गुरुवार, 25 सितंबर 2014

Om Prakash Chautala Profile In Hindi

Om Prakash Chautala – हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला

Om Praksh Chautala
ओम प्रकाश चौटाला का जीवन परिचय
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला का जन्म 1 जनवरी, 1935 को सिरसा, हरियाणा के एक छोटे से गांव में हुआ था. ओम प्रकाश चौटाला की शिक्षा-दीक्षा उनके गृहनगर में ही हुई थी. पूर्व उप मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल के पुत्र, ओम प्रकाश चौटाला युवावस्था से ही राजनीति में रुचि रखने लगे थे. चौधरी देवी लाल ने हरियाणा संघर्ष समिति के संरक्षण में न्याय युद्ध चलाया, जिसका उद्देश्य हरियाणा के लोगों को न्याय दिलवाना और उनकी आवाज सरकार तक पहुंचाना था. ओम प्रकाश चौटाला ने न्याय युद्ध के प्रबंध और आयोजन की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया था. राज्य में भ्रष्टाचार को समाप्त करने और कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा बचाओ, समस्त हरियाणा और कानून रैली जैसे सार्वजनिक सभाओं का आयोजन और प्रबंधन कर चुके हैं.

ओम प्रकाश चौटाला का राजनैतिक सफर
ओम प्रकाश चौटाला पांच बार (1970, 1990, 1993, 1996 और 2000) हरियाणा विधान सभा के सदस्य रह चुके हैं. वर्ष 1989 में ओम प्रकाश चौटाला पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद वह 1990, 1991 और 1999 में भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में विजयी हुए. 1999 में ओम प्रकाश चौटाला नरवाना और रोरी दोनों निर्वाचन क्षेत्र से जीते थे. इन दोनों विकल्पों में से ओम प्रकाश चौटाला ने नरवाना निर्वाचन क्षेत्र को अपने लिए बेहतर समझा. वह वर्ष 1987-1990 तक राज्य सभा के सदस्य भी रहे. 24 मई, 1996 को वह विधानसभा में विपक्ष के नेता चुने गए. 1999 में ओम प्रकाश चौटाला भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चुने गए. इस दौरान वह हरियाणा राज्य की जनता दल इकाई और राष्ट्रीय समाजवादी जनता पार्टी के महासचिव भी रहे. ओम प्रकाश चौटाला अखिल भारतीय लोक दल के किसान कामगर सेल के अध्यक्ष भी रहे.

ओम प्रकाश चौटाला से जुड़े विवाद
बहुचर्चित रुचिका हत्याकांड के आरोपी पुलिस महानिदेशक को बरी करवाने की कोशिश के कारण ओम प्रकाश चौटाला को कई आरोपों का सामना करना पड़ा.

1995 में ओम प्रकाश चौटाला ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से पानी निकाल पाने और स्थानीय लोगों के पुनर्वास को लेकर तत्कालीन सरकार का विरोध किया. विधान सभा सदस्य पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने स्थानीय नागरिकों के हितों को लेकर सरकारी नीतियों का पुरजोर विरोध किया. इस विरोध ने उन्हें जनता में और अधिक लोकप्रिय बना दिया.

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