्रशासन को इसकी सूचना दे। इसके अलावा अजनबियों से बात नहीं करने की आदत डालें। अगर कोई आपके बच्चे को पोर्न वीडियो या फोटो देखने के लिए बाध्य करता है या जबरदस्ती उसे यह सब दिखाता है तो भी यह सेक्सुअल असॉल्ट के दायरे में आएगा।
पीड़ित बच्चे को संभालना होगा-
 अगर आपकी सजगता के बावजूद आपका बच्चा किसी की हैवानियत का शिकार बन जाता है तो उसे बार-बार वह सब याद न दिलाएं बल्कि उसे उस अवसादग्रस्त माहौल से बाहर निकालने की कोशिश करें। अगर आपका बच्चा रोता है तो उसे चुप कराने की बजाय उसे रोने दें। रोकर उसे अपना दिल हल्का करने का मौका जरूर दें।
उसे दोस्तों के साथ खेलने दें, उसे खिलौने लाकर दें और उसके लिए घर का माहौल हल्का रखें। जिससे वह इस दर्द से उबर सके।
करीबी रिश्तेदारों पर भी रखें नजर-
 2007 में चाइल्ड एब्यूज पर हुए पहले राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार लगभग 53.2 प्रतिशत बच्चों ने यह स्वीकार किया है कि उनके साथ एक से ज्यादा तरीके का सेक्सुअल असॉल्ट हुआ है। वहीं दूसरी ओर 50 प्रतिशत बच्चों का यह कहना था कि उनके साथ गंदी हरकत करने वाला व्यक्ति उनके परिवार का जानने वाला था। इसीलिए माता-पिता को यह खास ध्यान रखना चाहिए कि उनका बच्चा किसी भी व्यक्ति, भले ही वह आपका करीबी रिश्तेदार या दोस्त क्यों न हो, के साथ अकेला न हो।
लड़कियों पर ज्यादा खतरा-
 कई अलग-अलग सव्रे के आंकड़े दर्शाते हैं कि एक-तिहाई से लेकर 50 फीसदी तक लड़कियां और आठवें से लेकर छठे हिस्से तक लड़कों का 18 साल की उम्र तक यौन शोषण हो चुका होता है। जानकारों का मानना है कि यह अनुमान बहुत कम है और असल आंकड़ा इनसे कहीं अधिक हो सकता है।
बच्चे होते हैं गुमराह-
 इस दर्द से उबरने की शुरुआत करने से पहले ये पीड़ित बच्चे बचने, छिपने, अलग-थलग पड़े रहने या अपना दर्द कम करने की रणनीति अपनाते हैं। इसमें शराब या दूसरी मादक दवाओं का जरूरत से ज्यादा सेवन, भोजन, काम, व्यायाम, धर्म या पोर्नोग्राफी का सहारा लेते हैं। ये लोग जरूरत से ज्यादा दूसरे का खयाल रखने वाले बन जाते हैं। पहली बार यौन शोषण का पीड़ित बच्चा या वयस्क इन रणनीतियों को अपना दर्द कम करने के लिए अपनाता है तो उसकी पीड़ा कम होने लगती है। लेकिन कालांतर में इसका असर जाता रहता है और पीड़ित ऐसी घातक चिकित्सा का और अधिक सहारा लेने लगता है।
अंतत: यह घातक चिकित्सा उसकी आदत या बाध्यता बन जाती है।
बच्चों को समय देना जरूरी-
 हर माता-पिता को अपने बच्चे की पूरे दिन के रुटीन के बारे में मालूम होना चाहिए, जिससे जरा भी खतरा होने पर वे अपने लाडले को सुरक्षित कर सकें। हालांकि ज्यादातर लोग अपने बच्चों को होमवर्क कराने के साथ उसके स्कूल में हुई हर घटना को जानने की कोशिश करते हैं। बच्चों का अधिकांश समय स्कूल में बीतता है, इसलिए वहां के बारे में पूरी जानकारी रखें।
पहले परिवार व समाज में कई तरह के नियम हुआ करते थे, उनके अनुसार ही सारे रिश्तों पर भी असर होता था।
बाल यौन हिंसा के शिकार बच्चे कहीं न कहीं बने बनाए अनुशासन के टूट जाने का दंश ङोलते हैं। पहले जो दायरे और कायदे थे, हम उनकी वजह से अनुशासित रहकर अपनी जिम्मेदारियां निभाते थे। अब भाई व पिता दोस्त, बहन सलाहकार व मां सहेली बन गई है। इससे रिश्तों में अनुशासन और दायरे कम हुए हैं। यही समाज में भी लागू होता है। सामाजिक जीवन में अनुशासन तोड़कर ही अक्सर मानव को सुख मिलता है और यह प्राकृतिक है। इसलिए दायरे और अनुशासन आवश्यक हैं। जिससे मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों ही संतुलन बने रहें।
डा. संजीव सिंह, शिक्षा मनोविद, अलीगढ़
क्या कहते हैं आंकड़े-
 बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था टेरेस डेस होम्स ने पिछले दिनों एक ऐसा खुलासा किया, जिससे दुनिया में चिंता की लहर दौड़ गई। एनिमेशन तकनीक का इस्तेमाल करके उसने कंप्यूटर पर 10 साल की एक फिलीपिनो लड़की तैयार की। उस वचरुअल लड़की को भी एक हजार लोगों ने अपनी यौन कुंठा का शिकार बनाना चाहा। संस्था के पास उन लोगों के नाम और तस्वीरें हैं। ये लोग 71 अलग-अलग देशों के हैं जिनमें 254 अमेरिका, 110 ब्रिटेन और 100 भारत के हैं।
1-     देश में बच्चों की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा 43 करोड़ है जो इसकी कुल जनसंख्या का 35 प्रतिशत है।
2-  दो-तिहाई बच्चे शरीरिक शोषण के शिकार हैं जिनमें से ज्यादातर केसेज विद्यालयों के हैं।
3-  यूनिसेफ के अनुसार 53.2 फीसदी बच्चों ने किसी न किसी टाइप के यौन शोषण का सामना किया है जबकि 21.90 फीसदी बच्चे गंभीर यौन शोषण का शिकार हुए हैं।
4-  50 प्रतिशत मामलों में बच्चे के किसी जानने वाले ने ही उसका यौन शोषण किया।
5-  ट्रस्ट और अथारिटी वाले मुख्य शोषणकर्ता होते हैं।
6- 70 प्रतिशत से ज्यादा मामले रिपोर्ट तक नहीं होते, यहां तक कि माता िपता से भी शेयर नहीं किए जाते।
7- हर सेकेंड एक बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है।
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Source – KalpatruExpress News Papper




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