सोमवार, 18 अगस्त 2014

क्या शक है सबसे बड़ा दुश्मन?


What is the worst enemy doubt?

जहां से विश्वास टूटता है, वहीं से शक की शुरूआत होती है। यह सही है कि सभी पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता, लेकिन जब कोई अपने करीबी लोगों या छोटी-छोटी बातों पर शक करने लगे तो यह स्थिति उसके लिए ठीक नहीं है। इसलिए जहां तक संभव हो शक को आदत में तब्दील न होने दें।
क्यों होता है ऐसा?
किसी भी इंसान के व्यक्तित्व को संवारने या बिगाड़ने में उसके बचपन के परिवेश का बहुत बड़ा योगदान होता है।
अगर किसी का बचपन असुरक्षित माहौल में बीता हो, रंग-रूप, आर्थिक स्थिति या अन्य कारण से हीनभावना हो तो उस व्यक्ति के मन में शक की भावना स्थायी रूप से घर कर जाती है। अगर इसे सही समय पर दूर न किया जाए तो आगे चलकर कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी हो सकती हैं।
     प्रमुख लक्षण
1-     करीबी लोगों पर अविश्वास
2-     उदास रहना
3     - हमेशा यह सोचना कि कोई मेरे साथ धोखाधड़ी कर लेगा।
    कैसे करें बचाव -

1-     अपनी समस्या को पहचान कर उसे दूर करने की कोशिश करें।
2-     समस्या की जड़ को खुद ही ढूंढ़ने की कोशिश करें कि कहीं कोई ऐसा अनुभव तो नहीं हुआ, जिससे आपके विश्वास को ठेस पहुंची हो।
3-     सकारात्मक सोच वाले लोगों से दोस्ती बढ़ाएं और उनकी बातों से अपने अंदर बदलाव लाने की कोशिश करें।
4-     कभी कुछ ऐसे काम करें, जिससे आपको अपनी यह आदत सुधारने में मदद मिले। मसलन किसी परिचित को जरूरी काम सौंपना आदि।
5-     ध्यान रखें कि विश्वास करने वाला नहीं, बल्कि धोखा देने वाला गलत होता है।
6-     अगर कभी आपके मन में किसी के लिए शक की भावना पैदा तो उससे बात करके गलतफहमी दूर कर लें।
7-     किसी एक बुरे अनुभव के आधार पर अन्य लोगों के बारे में गलत धारणा न रखें। दूसरों को भी मौका दें कि वे आपके सामने खुद को सही साबित कर सकें।
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Source – KalpatruExpress News Papper




लहरों पर लहराती कला और परम्परा-
भागदौड़ भरी जिन्दगी में कला और परम्परा ही नहीं, उन पर होने वाले बहस-मुबाहिसों से भी कटते जा रहे समाज को फिर से एक मंच पर लाने के लिये ब्रrापुत्र नदी में एक नाव उतरा रही है, जो लोगों को एक-दूसरे से मिलने, बातें करने, एक-दूसरे को सुनने और हर तरह की रचनात्मकता को फलने-फूलने की सुंदरतम साझ जगह कही जा सकती है। यह विचार देश-विदेश में विजुअल आर्टिस्ट, आर्किटेक्ट और कल्चरल स्टडीज स्कॉलर इंद्राणी बरुआ ने अपने प्रोफेशन से ऊबने के बाद और कुछ रचनात्मक कर दिखाने की मंशा से अपने गृह राज्य असम में हकीकत में उतारा है। उनके प्रोजेक्ट कल्चरल रिइमेजिनेशंस स्टेज-3’ को फाउंडेशन फॉर इंडियन कंटेम्परेरी आर्ट्स ने पब्लिक ग्रांट दी और स्थानीय बांस शिल्पियों और नौका कारीगरों के साथ मिलकर इंद्राणी ने सुंदर बेड़े को ब्रrापुत्र में उतारा। लहर की तरह बनी नौका कलाकारों में रचनात्मक उत्साह जगाती है और ब्रrापुत्र किनारे बसे शहरों और गांवों के लोगों को सृजन के रूप दिखाने के साथ ही अपनी माटी से जुड़ने और कला को सहेजने के लिये जागृत करती है। इंद्राणी के अनुसार यह स्थानीय कलाकारों, शिल्पियों, लेखकों, पर्यावरणविदों, शिक्षकों और अन्य बुद्धिजीवियों के लिये एक विशाल मंच है, जो सर्व समाज से सीधे जुड़ जाता है।
जैसे-जैसे नौका ब्रrापुत्र में आगे बढ़ती है, नदी के साथ विचारों की यात्रा भी परवान चढ़ती है। इस यात्रा में कला और पर्यावरण के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी चर्चा की जाती है, ताकि संकट का हल निकालने की दिशा में अगर कोई पहल संभव दिखे तो उसे आगे बढ़ाया जा सके।
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