प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता
है। इसी दिन बेहतर स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवन शैली के प्रति जागरूकता के तहत 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की
गई थी। तबसे लेकर आज तक यह दिन पूरी दुनिया में इस संकल्प के साथ मनाया जाता है
कि स्वास्थ्य समस्याओं को निरंतर प्रयास के साथ न केवल हराना है बल्कि एक स्वस्थ
और रोगमुक्त विश्व की स्थापना भी करनी है। हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन एक नया
संकल्प और एक नई थीम रखता है, जिसमें दुनिया भर को यह संदेश दिया जाता है
कि उस थीम से संबंधित बीमारियों का किस तरह से मुकाबला किया जा सकता है और सभी
देशों में उस थीम से संबंधित विषय पर कार्य भी होता है, जिसे अभियान के तौर पर चलाया जाता है। इस
बार की थीम है वेक्टर बॉर्न डिसीज यानी रोगाणुवाहकों द्वारा उत्पन्न होने वाली
बीमारियां। स्मिता सिंह की रिपोर्ट..
डेंगी -
डेंगी एक
संक्रामक रोग है, जो एडीज
इजिप्टी मच्छरों के काटने से होता है। इस रोग में तेज बुखार के साथ शरीर के उभरे
चकत्ताें से खून रिसता है। कई मामलों में यह रोग जानलेवा भी हो सकता है। जहां यह
महामारी के रूप में फैलता है वहां एक समय में अनेक प्रकार के विषाणु सक्रिय हो
सकते है। यह मच्छर दिन में काटता है। डेंगी को ब्रेक बोन बुखार के नाम से भी
जाना जाता है।
डेंगी की
पहचान डॉक्टर प्राय: लक्षणों के आधार पर करते हैं, जिनमें बहुत तेज बुखार जिसका कोई और कारण न हो, सारे शरीर पर चकत्ते पड़ जाना, रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाना
आदि शामिल होते हैं।
मलेरिया-
मलेरिया प्रतिवर्ष 51.1 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है तथा 10 से 30 लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है। मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों
में से एक है तथा भंयकर जन स्वास्थ्य समस्या है। यह रोग प्लाज्मोडियम गण के
प्रोटोजोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है।
मलेरिया के
परजीवी का वाहक मादा एनाफिलीज मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल
रक्त कोशिकाओं में प्रवेश करके बहुगुणित होते हैं जिससे रक्तहीनता के लक्षण
उभरते हैं(चक्कर आना, सांस फूलना, नाड़ी का तेज चलना आदि)। इसके अलावा
अविशिष्ट लक्षण जैसे कि बुखार, सर्दी, उबकाई, और जुकाम जैसे लक्षण भी दिखते हैं। गंभीर
मामलों में मरीज बेहोश हो सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।
चिकनगुनिया-
चिकनगुनिया लम्बे समय तक चलने वाला रोग है, जिसमें जोड़ों मे भारी दर्द होता है। इस
रोग का उग्र चरण तो मात्र 2 से 5 दिन के लिये
चलता है किंतु जोड़ों का दर्द महीनों या हफ्तों तक तो बना ही रहता है। यह बीमारी
एडीज मच्छर के काटने से होती है। यह विषाणु ठीक उसी लक्षण वाली बीमारी पैदा करता
है जिस प्रकार की स्थिति डेंगी रोग में होती है। इस रोग को पूरी तरह से अपना असर
दिखाने में 2 से 4 दिन का समय लगता है।
रोग के
लक्षणों मे 102 फेरेनहाइट तक
का ज्वर, धड़ और फिर
हाथों एवं पैरों पर चकत्ते बन जाना, शरीर के विभिन्न जोड़ों में पीड़ा होना शामिल है।
इसके अलावा
सिरदर्द, रोशनी से डर
लगना, आंखों मे दर्द
भी होता है । बुखार आम तौर पर दो से ज्यादा दिन नहीं चलता तथा अचानक समाप्त होता
है , लेकिन अन्य
लक्षण जिनमें अनिद्रा तथा निर्बलता भी शामिल है। आम तौर पर 5 से 7 दिन तक चलते हैं। रोगियों को लम्बे समय तक जोडों का दर्द हो सकता है जो उनकी
उम्र पर निर्भर करती है।
कॉलरा-
यह विषाणुजन्य रोग है।
जिसकी मुख्य
संवाहक मक्खियां होती हैं। यह पानी और गंदगी से फैलता है। जो व्यक्ति खाने के
पहले या खाना बनाने के वक्त हाथ नहीं धोते या उन्हें यह रोग होने का खतरा ज्यादा
होता है। जहां पर पानी की व्यवस्था या मल नि:सारण व्यवस्था ठीक न हो वहां यह रोग
तेजी से फैलता है। इसलिये गांवों में यह समस्या ज्यादा होती है। हालांकि महामारी
के रूप में फैलने वाले कॉलरा पर अब नियंत्रण मिल चुका है। इस बीमारी में शरीर
पानी या अन्य कुछ पचा नहीं पाता। इसी वजह से मरीज के शरीर में पानी की कमी हो
जाती है। उसे थकान महसूस होती है।
रोगी को चक्कर
आता है और पेट दर्द होता है।
डॉक्टर कॉलरा
की चिकित्सा के लिये मल का परीक्षण करते हैं। खून में कॉलरा के विषाणु नहीं
दिखाई देते।
अतिसार या
डायरिया-
डायरिया में या तो बार-बार मल त्याग करना
पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले
दस्त, जिनमें जल का
भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े
समय के अंतर से आते रहते हैं। जल्दी-जल्दी दस्त होना, पेट में तेज दर्द होना, पेट में मरोड़ पड़ना, उल्टी आना, बुखार होना, कमजोरी महसूस
होना डायरिया के लक्षण हैं। इस रोग की संवाहक भी मक्खी होती है।
टायफाइड-
टायफाइड सबसे अधिक मुंह के जरिये खाने-पीने की
ऐसी प्रदूषित वस्तुओं से फैलता है, जिसमें साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु मौजूद हो। यदि टायफाइड का रोगी किसी
गंदी वस्तु को छूने के बाद अपने हाथों को कीटाणुनाशक साबुन से नहीं धोता और
उन्हीं हाथों से खाने-पीने की व अन्य वस्तुओं को स्पर्श करता है, यदि इस स्थिति में कोई दूसरा स्वस्थ
व्यक्ति उन्हीं वस्तुओं को छूकर साबुन से हाथ धोए बगैर कोई खाद्य पदार्थ ग्रहण
करता है तो वह भी टायफाइड के बैक्टीरिया से संक्रमित हो सकता है।
टायफाइड से
ग्रस्त रोगियों को अक्सर 103 या 104 डिग्री
फैरेनहाइट तक बुखार चढ़ सकता है। इसके अतिरिक्त रोगी को सिरदर्द, बदन दर्द, भूख में कमी, सुस्ती, दस्त होना, सीने के निचले भाग और पेट के ऊपरी भाग पर गुलाबी या लाल रंग के धब्बे
(रैशेस) दिखना। टायफाइड का समुचित इलाज नहीं कराने पर व्यक्ति बेहोश हो सकता है।
बीमारी के दूसरे या तीसरे सप्ताह के दौरान रोगी में धीरे-धीरे सुधार आना शुरू
होता है। ज्यादातर मामलों में रोगी प्रारंभिक इलाज से स्वस्थ हो जाता है।
रोगाणु वाहकों
द्वारा होने वाली बीमारियों में कई तरह की बीमारियां शामिल हैं, जिनमें कुछ मच्छरों द्वारा होती हैं तो कुछ
मक्खियों द्वारा। इस दोनों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारियों में कई हमारे देश
में आम हैं। जिनसे हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं।
मच्छर जनित बीमारियां- डेंगी, मलेरिया, चिकनगुनिया मक्खी जनित बीमारियां-
कॉलरा, डायरिया, टायफाइड
मक्खी-मच्छर से रहें बचकर चिकित्सक की राय
वेक्टर बॉर्न डिसीज में मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारियां जैसे मलेरिया, डेंगी आदि शामिल हैं। इनसे बचाव के लिए
पूरी बांह के कपड़े पहनना, मच्छरदानी का प्रयोग करना, मॉस्क्यूटो क्वाइल लगाना चाहिए। इस मौसम में यह रोग ज्यादा होते हैं। इसलिए
घर के आस-पास सफाई रखना जरूरी है। हालांकि कॉलरा, डायरिया जैसी वाटर बॉर्न डिसीज में मक्खियां संवाहक का कार्य करती हैं, इसलिए इन्हें भी वेक्टर बॉर्न डिसीज की
श्रेणी में शामिल किया जाता है। इनसे बचने के लिए सफाई महत्त्वपूर्ण है।
डा. मृदुल
चतुव्रेदी, सीनियर
फिजीशियन एसएस मेडिकल कॉलेज, आगरा
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Source – KalpatruExpress News Papper
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गुरुवार, 5 जून 2014
मक्खी-मच्छर से रहें बचकर
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