मंगलवार, 26 मई 2015

Success Story Of Channapatna Toy Town Of Karnataka

इस गांव की महिलाएं घर बैठे कमाती हैं 1.80 लाख रु., ओबामा भी हैं इनके मुरीद


                                       (फोटो:खिलौने बनाती चेन्नापटनम गांव की महिलाएं)
नई दिल्ली. बेंगलुरु से 60 किलोमीटर दूर चेन्नपटना से जुड़े नीलसंद्रा गांव के बारे में शायद आपको पता न हो, लेकिन अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोप के कई मुल्क के लोग इसके बारे में जानते हैं। सिर्फ ये नहीं बराक ओबामा भी इस गांव के मुरीद हैं। ये गांव नहीं, बल्कि सटे हुए घरों का एक क्ल्स्टर है। हर घर के बरामदे के नीचे महिलाएं ‘आले मारा’ पेड़ से निकाली गई लकड़ी को तराशती नजर आ जाती हैं। वे उन्हें लाख और कुदरती रंगों से रंगती हैं और पॉलिश कर देती हैं। यही रंग-बिरंगी लकड़ियां खिलौने बनाने वाली कंपनियां खरीद लेती हैं। ये औरतें 8 साल पहले रोजाना 70 रुपए (महीना करीब 2000 रुपए) कमाती थीं, लेकिन आज इनकी रोज की कमाई 500 रुपए (महीने में 15000 रुपए) तक है। इस तरह देखा जाए तो इस गांव की महिलाएं हर साल तकरीबन 1,80,000 रुपए कमा लेती हैं, जो घर चलाने के लिए पर्याप्त है।
भारत यात्रा पर ओबामा को गिफ्ट किए यहां के खिलौने
इस गांव की लोकप्रियता अमेरिका में इतनी है कि भारत यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को यहां के खिलौने तोहफे में दिए गए। अमेरिकी राष्ट्रपति को ये खिलौने बेहद पसंद आए और उन्होंने अगली बार भारत यात्रा के दौरान इस गांव में घूमने की इच्छा व्यक्त की। ओबामा को दिए गए खिलौनों के चलते गांव पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियों में भी रहा। हाल ही में यहां के खिलौनों की बढ़ती लोकप्रियता के चलते राज्य के मुख्यमंत्री को केंद्र सरकार की ओर से सम्मानित किया गया।
ऐतिहासिक काम
दरअसल, इन औरतों की बढ़ती कमाई के पीछे कामयाबी की बड़ी दास्तां है। चेन्नपटना कर्नाटक का आज टॉय टाउन कहलाता है। यहां सैकड़ों सालों से लकड़ी के खिलौने बन रहे हैं। माना जाता है कि मैसूर के राजा टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में पर्सिया से कारीगरों को बुलाया था। तभी से भारत में शिल्पकला आई।

2 शताब्दी से इस कस्बे में बनने वाले खिलौने (ज्यादातर गुड़िया) घरेलू बाजार में बिक जाती थीं, लेकिन चीन के खिलौने आने के बाद यहां के खिलौनों का बाजार तकरीबन खत्म हो गया। मैसूर जाते वक्त जो लोग यहां रुकते थे, बस वे ही इन खिलौनों की खरीददारी करते थे।

कुछ ऐसे चमकी किस्मत
अब इस कस्बे की किस्मत चमक उठी है। कुछ खिलौना बनाने वाली कंपनियों का फोकस वापस लकड़ी से बनने वाले खिलौनों पर बढ़ा है। कुछ ई-कॉमर्स वेबसाइट्स और डिजायनर्स भी इन खिलौनों को मशहूर करना चाहते हैं। राज्य सरकार भी कर्नाटक हैंडीक्राफ्ट्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ चेन्नपटना के करीब 2,000 कारीगरों को मार्केटिंग सपोर्ट उपलब्ध करवा रही हैं।
कारीगरों को मॉडर्न मशीनों के साथ काम करने की ट्रेनिंग दी गई है। वे हर चीज आसानी से प्रोड्यूस कर रहे हैं। अब यहां की बनी मासूम गुड़िया फार्मूला वन पर बैठती है, लकड़ी की बनी तितली अपने पंख फैलाती है और बतख के पैर चलते हैं। नेचुरल डाईज से जुड़ी जानकारी बढ़ने से ये सभी खिलौने इंटरनेशनल मार्केट में छा चुके हैं। यहां हल्दी से पीला रंग, नील के पौधे से नीला और कांची कुमकुम पाउडर से नारंगी और लाल रंग बनाया जाता है।

अब खिलौने जापान और यूरोप जा रहे

नॉन- प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन माया ऑर्गेनिक के चेन्नपटना में 60 कारीगर हैं। 40 दूसरे कारीगरों से वे 10 तरह के खिलौने या उनसे जुड़ी चीजें खरीदते हैं। इस कंपनी ने 2004 में निर्यात शुरू किया। आज यह अपने यहां बने 80 फीसदी से ज्यादा खिलौने जापान, यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और एशिया के दूसरे मुल्कों में बेच रही है। ये वो बाजार हैं, जहां चीन में बनने वाले प्लास्टिक के खिलौनों पर बैन लगा है।
कंपनी के सेल्स मैनेजर ने हाल में एक बयान में कहा कि चेन्नपटना के खिलौनों का बाजार बड़ा हुआ है। बीते पांच सालों में यहां के खिलौनों की कीमतें 20 फीसदी बढ़ी हैं। इस समय यहां 30 रुपए से 1425 रुपए तक के खिलौने मिलते हैं।

ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर उपलब्ध

पिछले कुछ सालों में ई-कॉमर्स वेबसाइट्स ने इन खिलौनों को आसानी से उपलब्ध करा दिया है। क्राफ्ट्सविला डॉट कॉम जैसे मार्केट प्लेस इन्हें बेच रहे हैं। खिलौनों के अलावा चेन्नपटना ने हाथ से बने दूसरे डिजाइनर प्रोडक्ट भी बेचने शुरू किए हैं। यहां लाख से बने लाइट्स, टेबलवेयर, वासेज और कैंडल भी मिलते हैं। इन्हें लैकवेयर की आधुनिक तकनीक के जरिए बनाया जा रहा है। चेन्नपटना में बनने वाले प्रोडक्ट्स को बेंगलुरु एयरपोर्ट पर भी बेचा जा रहा है।

Courtesy-http://money.bhaskar.com

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