सरदार वल्लभ भाई पटेल |
सरदार वल्लभ भाई पटेल (अंग्रेज़ी: Sardar Vallabhbhai Patel; जन्म- 31 अक्टूबर, 1875; मृत्यु- 15 दिसंबर, 1950) का उपनाम 'सरदार पटेल' है। सरदार पटेल भारतीय बैरिस्टर और प्रसिद्ध राजनेता थे। भारत के स्वाधीनता
संग्राम के दौरान 'भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस' के नेताओं में से वे एक थे। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन वर्ष वे उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना
मंत्री और राज्य मंत्री रहे थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद क़रीब पाँच सौ से भी
ज़्यादा देसी रियासतों का एकीकरण सबसे बड़ी समस्या थी। कुशल कूटनीति और जरूरत
पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए उन्होंने उन अधिकांश रियासतों को तिरंगे के तले लाने में सफलता प्राप्त की। इसी उपलब्धि के चलते
सरदार पटेल को लौह पुरुष या भारत का
बिस्मार्क की उपाधि से
सम्मानित किया गया। उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिया गया।
जीवन परिचय
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875, नाडियाड गुजरात, भारत में हुआ था।
सरदार पटेल का जन्म लेवा पट्टीदार जाति के एक समृद्ध ज़मींदार परिवार में हुआ था।
वे झवेरभाई पटेल एवं लाड़बाई की चौथी संतान थे। सोमभाई, नरसीभाई और विट्ठलदास झवेरभाई पटेल उनके अग्रज थे। पारम्परिक हिन्दू माहौल में पले-बढ़े पटेल
ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त
की, लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से अर्जित किया। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया, 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और
ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे
उन्हें वक़ालत करने की अनुमति मिली। 1900 में उन्होंने गोधरा में स्वतंत्र ज़िला अधिवक्ता कार्यालय
की स्थापना की और दो साल बाद खेड़ा ज़िले के बोरसद नामक स्थान पर चले गए।
परिवार
सरदार पटेल के पिता झबेरभाई एक धर्मपरायण व्यक्ति थे।
गुजरात में सन् 1829 में स्वामी
सहजानन्द द्वारा
स्थापित स्वामी नारायण पंथ के वे परम भक्त थे। 55 वर्ष की
अवस्था के उपरान्त उन्होंने अपना जीवन उसी में अर्पित कर दिया था। वल्लभभाई ने
स्वयं कहा है : ‘‘मैं तो साधारण कुटुम्ब का था। मेरे पिता मन्दिर में ही
ज़िन्दगी बिताते थे और वहीं उन्होंने पूरी की।’’ वल्लभभाई की
माता लाड़बाई अपने पति के समान एक धर्मपरायण महिला थी। वल्लभभाई पाँच भाई व एक बहन
थे। भाइयों के नाम क्रमशः सोभाभाई, नरसिंहभाई, विट्ठलभाई, वल्लभभाई और काशीभाई थे। बहन
डाबीहा सबसे छोटी थी। इनमें विट्ठलभाई तथा वल्लभभाई ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग
लेकर इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया। माता-पिता के गुण संयम, साहस, सहिष्णुता, देश-प्रेम का प्रभाव वल्लभभाई के चरित्र पर स्पष्ट था।
वक़ालत
वकील के रूप में पटेल ने कमज़ोर मुक़दमे को सटीकता से
प्रस्तुत करके और पुलिस के गवाहों तथा अग्रेज़ न्यायाधीशों को चुनौती देकर विशेष
स्थान अर्जित किया। 1908 में पटेल की
पत्नी की मृत्यु हो गई। उस समय उनके एक पुत्र
और एक पुत्री थी। इसके बाद उन्होंने विधुर जीवन व्यतीत किया। वक़ालत के पेशे में
तरक़्क़ी करने के लिए कृतसंकल्प पटेल ने मिड्ल टेंपल के अध्ययन करने के लिए अगस्त 1910 में लंदन की यात्रा की। वहाँ उन्होंने मनोयोग से अध्ययन
किया और अंतिम परीक्षा में उच्च प्रतिष्ठा के साथ उत्तीर्ण हुए।सरदार वल्लभ भाई पटेल |
अग्रणी बैरिस्टर
फ़रवरी 1913 में भारत
लौटकर वह अहमदाबाद में बस गए और तेज़ी से उन्नति करते हुए अहमदाबाद अधिवक्ता
बार में अपराध क़ानून के अग्रणी बैरिस्टर बन गए। गम्भीर और शालीन पटेल अपने
उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त, अंग्रेज़ी पहनावे के लिए जाने
जाते थे। वह अहमदाबाद के फ़ैशनपरस्त गुजरात क्लब में ब्रिज के चैंपियन होने के
कारण भी विख्यात थे। 1917 तक वह भारत
की राजनीतिक गतिविधियों के प्रति उदासीन रहे।
सार्वभौमिक रूप
1917 में मोहनदास
करमचन्द गांधी से प्रभावित
होने के बाद पटेल ने पाया कि उनके जीवन की दिशा बदल गई है। पटेल गांधी के सत्याग्रह (अंहिसा की
नीति) के साथ तब तक जुड़े रहे, जब तक वह अंग्रेज़ों के
ख़िलाफ़ भारतीयों के संघर्ष में क़ारगर रहा। लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को गांधी
के नैतिक विश्वासों व आदर्शों के साथ नहीं जोड़ा और उनका मानना था कि उन्हें
सार्वभौमिक रूप से लागू करने का गांधी का आग्रह, भारत के
तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अप्रासंगिक है। फिर भी
गांधी के अनुसरण और समर्थन का संकल्प करने के बाद पटेल ने अपनी शैली और वेशभूषा
में परिवर्तन कर लिया। उन्होंने गुजरात क्लब छोड़ दिया, भारतीय
किसानों के समान सफ़ेद वस्त्र पहनने लगे और उन्होंने भारतीय खान-पान को अपना लिया।
भारतीय निगम आयुक्त के रूप में
1917 से 1924 तक पटेल ने अहमदनगर के पहले भारतीय निगम आयुक्त के रूप में सेवा प्रदान की और 1924 से 1928 तक वह इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष रहे। 1918 में पटेल ने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी वर्षा से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद बम्बई सरकार
द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने गुजरात के कैरा ज़िले में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की
रूपरेखा बनाई। 1928 में पटेल ने
बढ़े हुए करों के ख़िलाफ़ बारदोली के भूमिपतियों के संघर्ष का सफलतापूर्वक नेतृत्व
किया। बारदोली आन्दोलन के कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें सरदार की उपाधि मिली और
उसके बाद देश भर में राष्ट्रवादी नेता के रूप में उनकी पहचान बन गई। उन्हें
व्यावहारिक, निर्णायक और यहाँ तक कि कठोर भी माना जाता था तथा अंग्रेज़ उन्हें एक ख़तरनाक शत्रु मानते थे।
राजनीतिक दर्शन
पटेल क्रान्तिकारी नहीं थे, 1928 से 1931 के बीच इंडियन नेशनल कांग्रेस के
उद्देश्यों पर हो रही महत्त्वपूर्ण बहस में पटेल का विचार था (गांधी और मोतीलाल नेहरू के समान, लेकिन जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र
बोस के विपरीत) कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लक्ष्य स्वाधीनता नहीं, बल्कि
ब्रिटिश राष्ट्रकुल के भीतर अधिराज्य का दर्जा प्राप्त करने का होना चाहिए। जवाहरलाल नेहरू के विपरीत, जो स्वतंत्रता के लिए संघर्ष
में हिंसा की अनदेखी करने के पक्ष में थे, पटेल नैतिक
नहीं, व्यावहारिक आधार पर सशस्त्र आन्दोलन को नकारते थे। पटेल का
मानना था कि यह विफल रहेगा और इसका ज़बरदस्त दमन होगा। गांधी की भाँति पटेल भी
भविष्य में ब्रिटिश राष्ट्रकुल में स्वतंत्र भारत की भागीदारी में लाभ देखते थे।
बशर्ते भारत को एक बराबरी के सदस्य के रूप में शामिल किया जाए। वह भारत में
आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास क़ायम करने पर ज़ोर देते थे, लेकिन गांधी के विपरीत, वह
हिन्दू-मुस्लिम एकता को स्वतंत्रता की पूर्व शर्त नहीं मानते थे।
सामाजिक बदलाव
बलपूर्वक आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाने की आवश्यकता के बारे
में पटेल जवाहरलाल नेहरू से असहमत थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों से उपजे रूढ़िवादी
पटेल ने भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना में समाजवादी विचारों को अपनाने की
उपयोगिता का उपहास किया। वह मुक्त उद्यम में यक़ीन रखते थे। इस प्रकार, उन्हें रूढ़िवादी तत्वों का विश्वास प्राप्त हुआ तथा उनसे
प्राप्त धन से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की गतिविधियाँ संचालित होती रहीं।
जेल
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में पटेल, गांधी के
बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे। गांधी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को स्वीकृत
होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और पटेल पर भी नाम
वापस लेने के लिए दबाव डाला। इसका प्रमुख कारण मुसलमानों के प्रति
पटेल की हठधर्मिता थी। अंतत: जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने। 1930 में नमक
सत्याग्रह के दौरान
पटेल को तीन महीने की जेल हुई। मार्च 1931 में पटेल ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के करांची अधिवेशन की
अध्यक्षता की। जनवरी 1932 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। जुलाई 1934 में वह रिहा हुए और 1937 के चुनावों में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के संगठन को
व्यवस्थित किया। 1937-38 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे। एक
बार फिर गांधी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहर लाल नेहरू
निर्वाचित हुए।अक्टूबर 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ़्तार हुए
और अगस्त 1941 में रिहा
हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जब जापानी
हमले की आशंका हुई, तो पटेल ने गांधी की अहिंसा की नीति को अव्यावहारिक बताकर
ख़ारिज कर दिया। सत्ता के हस्तान्तरण के मुद्दे पर भी पटेल का गांधी से इस बात पर
मतभेद था कि उपमहाद्वीप का हिन्दू भारत तथा मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में विभाजन अपरिहार्य है। पटेल ने ज़ोर दिया कि
पाकिस्तान दे देना भारत के हित में है।
गृह मंत्री कार्यकाल
1945-1946 में भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे। लेकिन
गांधी ने एक बार फिर हस्तक्षेप करके नेहरू को अध्यक्ष बनवा दिया। कांग्रेस अध्यक्ष
के रूप में नेहरू को ब्रिटिश वाइसरॉय ने अंतरिम सरकार के गठन के लिए आमंत्रित
किया। इस प्रकार, यदि घटनाक्रम सामान्य रहता, तो पटेल
भारत के पहले प्रधानमंत्री होते। स्वतंत्र भारत के पहले तीन वर्ष पटेल उप-प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना
मंत्री और राज्य मंत्री रहे। इस सबसे भी बढ़कर उनकी ख्याति भारत के रजवाड़ों को
शान्तिपूर्ण तरीक़े से भारतीय संघ में शामिल करने तथा भारत के राजनीतिक एकीकरण के
कारण है।
एकीकरण में पटेल की भूमिका
5 जुलाई 1947 को सरदार
पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि 'रियासतों को
तीन विषयों - सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल
किया जाएगा।' धीरे धीरे बहुत सी देसी रियासतों के शासक भोपाल के नवाब से अलग हो गये और इस तरह नवस्थापित रियासती विभाग
की योजना को सफलता मिली। भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने
भारतीय संघ में उन रियासतों का विलय किया था जो स्वयं में संप्रभुता प्राप्त थीं।
उनका अलग झंडा और अलग शासक था। सरदार पटेल ने आज़ादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल
में) ही पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये
कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें
स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी
राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें 'भारत संघ' में सम्मिलित हो गयीं। जूनागढ़ के नवाब के
विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में
मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो
सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया।
सरदार पटेल
का योगदान
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण
सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। वास्तव में
वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे। उनके कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम
लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह असीम शक्ति से उन्होंने नवजात
गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया, उसके कारण
विश्व के राजनीतिक मानचित्र में उन्होंने अमिट स्थान बना लिया। भारत के राजनीतिक
इतिहास में सरदार पटेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। सरदार पटेल के
ऐतिहासिक कार्यों और किये गये राजनीतिक योगदान निम्नवत हैं-
§
देशी
राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में
सम्मिलित करना में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा। जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि
वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व क़तई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक
सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने
हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया।
§
सरदार पटेल
के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ
मंदिर का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरण किए
जाते रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा कितनी बलवती थी, इसका उद्धहरण ही काफ़ी है। जब एक बार वे भारतीय युद्धपोत द्वारा बंबई से बाहर यात्रा
पर था तो गोआ के निकट पहुंचने पर उन्होंने कमांडिंग अफसरों से पूछा इस युद्धपोत पर
तुम्हारे कितने सैनिक हैं जब कप्तान ने उनकी संख्या बताई, तो पटेल ने फिर पूछा क्या वह गोआ पर अधिकार करने के लिए
पर्याप्त है। सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले- अच्छा चलो जब तक हम यहां हैं
गोआ पर अधिकार कर लो। किंकर्तव्यविमूढ़ कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की विनती
की तब तक पटेल चौंके फिर कुछ सोचकर बोले-ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा।
§
लक्षद्वीप
समूह को भारत के साथ मिलाने में भी
पटेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए
थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी 15 अगस्त 1947 के बाद मिली। हालांकि यह क्षेत्र पाकिस्तान के नजदीक नहीं
था लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी
स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना
के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए लेकिन वहां भारत का झंडा लहराते देख वे
वापस कराची चले गए।
सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू और महात्मा
गाँधी
महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल औरजवाहरलाल नेहरू |
सरदार पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में वह कई बार जेल के
अंदर बाहर हुए, हालांकि जिस चीज के लिए इतिहासकार हमेशा सरदार वल्लभ भाई
पटेल के बारे में जानने के लिए इच्छुक रहते हैं वह थी उनकी और जवाहरलाल नेहरू की प्रतिस्पर्द्धा। सब जानते हैं 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल ही गांधी जी के बाद दूसरे सबसे प्रबल दावेदार थे पर मुसलमानों के प्रति
पटेल की हठधर्मिता की वजह से गांधीजी ने उनसे उनका नाम वापस दिलवा दिया। 1945-1946 में भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष
पद के लिए भी पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे। लेकिन गांधीजी के नेहरू प्रेम ने
उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया। कई इतिहासकार यहां तक मानते हैं कि यदि सरदार पटेल
को प्रधानमंत्री बनने दिया गया होता तो चीन और पाकिस्तान के युद्ध में भारत को पूर्ण विजय मिलती परंतु गांधी के
जगजाहिर नेहरू प्रेम ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया।
गाँधीजी से रिश्ता
महात्मा गाँधी के प्रति सरदार पटेल की अटूट श्रद्धा थी। गाँधीजी की हत्या
से कुछ क्षण पहले निजी रूप से गाँधीजी से बात करने वाले पटेल अंतिम व्यक्ति थे।
उन्होंने सुरक्षा में चूक को गृह मंत्री होने के नाते अपनी ग़लती माना। उनकी हत्या
के सदमे से वे उबर नहीं पाये। गाँधीजी की मृत्यु के दो महीने के भीतर ही पटेल को
दिल का दौरा पड़ा था।
नेहरूजी से संबंध
जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण थे, जबकि सरदार
पटेल गुजरात के कृषक समुदाय से ताल्लुक रखते थे। दोनों ही गाँधीजी के
निकट थे। नेहरू समाजवादी विचारों से प्रेरित थे। पटेल बिजनेस के प्रति नरम रुख
रखने वाले खांटी हिंदू थे। नेहरू से उनके सम्बंध मधुर थे, लेकिन कई मसलों पर दोनों के मध्य मतभेद भी थे। कश्मीर के
मसले पर दोनों के विचार भिन्न थे। कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थ
बनाने के सवाल पर पटेल ने नेहरू का कड़ा विरोध किया था। कश्मीर समस्या को सरदर्द
मानते हुए वे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर मामले को निपटाना चाहते
थे। इस मसले पर विदेशी हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ थे।
संघ से नाता
गाँधीजी की हत्या में हिंदू चरमपंथियों का नाम आने पर सरदार
पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया और सरसंघचालक एमएस गोलवरकर
को जेल में डाल दिया गया। रिहा होने के बाद गोलवरकर ने उनको पत्र लिखे। 11 सितम्बर, 1948 को पटेल ने जवाब देते हुए संघ के प्रति अपना नजरिया स्पष्ट
करते हुए लिखा कि संघ के भाषण में जहर होता है... उसी विष का नतीजा है कि देश को गाँधीजी के अमूल्य जीवन का बलिदान सहना पड़ रहा है।
लौह पुरुष
सरदार पटेल को भारत का 'लौह पुरुष' कहा जाता है। गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के
विलय की ज़िम्मेदारी उनको ही सौंपी गई। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते
हुए छह सौ छोटी बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया। देशी रियासतों का विलय
स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से पटेल का इसमें विशेष योगदान
था। नीतिगत दृढ़ता के लिए 'राष्ट्रपिता' ने उन्हें
सरदार और 'लौह पुरुष' की उपाधि दी। बिस्मार्क ने जिस
तरह जर्मनी के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसी तरह वल्लभ भाई पटेल ने भी
आजाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। बिस्मार्क को
जहां जर्मनी का ‘आयरन चांसलर’ कहा जाता है
वहीं पटेल भारत के लौह पुरुष कहलाते हैं।
सम्मान और पुरस्कार
§
सन 1991 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित
§
अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय
हवाई अड्डा रखा गया है।
§
गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय है।
निधन
सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई महाराष्ट्र में हुआ था।
Courtesy-http://hi.bharatdiscovery.org/
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