मंगलवार, 12 अगस्त 2014

ओजपूर्ण कविता के धनी माखनलाल चर्तुवेदी : १५ अगस्त पर विशेष


आजादी के संघर्ष में भारत माता के अनेक देशभक्तों ने मातृभूमि को स्वतंत्र कराने हेतु अपने-अपने तरीके से प्रयास किया। क्रान्तिकारी वीरों ही नही, अपितु कलम को हथियार मानने वाले अनेक साहित्यकारों ने भी जन-जागरण में जोश  Makhanlal Chaturvedi भरने के लिए कई वीर रस की कविताओं का सृजन किया। आजादी के आन्दोलन में अनेक कवियों के काव्य में देशभक्ति का जज़बा स्पष्ट दिखाई दे रहा था। एक ओर बमकिम चन्द्र का वन्दे मातरम् और इकाबाल का सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमार, जन-जन की वाणीं बनकर आजादी का आगाज कर रहा था। तो दूसरी तरफ जय शंकर प्रसाद का गीत, “अमर्त्य वीर-पुत्र, दृण-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पन्थ है, बढे चलो बढे चलो”, देश भक्तों में उत्साह का संचार कर रहा था। ऐसे में आजादी के आंदोलन में देशभक्त माखनलाल चर्तुवेदी की अभिलाषा अनेक वीरों के लिए प्रेरणा स्रोत रही। कवि माखनलाल चर्तुवेदी जी फूल को माध्यम बनाकर अपनी देशभक्ति की भावना को कविता के रूप में प्रकट करते हैं -
चाह नही, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नही सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर पर चडूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोङ लेना वनमाली!
उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृ-भूमि पर शीश चढाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।।
कविता का आशय है कि, पुष्प कहता है कि मेरी इच्छा किसी सुंदरी या सुरबाला के गहनें में गुथने की नही है। मेरी इच्छा किसी प्रेमी की माला बनने में भी नही है। मैं किसी सम्राट के शव पर भी चढना नही चाहता और ना ही देवताओं के मस्तक पर चढकर इतराना चाहता हूँ। मेरी तो अभिलाषा है कि मुझे वहाँ फेंक दिया जाये जिस पथ से मातृ-भूमि की रक्षा के लिये वीर जा रहे हों।
माखनलाल चर्तुवेदी की ये कविता “पुष्प की अभिलाषा” 18 फरवरी 1922 को लिखी गई थी। यानी लगभग आठ दशक पहले। उस समय आजादी का संघर्ष देश में पूरे जोर-शोर से चल रहा था। आजादी के संघर्ष में माखनलाल चर्तुवेदी कई बार जेल गये थे। उन्होने अपनी अभिलाषा को फूल के माध्यम से बहुत ही सरल तरीके से जन-जन मे फैलाया। ऐसे देशभक्त कवि माखनलाल चर्तुवेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश में हुआ था। वे बचपन में बेहद शरारती थे और तुकबंदी में बाते करते थे। सत्रह साल की उम्र में खंडवा में पढाना आरंभ कर दिये थे। अध्यापन के दौरान ही उनका सम्पर्क क्रान्तिकारियों से हुआ।
देशप्रेम की ललक उनमें बहुत गहरे में समाई हुई थी। वे क्रान्तिकारियों की हर संभव मदद किया करते थे। वकील कालूराम जी गंगराडे के सहयोग से सन् 1913 में ‘प्रभा’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। जिसमें चर्तुवेदी जी संपादन सहयोगी रहे। देशभक्ति की भावना और साहित्य की सेवा का जज़बा इतना अधिक था कि उसी वर्ष नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। 1915 में जब माखनलाल चर्तुवेदी सिर्फ पच्चीस वर्ष के थे, तो उनकी पत्नी का देहांत हो गया। उसके बाद उन्होने दुबारा विवाह नहीं किया और देश की आजदी के लिए स्वयं को सर्मपित कर दिया। माधवराव सप्रे को वे अपना साहित्यिक गुरू मानते थे। प्रसिद्ध देशभक्त गंणेश शंकर विद्यार्थी के भी संपर्क में रहे। 17 जुलाई 1920 को गाँधी जी से प्रेरित होकर उन्होंने ‘कर्मवीर’ नामक राष्ट्रीय साप्ताहिक को प्रकाशित किया, जिसका प्रकाशन तीस सालों तक होता रहा। अपने राजनीतिक विचारों और गतिविधियों तथा उग्र राष्ट्रीय लेखन के कारण कई बार जेल गये। 1920 में असहयोग आन्दोलन के दौरान महाकौशल अंचल से गिरफ्तारी देने वाले वे पहले व्यक्ति थे। साहित्य के प्रति भी उनकी गहरी आस्था थी। उन्होने सिर्फ कविताएं ही नही लिखी बल्कि अनेक नाटकों, कहानियों और निबंधो का भी सृजन किया। माखनलाल चर्तुवेदी अच्छे वक्ता भी थे। उन्होने आजादी के पहले अंग्रेज सत्ता का विरोध किया तो बाद में देश का शोषण करने वाले पूँजीपतियों पर भी अपनी कलम के माध्यम से प्रहार किया। उन्होने अपने बारे में एक बार लिखा था कि,
“मेरी धारणाओं के निर्माण में विंध्या और सतपुङा के ऊँचे-नीचे पहाङ, आङे-तिरछे घुमाव, उनके बीहङ नदी-नालों के कभी कलकल स्वर और कभी चिघाह, उसमें मिलने वाले हिंसक जन्तु तथा मेरा पीछा करने वाली अंग्रेज पुलिस, इनके सम्मिश्रण से ही मेरे जीवन और साहित्य का निर्माण हुआ है।“
सच्चे देशभक्त और प्रकृति प्रेमी माखनलाल चर्तुवेदी जी को आजादी के उपरान्त अनेक पुरस्कारों से अंलंकृत किया गया। ‘पुष्प की अभिलाषा’ और ‘अमर राष्ट्र’ जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया। 1963 में भारत सरकार द्वारा आपको ‘पद्मभूषण से अलंकृत किया गया। 10 सितम्बर 1967 को आपने राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में इस अलंकरण को लौटा दिया। देशभक्त एवं सच्चे पत्रकार माखनलाल चर्तुवेदी जी की याद में भोपाल में 1990 में माखनलाल चर्तुवेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। सन् 1968 में ओजपूर्ण रचनाकार देशभक्त पत्रकार माखनलाल चर्तुवेदी जी का निधन हो गया। मानवता के प्रतीक माखनलाल चर्तुवेदी भारत की आत्मा हैं। आपकी ओजपूर्ण रचनाएं आज भी अनेक देशभक्त वीरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में माखनलाल चर्तुवेदी जी के योगदान को शत् शत् नमन करते हैं।
जय भारत
अनिता शर्मा

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