एक आदमी एक निर्माणधीन मंदिर को देखने गया.
तभी उन्होंने देखा की एक मूर्तिकार भगवान् की
मूर्ति बना रहा हैं.
वो उसके पास गए और उसे काम करते देखने लगे.
तभी उन्होंने ध्यान दिया की पास में ही हुबहू
एक और मूर्ति पड़ी हुई हैं.
उन्होंने पूछा “क्या तुम एक जैसी दो मूर्तियाँ बना रहे हो?”
मूर्तिकार अपने काम में मग्न था. उसने बिना
अपना सर उठाये ही कहा “नहीं”.
“तो फिर तुम दो मूर्तियाँ क्यों बना रहे हो?”
” हमें एक ही मूर्ति चाहिए पर पहली मूर्ति
बनाते वक़्त थोड़ी ख़राब हो गयी.” वो अभी भी अपना काम कर रहा था
उस आदमी ने मूर्ति को उठाया और जाचने लगा. पर
उसे कोई भी खराबी नजर नहीं आई.
“कहाँ से ख़राब हो गयी हैं ये?”
“नहीं ये तो मंदिर के बाहर 20 फीट ऊँचे खम्बे पर लगाने के लिए बनायीं गयी
हैं.”
” अगर ये मूर्ति इतनी ऊपर लगने वाली है तो भला
इतनी छोटी सी गलती को कोई कैसे देख लेता. तुम तो पहले वाली मूर्ति को ही रख सकते
हो. किसे पता पड़ेगा?”
इस बार मूर्तिकार ने उसकी तरफ देखा और
मुस्कुरा कर कहा
” मुझे तो पता होगा, और भगवान् को भी पता होगा.”
कहानी का सार : हमारे कार्य में हमारी प्रगति
और हमारे सिखने की इच्छा का इस बात से कोई नाता नहीं होना चाहिए की कोई इसकी
तारीफ़ कर रहा है या नहीं.
यदि हमें हमारे कार्य में स्वयं मजा और ख़ुशी
प्राप्त हो रही है तो कभी न कभी हमें appreciation मिलेगी ही. हमें उस मूर्तिकार की तरह ही काम के
perfection
पर ध्यान
देना चाहिए.
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Courtesy- Hindisoch.net
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