अहिंसा को अपना धर्म मानने वाले मोहनदास कर्मचंद गांधी(Mohandas Karamchand Gandhi) स्वाधीनता संग्राम के राजनैतिक और आध्यात्मिक नेता थे. सत्याग्रह, अहिंसा और सादगी को ही एक सफल मनुष्य जीवन का मूल मंत्र मानने वाले गांधी जी के इन्हीं आदर्शों से प्रभावित होने के बाद रबिंद्रनाथ टैगोर ने पहली बार उन्हें महात्मा अर्थात महान आत्मा का दर्जा दिया था. गांधी जी ने अपना जीवन सत्य की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया था. अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं अपनी गलतियों पर प्रयोग करना प्रांरभ किया. अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी आत्मकथा “माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ” में संकलित किया था. अंग्रेजी शासनकाल में गांधी जी के नेतृत्व में देशभर में महिलाओं के अधिकारों और धार्मिक एवं जातीय एकता को बढ़ावा देने के लिए कई आंदोलन चलाए गए. उन्होंने अस्पृश्यता को जड़ से समाप्त करने के लिए भी कई यात्राएं की. लेकिन विदेशी शासन से मुक्ति दिला भारत की जनता को आजाद कराना ही महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का सबसे प्रमुख लक्ष्य था. गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाए गए नमक कर के विरोध में 1930 में दांडी मार्च और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भारतीय स्वतंत्रा सेनानियों का नेतृत्व कर प्रसिद्धि प्राप्त की.
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का जीवन परिचय
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के नाम से लोकप्रिय मोहनदास कर्मचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर गुजरात में हुआ था. पोरबंदर उस समय ब्रिटिश शासन के अंतर्गत बंबई प्रेसिडेंसी का एक भाग था. उनके पैतृक घर को आज कीर्ति मंदिर के नाम से जाना जाता है. महात्मा गांधी के पिता कर्मचंद गांधी पोरबंदर राज्य के दीवान थे. उस समय समाज में बाल विवाह का प्रचलन था. इसी प्रथा का अनुसरण करते हुए बाल्यावस्था में ही महात्मा गांधी का विवाह कस्तूरबा गांधी से संपन्न हुआ था. कस्तूरबा गांधी को महात्मा गांधी के अनुयायी और जनता “बा” के नाम से पुकारती थी. जब महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) पंद्रह वर्ष के थे तब उनकी पहली संतान का जन्म हुआ. लेकिन कुछ ही दिनों में उसकी मृत्यु हो गई. इस घटना के एक वर्ष के भीतर ही मोहनदास कर्मचंद के पिता का भी निधन हो गया था. इसके बाद कस्तूरबा गांधी और महात्मा गांधी के चार पुत्र हुए. एक औसत विद्यार्थी के तौर पर महात्मा गांधी ने पोरबंदर से प्राथमिक और राजकोट से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. मोहनदास कर्मचंद का परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहता था. लेकिन वह पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं रखते थे. इसीलिए कई परेशानियों के बाद उन्होंने भावनगर स्थित सामलदास कॉलेज से मैट्रिक की परीक्षा पास की. 4 सितंबर, 1888 को गांधी जी लंदन स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज में कानून की पढ़ाई करने और बैरिस्टर की ट्रेनिंग लेने के लिए इंगलैंड चले गए. लंदन में रहने के दौरान महात्मा गांधी ने अपने पहनावे और बोलचाल में विदेशी संस्कृति को ग्रहण कर लिया था लेकिन खान-पान के मामले में वह शुद्ध शाकाहारी ही थे. किंतु जल्द ही उन्हें अपनी माता के गुजर जाने का समाचार प्राप्त हुआ. उन्हें वापस भारत आना पड़ा.
दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकार आंदोलन (1893-1914)
वर्ष 1893 मेंमहात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने दक्षिण अफ्रीका के औपनिवेशिक क्षेत्र नटाल स्थित एक भारतीय फर्म, दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी में काम करने का एक वर्ष का करार किया. दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी भी भारतीयों के साथ होते भेदभाव के शिकार हुए. उन्हें ट्रेन का फर्स्ट क्लास टिकट होने के बावजूद थर्ड क्लास में यात्रा करने को कहा गया और ऐसा ना करने पर उन्हें चलती ट्रेन से धक्का दे दिया गया. दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए महात्मा गांधी ने रंग भेद की नीति के खिलाफ भी कई आंदोलन किए.
वर्ष 1915 में भारत लौटने के पश्चात महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता गोपाल कृष्ण गोखले के संपर्क में आए. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में आम जनता के हितों को लेकर अपनी आवाज उठाते थे. वर्ष 1917 और 1918 में गांधी जी ने खाद्य वस्तुओं की अपेक्षा नील और गैर खाद्य वस्तुओं की खेती के विरोध में चंपारन और खेड़ा सत्याग्रह किया. इसके बाद गांधी जी ने अपने अनुयायियों समेत देशभर के लोगों को एकत्र कर अहिंसा पर बल देते हुए असहयोग आंदोलन की शुरूआत की. उन्होंने भारतीय नागरिकों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और स्वदेशी चीजों को अपनाने पर जोर दिया. 1920 के दशक में गांधी जी की लोकप्रियता चरम पर थी. वर्ष 1930 में उन्होंने अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नमक कानून को तोड़ने के लिए डांडी यात्रा भी की.
Courtesy-http://days.jagranjunction.com/
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