अमूमन बुरे
वक्त में अपनी गलतियों और कमजोरियों को परखने के बजाय दूसरों में दोष तलाशने की
जिजीविषा के चलते बच्चे अपनी असफलताओं के लिए भी अपने माता-पिता को जिम्मेदार
मान लेते हैं। वे यह मानते हैं कि आज उनकी परेशानियों और उनके पिछड़ेपन की वजह
उनके माता-पिता ही हैं। यह भी कहना आसान होता है कि माता-पिता ने सही समय पर
फैसले नहीं लिये, नहीं तो आज
मैं यहां होता, ये बन जाता।
युवा होते बच्चे अक्सर परिवार की आर्थिक स्थिति के लिए भी अपने माता-पिता को ही
दोषी मानते हैं कि उन्होंने प्रॉपर्टी नहीं ली, उन्होंने कहीं पैसे लगाए होते तो हमारी
आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होती। शैक्षणिक पिछड़ेपन के लिए भी ऐसे आरोप आम हैं।
बेशक माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को अच्छा भविष्य दें, लेकिन यह भी सच है कि हर माता-पिता अपनी तरफ
से बच्चों के लिए बेहतरीन प्रयास ही करते हैं। अपनी सीमाओं और अपनी क्षमताओं में
वे बच्चों को अच्छा भविष्य देने की श्रेष्ठ कोशिश करते हैं जिसे समझने के साथ ही
उसकी सराहना जरूरी है।
सफलता की दौड़
में अपने साथियों को आगे निकलता देख अपने माता-पिता की कमजोरियों का आकलन नहीं
किया जाना चाहिए।
अपने
माता-पिता के प्रति गुस्सा व्यक्त करके या अपनी मौजूदा असफलताओं और निराशाओंे के
लिए उन्हें दोषी ठहराकर सकारात्मक तरीके से आगे नहीं बढ़ा जा सकता है।
इस तरह आपके
मन में कटुता और निराशा पैदा होती है और आप हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं। यह
तात्कालिक रूप से तो आपके लिए ढाल की तरह काम कर सकता है, लेकिन लंबे समय में इससे कोई फायदा नहीं
मिलता है बल्कि यह आपके स्वभाव को चिड़चिड़ा बनाता है। अपनी असफलता के लिए माता
िपता को जिम्मेदार ठहराने से पहले हमें कुछ महत्त्वपूर्ण बातों पर विचार करना
चाहिए।
प्रेम से
जीतें अभिभावकों को-
अपने अभिभावकों का सम्मान करें।
उनकी गलतियों
को भूलें और उनकी अच्छाइयों को देखें। इस तरह आपके हृदय में शांति और प्रेम पैदा
होगा। यह प्रेम आपको संसार जीतने में मदद करेगा। जब हम अभिभावक से गुस्सा होते
हैं तो हम अपने मन में क्रोध को दबाकर रखते हैं जो नुकसान करता है।
सम्बंधों के
लिए खुद पहल करें अगर आप अपने माता-पिता से किसी बात पर नाराज हैं तो उनके साथ
बातचीत से इसका हल निकालें। कभी भी अपने माता-पिता से यह अपेक्षा न रखें कि वे
आपसे बातचीत की शुरूआत करेंगे, बल्कि यह पहल आपकी तरफ से होनी चाहिए।
उनका आकलन न
करें-
अपने अभिभावक को किसी भी पैमाने पर तोलने से
बचें। सफलता की दौड़ में अपने साथियों को आगे निकलता देख अपने माता-पिता की
कमजोरियों का आकलन नहीं किया जाना चाहिए। इस तरह आपको निराशा ही हाथ लगेगी और आप
अपने मन में अच्छा महसूस नहीं करेंगे।
माता-पिता को
ठेस भी लगती है-
जब हम इस तरह का आकलन करते हैं तो यह भूल जाते
हैं कि हमारे अभिभावक का अपना जीवन भी था।
हम उनके दुखों, पीड़ाओं और संघर्षो के बारे में विचार करना
भूल जाते हैं।
कई बच्चे यह
नहीं समझ पाते हैं कि माता-पिता के प्रति यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे
बुजुर्गावस्था में उन्हें इस तरह की बातों से आहत न करें।
कोई भी
उत्कृष्ट नहीं होता-
हममें से कोई भी उत्कृष्ट नहीं होता और इसलिए
माता-पिता से यह कहना कि उन्होंने अपनी तमाम जिम्मेदारियां अच्छे से नहीं निभाईं, हमारी उनसे अति अपेक्षा है। जिस तरह आज
हमसे गलतियां होती हैं, अभिभावकों की
गलतियों की वजह से उनके प्रति हमेशा के लिए शिकायत का भाव रखना ठीक नहीं है।
अतीत में न
अटकें –
अपने आज के
लिए माता-पिता को दोष देने पर हम अपने अतीत में लौटने लगते हैं और वर्तमान की
उपेक्षा करने लगते हैं। हमारे आज में यह बात मायने नहीं रखती कि हमारे अभिभावकों
ने बीते कल में हमारे लिए क्या किया और क्या नहीं किया बल्कि अपने वर्तमान की
जिम्मेदारी हमें स्वयं लेनी चाहिये। जब हम अपने आज को बेहतर बनाने के लिए प्रयास
कर रहे हैं तो वहां अच्छे और बुरे की जिम्मेदारी स्वयं ही लेनी चाहिये। जो अपने
माता-पिता के प्रति असंतुष्टि का भाव रखते हैं, वे अपने बच्चों के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पाते हैं।
माता-पिता के प्रति गुस्सा या खीझ जानेअ नजाने वे अपने बच्चों को भी सौंपने लगते
हैं। इस तरह जीवन का निर्मल आनंद जाता रहता है और संबंधों में कटुता आती है। आप
अगर बीती बातों को भुलाकर आगे जाने के लिए तैयार हैं तो देखिए जीवन के नए मायने
सामने आने लगेंगे।
कमजोरी नहीं
है कोमलता-
अगर आपको लगता
है कि माता-पिता से आपको स्वभाव में अत्यंत कोमलता मिली है तो वह आपकी कमजोरी
नहीं है बल्कि वह आपकी शक्ति है। हमें अपने माता-पिता से जो भी गुण और जो भी
संपदा मिलती है, उसे संतोष के
साथ ग्रहण करना चाहिए। अगर माता-पिता से आपको विनम्रता मिली है, चालाकी नहीं तो यह मानना चाहिए कि इसमें
आपके लिए संतुष्टि और शांति भी छिपी है। अगर आप बुजुर्गो से मिली खूबियों पर
ध्यान केन्द्रित करेंगे तो उनका फायदा भी आपको जीवन में नजर आने लगेगा। इसी तरह
अगर आपने व्यवहार की कुछ चीजें सीखी हैं तो वे अपने अभिभावकों को भी बताना चाहिए
और उनके पुराने तौर-तरीकों में समय के अनुसार संशोधन के लिए परस्पर सहमति बनाना चाहिए।
हर बात हर समय सीखी जा सकती है तो सिखाई भी जा सकती है।
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Source –
KalpatruExpress News Papper
|
OnlineEducationalSite.Com
सोमवार, 18 अगस्त 2014
अभिभावकों पर न डालें अपनी असफलता की जिम्मेदारी
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