प्रसिद्ध शायर
फैज अहमद फैज ने असरार उल हक मजाज को इंकलाब का गायक कहा है। वैसे मजाज ने
रोमांटिक गजलें और नज्में भी खूब लिखीं। 1911 में लखनऊ के निकट बाराबंकी के रुदौली कस्बे
में जन्मे मजाज पढ़ाई में अच्छे नहीं थे, लखनऊ और अलीगढ़ विश्वविद्यालय में पढ़ाई की पर शायरी में अधिक रुझन रहा।
मजाज ने दिल्ली और कुछ दूसरे नगरों में नौकरी की। वे आल इण्डिया रेडियो की उर्दू
पत्रिका के सम्पादक रहे। लेकिन अपनी मिट्टी से दूर उनका कहीं मन नहीं लगा तो फिर
वर्ष 1936 में वह लखनऊ
वापस आ गए। वह मुम्बई भी गए लेकिन वापस फिर लखनऊ का ही रुख किया।
मजाज की ‘आवारा’ नज्म को काफी प्रशंसा मिली। बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना, तेरी जुल्फों का पेंचोखम नहीं है., तिरे माथे पे यह आंचल बहुत ही खूब है लेकिन, तू इस आंचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा
था., हुस्न को
बेहिजाब होना था, शौक को कामयाब
होना था. जैसी कितनी ही रचनाएं आज भी लोगों को खूब याद हैं। दिमाग की नस फट जाने
से वर्ष 1956 में उनका
देहांत लखनऊ में हुआ और उन्हें निशातगंज कब्रिस्तान में दफनाया गया।
उनकी मजार की
स्थिति बदहाल ही है, टूटी-फूटी सी
इस मजार पर कभी कोई झंकने भी नहीं जाता। सुनसान पड़ी इस कब्र पर उनका नाम भी मिट
चुका है, ऐसे में उसे
ढूंढ पाना भी आसान नहीं है।
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Source – KalpatruExpress News Papper
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शनिवार, 7 जून 2014
मजाज: ऐ गमे-दिल क्या करूं.
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