शैलेन्द्र
चौहान बिना एक शब्द बोले दुनिया के चेहरे पर मुस्कान लाने वाले चार्ली चैपलिन
(जन्म 16 अप्रैल 1889) को भला कौन नहीं जानता। मूक फिल्मों के दौर
मे सर चाल्र्स स्पेन्सर चैपलिन का सिक्का चलता था। दुनिया के हर कोने में आज तक
यह छाप बरकरार है। पर्दे पर अपनी गुदगुदाती उपस्थिति और हंसी-ठिठोली में भी
जिंदगी के फलसफे को शिद्दत से कह देने के लिए मशहूर, हॉलीवुड के महान अभिनेता, निर्देशक और लेखक चार्ली चैपलिन को
निर्विवाद रूप से हास्य को सिनेमा के केंद्र में लाने का श्रेय जाता है।
टूथब्रश जैसी
मूंछों, बॉलर हैट, बांस की छड़ी और हंसा देने वाले चलने के
अंदाज के साथ-साथ दूरदर्शी निर्देशकीय सोच ने चाल्र्स स्पेंसर चैपलिन को विश्व
सिनेमा में चार्ली चैपलिन के रूप में अमर कर दिया। चार्ली बहुमुखी प्रतिभा के
धनी थे। वह न सिर्फ बेहतरीन अभिनेता और निर्देशक थे बल्कि, वह निर्माता, पटकथा लेखक और संगीतकार भी थे। उन्होंने वर्ष 1914 में बनी ट्वेंटी मिनट्स ऑफ लव और उसके बाद
बनी अपनी कई फिल्में लिखीं और उनमें से ज्यादातर का निर्माण भी किया। चैपलिन को
दो बार ऑस्कर पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय
शान्ति पुरस्कार और दूसरे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। हॉलीवुड के
लीजेंड कहे जाने वाले हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिन की टोपी और छड़ी मानो उनके
व्यक्तित्व से चिपक कर रह गई थी। सूचना है कि लास एंजेलिस में चार्ली चैपलिन की
टोपी और छड़ी को नीलाम कर दिया गया है। बूनहम्ज नीलामी घर के अंतर्गत नीलामी के
लिए पेश की गई चार्ली चैपलिन की हैट और छड़ी 62 हजार डालर से अधिक दाम में नीलाम हुई। अमेरिका राज्य केलीफोर्निया के शहर
लास एंजेलिस में रविवार को नीलामी के लिए पेश की गई इस हैट और छड़ी के 40 से 60 हजार डालर तक नीलाम हो जाने की आशा जताई गई थी किंतु, यह दोनों यादगारें इससे अधिक कीमत में
नीलाम हुईं।
मूक फिल्मों
के स्टार चार्ली चैपलिन का जन्म ब्रिटेन के वेस्ट मिडलैंड में एक जिप्सी समुदाय
में हुआ था।
चैपलिन के
कमरे से मिले दशकों पुराने एक पत्र में यह दावा किया गया है। चार्ली चैपलिन ने
दुनिया को जितना हंसाया है, उतना उलझया भी है। आज भी लोग उनके जन्म को लेकर रिसर्च करने में लगे हुए
हैं। चार्ली के अनुसार उनका जन्म 16 अप्रैल 1889 में हुआ था।
इस बात का कोई दूसरा सबूत नहीं तलाशा जा सका है। उनके जन्म स्थान को लेकर अब तक
रहस्य बना हुआ है।
अमेरिकी
खुफिया एजेंसी सीआइए और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी एमआइ-5 भी इस रहस्य से पर्दा नहीं उठा सकी हैं।
अभी तक ऐसा माना जाता रहा है कि चैपलिन का जन्म लंदन में हुआ था। चार्ली के बारे
में ये भी कहा जाता है कि उनका जन्म फ्रांस में हुआ था। कुछ अन्य लोग मानते हैं
कि वे रूस के यहूदी थे और उनका नाम इजराइल थॉर्नस्टीन था। चार्ली पर एफबीआइ
द्वारा की गई जांच की 2000 पेज की
रिपोर्ट है। ऐसा भी कहा जाता है कि उनका संबंध कम्युनिस्ट्स से था। शक किया जाता
था कि वे कम्युनिस्ट संगठनों को फंड्स देते हैं। यह जांच इसीलिए की जा रही थी कि
अगर यह साबित हो जाता तो उन पर अमेरिका में प्रतिबंध लग जाता। फिर भी एफबीआइ ने 1953 में उनके अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध
लगा दिया। एक अखबार में एक चित्र दिखाया गया था, जिसमें मोन्स्योर वेरडाउ दिखाने वाले एक थियेटर के बाहर न्यू जर्सी कैथोलिक
लीजन के लोग हाथ में प्लेकार्ड ले कर धरना दे रहे थे। उन लोगों के हाथों में जो
बोर्ड थे, उन पर लिखा था, चार्ली कॉमरेड है
देशद्रोही को
देश से बाहर निकालो
चैप्लिन बहुत
दिन तक मेहमान बन कर रह लिया
चैप्लिन, कृतघ्न और कम्युनिस्टों से सहानुभूति रखने
वाला
चैप्लिन को रूस
भेजो
एक असमानता पर
टिके हुए वर्गीय समाज में विसंगतियों, त्रासदियों और मानवीय उल्लास के पलों को अपनी फिल्मों में दिखाने वाले इस
कलाकार के बारे में जितना कुछ लिखा और कहा गया, और जिसे दुनिया भर की जनता का जितना प्यार मिला, शायद ही किसी दूसरे फिल्मी कलाकार को वैसा
प्यार मिला हो।
चार्ली को याद
करते हुए उनकी आत्मकथा के दो अंश महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें से एक में वे अपनी
फिल्म ग्रेट डिक्टेटर के दौरान अमेरिका में कम्युनिस्ट कह कर प्रताड़ित किए जाने
के प्रसंग के बारे में बता रहे हैं। चार्ली को कम्युनिस्ट होने के आरोप में
अमेरिका में इस तरह सताया गया कि चालीस साल इस देश में बिताने के बाद उन्हें हार
कर स्विटजरलैंड में जाकर बसना पड़ा। यह प्रसंग आज भारत में लेखकों, कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों को माओवादी
कह कर उन्हें सताए जाने की याद दिलाता है। आत्मकथा के दूसरे हिस्से में वे
तत्कालीन चीनी राष्ट्राध्यक्ष चाऊ एन लाई से मुलाकात और माओत्से तुंग के नेतृत्व
में चीनी क्रांति के बारे में अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। अंत में चार्ली का द
ग्रेट डिक्टेटर के आखिर में दिया गया भाषण है, जिसमें वे साम्राज्यवादी युद्धों और वर्गीय शोषण के खिलाफ बोल रहे हैं।
अमेरिका और दूसरी साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा इराक और अफगानिस्तान जैसे देशों
और भारतीय राज्य द्वारा अपने ही देश की जनता के खिलाफ विकास के नाम पर थोपे गए
युद्ध के दौर में इस भाषण को फिर से पढ़ा/देखा जाना चाहिए.।
द ग्रेट
डिक्टेटर के अंत में चार्ली का भाषण था - मुङो खेद है लेकिन, मैं शासक नहीं बनना चाहता।
ये मेरा काम
नहीं है। किसी पर भी राज करना या किसी को भी जीतना नहीं चाहता। मैं तो किसी की
मदद करना चाहूंगा- अगर हो सके तो- यहूदियों की, गैर यहूदियों की- काले लोगों की- गोरे लोगों की।
हम सब लोग एक-दूसरे
की मदद करना चाहते हैं।
मानव होते ही
ऐसे हैं। हम एक-दूसरे की खुशी के साथ जीना चाहते हैं- एक-दूसरे की तकलीफों के
साथ नहीं।
हम एक-दूसरे
से नफरत और घृणा नहीं करना चाहते।
इस संसार में
सभी के लिये स्थान है और हमारी यह समृद्ध धरती सभी के लिये अन्न-जल जुटा सकती
है।
जीवन का
रास्ता मुक्त और सुन्दर हो सकता है लेकिन, हम रास्ता भटक गये हैं। लालच ने आदमी की आत्मा को विषाक्त कर दिया है-
दुनिया में नफरत की दीवारें खड़ी कर दी हैं- लालच ने हमें जहालत में, खून खराबे के फंदे में फसा दिया है। हमने
गति का विकास कर लिया लेकिन, अपने आपको गति में ही बंद कर दिया है। हमने मशीनें बनायीं, मशीनों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन, हमारी मांगें और बढ़ती चली गयीं। हमारे
ज्ञान ने हमें सनकी बना छोड़ा है; हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम बना दिया। हम बहुत ज्यादा सोचते हैं और
बहुत कम महसूस करते हैं। हमें बहुत अधिक मशीनरी की तुलना में मानवीयता की ज्यादा
जरूरत है। इन गुणों के बिना जीवन हिंसक हो जायेगा।
सदी के सातवें
दशक में चैपलिन को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि चैपलिन का जन्म वेस्ट मिडलैंड के स्मेथविक
में एक जिप्सी समुदाय में हुआ था। पत्र में हिल ने चैपलिन से कहा कि वह एकमात्र
जीवित व्यक्ति हैं, जो उनके जन्म
के रहस्य को जानते हैं।
हिल ने दावा
किया कि चैपलिन के पिता के साथ उनके पिता ने काम किया था। हिल के इस पत्र को
चैपलिन ने अपने कमरे की एक दराज में रख दिया था। हिल्स की मौत 1977 में हो गई थी। लंदन में जन्मे चैपलिन ने
अपनी जिन्दगी के आखिरी 25 साल
स्विट्जरलैंड में बिताए और 25 दिसम्बर 1977 को यहीं पर इस
महान व्यक्ति ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
बहरहाल, इन तमाम विवादों के बावजूद हॉलीवुड में
चार्ली की धाक बनी रही और उनकी अभिनय तथा निर्देशकीय क्षमता का सभी ने सम्मान
किया। द ट्रैम्प
उनका सबसे
मशहूर किरदार रहा, जिसे उन्होंने
हास्य फिल्मों के लिहाज से मील का पत्थर मानी जाने वाली फिल्म किड आटो रेसेस एट
वेनिस (1914) में पहली बार
निभाया था। चार्ली ने कुछ बोलती फिल्में भी बनाईं लेकिन, उनकी पहचान मुख्यत: मूक फिल्मों से ही बनी।
द ग्रेट
डिक्टेटर (1940) उनकी पहली
बोलती फिल्म थी। इस फिल्म में उन्होंने इतिहास के क्रूरतम तानाशाह कहे जाने वाले
एडोल्फ हिटलर का किरदार अदा किया था। यह फिल्म भी सवालों के घेरे में आई थी।
पर्दे पर
शब्दों के बिना चित्र उजागर करने वाला बेहतरीन अभिनेता बिना कुछ बोले चल बसा।
कोरसिए सुवैवे में स्थानीय चर्च में ही उन्हें दफना दिया गया। 1978 में इस मशहूर कामेडियन के शव को दो चोरों
ने कब्र से निकल लिया और चैपलिन की पत्नी उना से फिरौती मांगनी शुरू कर दी। जब उन्होंने
फिरौती की रकम देने से मना किया तो उन्होने चैपलिन के छोटे बेटे को जान से मार
देने की धमकी भी दी। करीब 3 महीने की मशक्कत के बाद चैपलिन के शव को चुराने वालों को गिरफ्तार कर लिया
गया जिन्होंने उन्हें पास के एक गांव में मक्के के खेत में दफना दिया था। इस
घटना के बाद चैपलिन के शव को वापस निकालकर दूसरी जगह दफनाया गया।
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational
story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करनाचाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:facingverity@gmail.com.पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और
फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Source – KalpatruExpress News Papper
|
OnlineEducationalSite.Com
सोमवार, 16 जून 2014
महान हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिन
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें