गुरुवार, 10 जुलाई 2014

युवाओं को सही दिशा देने की आवश्यकता



युवाओं की ऊर्जा अक्षुण्ण, यश अक्षय, पराक्रम अपराजेय, आस्था अडिग और संकल्प अटल होता है 
और अपने इन्हीं गुणों की बदौलत वह असंभव को भी संभव बनाने की क्षमता रखता है।
इतिहास गवाह है कि न सिर्फ अपने देश में बल्कि पूरे विश्व में युवा पुरातन अवधारणाओं और 
 अवनतिकारी रीतियों को चुनौती देते हुए समाज में एक नए सकारात्मक बदलाव का परचम 
 लहराते रहें हैं। भारतीय इतिहास में तो युवाशक्ति का एक गौरवशाली अतीत है। टीपू सुल्तान 
और वीरांगना लक्ष्मीबाई जैसी युवाशक्तियों ने अपने पराक्रम , सूझ-बूझ, धैर्य और साहस की जो 
मिशालें पेश कीं, वे अद्भुत हैं। सच तो यह है कि भारत के स्वाधीनता संग्राम को युवाशक्ति ने ही 
अंजाम तक पहुंचाया । वीर सावरकर, चापेकर उबंधु, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव,
अशफाक उल्ला खां, सुभाष चन्द्र बोस तथा रास बिहारी बोस आदि आजादी की लड़ाई में युवाशक्ति 
के ही प्रतिनिधि थे, जिन्होनें अग्रेजों को खदेड़ कर ही दम लिया । युवाओं की अहमियत कल भी 
थी, आज भी है और हमेशा रहेगी, काल व परिस्थितियां भले ही कितनी भी बदल जाएं।
यदि वर्तमान भारत की बात की जाए तो यह दुनिया का सबसे युवा देश है। इसलिए इसे दुनिया 
भर में उम्मीद की नजरों से देखा जा रहा है। युवा आबादी देश की तरक्की को रफ्तार दे सकती
 है।
जैसा कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है कि हमारे पास युवा संसाधन के रूप में अपार 
सम्पदा है और यदि समाज के इस वर्ग को सशक्त बनाया जाए तो हम महाशक्ति के लक्ष्य को 
2020 से पहले ही हासिल कर सकते हैं। परन्तु आज के युवाओं को देखें तो अधिकांश भटकाव की 
स्थिति में नजर आते हैं। ऐसा नहीं है कि वह अपने दम पर तरक्की पाने को प्रय}शील नहीं हैं,
इसके लिए वह जी तोड़ मेहनत भी कर रहे हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि उन्हें बेहतर दिशा-निर्देश और उपयुक्त मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है। यह हमेशा से महत्त्वपूर्ण रहा है कि शक्ति के इस भण्डार को 
सही दिशा- निर्देश और संचालन मिले। हमेशा ही आवश्यकता पड़ी है ऐसे पथ-प्रदर्शक की, जो 
अच्छे मूल्यों व सिद्धान्तों का संचार कर युवाओं के जीवन को बेहतर दशा और दिशा दे सके।
पुरातन काल में आदर्श व्यक्तित्व की तलाश ईश्वरीय शक्तियों, देवी-देवताओं और उनके अवतारों 
में की जाती थी। न सिर्फ उनकी पूजा होती थी बल्कि ग्रन्थ रूपी उनके जीवन वृतांत के संदेश 
और सार को जीवन में उतारने की कोशिश भी की जाती थी। मर्यादा पुरुषोत्तम राम, सोलह 
कलाओं से संपूर्ण कृष्ण , सती-साध्वी, सीता, ईसा मसीह, गौतम बुद्ध, मोहम्मद साहब आदर्श पुरुष 
और महिला होने के मानक थे। फिर दौर आया शासकों में आदर्श ढूंढने का । शुरुआत हुई राजाओं
 से- सत्यवादी हरिश्चंद्र , अकबर महान, न्यायप्रिय विक्रमादित्य, ज्ञान के प्रकाश से प्रबोधित अशोक 
आदि। इसी श्रृंखला में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राजनेताओं को जनता के आदर्श का दर्जा 
मिला। गांधी , नेहरू, मौलाना आजाद , भगत सिहं, सुभाष चंद्र बोस जैसी शख्सियतों ने देश प्रेम
समाजसेवा , नैतिकता, त्याग, कर्मठता, कर्तव्यपालन और परिश्रम जैसे अमूल्य गुणों का संचार 
जनमानस में किया । इस प्रकार हर नए युग में कुछ नए आदर्श व्यक्तित्व और उनके मूल्य 
पुरानी फेहरिस्त में जुड़ते गए। परंतु आज के युग का दुखद विरोधाभास है कि एक तरफ 
राजनीति, खेल, फिल्म जगत, मीडिया आदि में प्रसिद्ध और विख्यात लोगों की संख्या तो बढ़ती जा 
रही है लेकिन उनमें रोल मॉडल मिलना एक अपवाद सा हो गया है । आज भी आइडल शब्द 
सुनते ही गांधी -नेहरू का ही याद आना इस बात का परिचायक है कि देश में उच्च स्तर के 
समकालीन आदर्श व्यक्तित्वों का अभाव है। आज के ज्यादातर नेताओं, अभिनेताओं, खिलाड़ियों 
और अन्य विख्यात लोगों के जीवन दर्शन और जमीनी काम लोगों को प्रभावित नहीं करते हैं 
बल्कि उनकी प्रसिद्धि, पद और संपत्ति प्रभावित करती है। राजनीतिक- समाजिक नेतृत्व के 
आभाव में युवा शक्ति बिखर सी गयी है और सुनहरे भारत की परिकल्पना जैसे खत्म होती जा 
रही है, जो भारत के लिए शुभ संकेत नहीं है।
हमारे यहां राजनीति लोगों के जीवनस्तर को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। राजनीति में 
शामिल लोग जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के आधार पर समाज को बांटकर अपनी राजनीतिक दुकान 
चलाते हैं। उनकी कोशिश हमेशा आम जनता को बरगलाने की होती है। वह सब कुछ अपने वोट 
बैंक को ध्यान में रखकर करते हैं। इस लिहाज से वे समाज को बाटंने में कामयाब भी हो जाते 
हैं। ऐसे में युवाओं की भूमिका सबसे अहम हो जाती है। देश में 18 साल की उम्र से मतदान करने 
का अधिकार मिला हुआ है, युवाओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए और अपने 
जनप्रतिनिधियों का चुनाव सोच समझकर करना चाहिए। अगर हम राजनीति में ईमानदारी और 
स्वच्छ छवि के लोगों को चुनेंगे तो वह हमें बेहतर शासन दे पाएंगे। युवाओं को इस दिशा में 
सक्रियता दिखानी होगी।
ऐसे समय में हमारे समाज को अलग-अलग क्षेत्रों से ऐसे आदर्शो की जरूरत है जो युवा पीढ़ी को 
 सकारात्मक और बेहतर रास्ता दिखा सके ।
एक तरफ जो शहरी युवा वर्ग है, जो आधुनिक है, संसाधनों तक उसकी पहुंच ज्यादा है। वह खुद 
 को बेहतर मानव संसाधन में तब्दील करने के बेहद करीब है। जबकि दूसरी तरफ ग्रामीण तबका
 है जो अब तक मुख्यधारा का हिस्सा नहीं बन सका है। ऐसे में जरूरत सबको बराबरी के मौके 
देने की भी है। यह जिम्मेदारी सरकार की बनती है कि वह अपने युवाओं को विकास में हिस्सेदार 
बनाए, उन्हंे तरक्की के लिए बराबरी का मौका मुहैया कराए। ऐसा नहीं होने पर समाज में 
असंतोष बढ़ेगा और हम अपने मानव संसाधन के इस्तेमाल से जो प्रगति कर सकते हैं, उससे भी 
वंचित रह जाएंगे। दरअसल समाज में हर युवा को बराबरी के मौके मिलें, इस पर सरकार का 
ध्यान नहीं जाता ।
यह एक चिंतित करने वाली बात है। हमारे यहां राजनीति लोगों के जीवनस्तर को सबसे ज्यादा 
 प्रभावित करती है। राजनीति में शामिल लोग जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के आधार पर समाज को 
बांटकर अपनी राजनीतिक दूकान चलाते हैं।
उनकी कोशिश हमेशा आम जनता को बरगलाने की होती है। वह सब कुछ अपने वोट बैंक को 
ध्यान में रखकर करते हैं।
इस लिहाज से वे समाज को बाटंने में कामयाब भी हो जाते हैं। ऐसे में युवाओं की भूमिका सबसे 
 अहम हो जाती है। देश में 18 साल की उम्र से मतदान करने का अधिकार मिला हुआ है, युवाओं 
को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए और अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव सोच 
समझकर करना चाहिए। अगर हम राजनीति में ईमानदारी और स्वच्छ छवि के लोगों को चुनेंगे 
तो वह एक बेहतर शासन दे पायेगा। युवाओं को इस दिशा में काफी सक्रियता दिखानी होगी। 
हालांकि आज की उपभोक्तावादी संस्कृति में युवाओं का ध्यान राजनीति से हट रहा है लेकिन 
शासन व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए उसमें युवाओं की सक्रिय भागीदारी बेहद जरूरी है। 
अन्ना के आंदोलन के दौरान ईमानदारी और स्वच्छ शासन के प्रति युवाओं की दिलचस्पी उभरकर 
 सामने आयी। इसके अलावा, युवाओं को बेहतर मानव संसाधन बनाने के लिए शिक्षा के स्तर को 
बेहतर करने की जरूरत है। पिछले 30-40 सालों में दुनिया काफी बदल चुकी है और विकसित 
देशों में पढ़ाई का तौर तरीका बेहद आधुनिक और इंटरएक्टिव हो चुका है। वहीं हमारे स्कूलों और
 कॉलेजों में अब भी पंरपरागत तौर पर पढ़ाई हो रही है। यह बात सही है कि हमारे युवा कठिन 
मेहनत कर आज, कम्प्यूटर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लीडर बने हुए हैं, लेकिन अगर हम शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाते तो तस्वीर और भी दमदार हो सकती थी।
मौजूदा समय में देश की शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर बनाए जाने की जरूरत है। स्कूल से लेकर प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों तक को नए सिरे से समायोजित करने की जरूरत है।
बदलते समय में हमारी जरूरतें भी बदल रहीं हैं।
शिक्षा को बेहतर करने के लिए हमें निश्चित तौर पर विकसित देशों का अनुसरण करना चाहिए।
इससे हमारा फायदा ही होगा नुकसान नहीं। शिक्षा के जरिए इंसान खुद की तरक्की कर सकता है।
मौजूदा शैक्षणिक व्यवस्था के जरिये आपको रोजगार हासिल हो जायेगा, यह दावे से नहीं कहा जा 
सकता है। युवाओं को रोजगारोन्मुखी शिक्षा देने की जरूरत है। ऐसी शिक्षा व्यवस्था के साथसा थ 
देश में काम करने के मौकों को भी बढ़ाए जाने की जरूरत है। यह तभी होगा जब देश प्रगति 
 करेगा। देश की प्रगति युवाओं के लिए जरूरी है, और युवाओं की तरक्की से देश प्रगति की राह 
पर आगे बढ़ेगा । इस संबंध को ज्यादा मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। देश में शिक्षा का 
स्तर अभी बहुत बेहतर नहीं है। नागरिक सुविधाएं भी तीसरी दुनिया की याद दिलाती हैं। गरीबी 
और बेरोजगारी की समस्या अपनी जगह कायम है।
महंगाई से मिडिल क्लास का जीना मुहाल होता जा रहा है। ऐसे में उम्मीद की किरण देश के 
 युवाओं में नजर आती है। इसकी झलक बीते साल मिली भी है । देश में एक के बाद एक 
 घोटाले सामने आए। इन घोटालों पर लोगों का विरोध भी जमकर सामने आया है। आम लोगों के 
अंसतोष ने बताया है कि समाज में जागरूकता का स्तर बढ़ रहा है। देश की तरक्की के लिए 
आने वाले दिनों में समाज भ्रष्टाचार और लेट- लतीफी को खत्म करना ही होगा और इसकी 
जिम्मेदारी युवा पीढ़ी पर ही है। राजनीति से लेकर प्रशासन तक, कारोबार से लेकर खेल की 
दुनिया तक और अन्य माध्यमों में युवा पीढ़ी का दखल बढ़ रहा है। आज की युवा पीढ़ी जितनी 
जागरूक होगी, उसका हस्तक्षेप उतना ही मजबूत होगा।
सुखद यह है कि इसे युवा पीढ़ी भी समझ रही है।
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Source – KalpatruExpress News Papper









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