नई दिल्ली। धन बढ़ाने का एक ही तरीका है निवेश। लेकिन, बिना उद्देश्य के किया जाने वाला निवेश भी दिशाहीन होता है। हो सकता है उस पर आपको उतना रिटर्न न मिले जितनी आप उम्मीद कर रहे हों। निवेश पर ज्यादा रिटर्न पाने के लिए हम फाइनेंशियल प्लानिंग की प्रक्रिया अपनाते हैं। वास्तव में फाइनेंशियल प्लानिंग एक स्टेप बाई स्टेप प्रोसेस है जो आपके असेट्स के प्रबंधन और आपके भविष्य की फाइनेंशियल जरुरतों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। आइए, आज हम फाइनेंशियल प्लानिंग की इसी स्टेप बाई स्टेप प्रोसेस के बारे में विस्तार से जानते हैं।
अपनी मौजूदा खर्च और बचत का लेखा-जोखा तैयार करें
सबसे पहले मौजूदा फाइनेंशियल स्थिति का जायजा लें। अपनी कुल आय- जिसमें नौकरी, मकान का किराया आदि जैसी आमदनी भी शामिल हो, उसकी गणना करें। उसके बाद अपने सारे खर्च जैसे लोन का रीपेमेंट, मकान का किराया,फोन का बिल, खाने-पीने का खर्च आदि के अलावा निकट भविष्य में होने वाले खर्च को भी शामिल करें। आमदनी में से कुल खर्च घटाने के बाद बची शेष राशि अगर कुल आय का 5-10 फीसदी है तो आपको अपने पैसों के प्रबंधन के लिए गंभीरता से विचार करने की जरुरत है।
लक्ष्य के साथ करें निवेश, बनाएं इमरजेंसी फंड
कोई भी विशेष लक्ष्य चाहे वह पांच-सात साल बाद अपना घर खरीदने का हो या इमरजेंसी फंड बनाने का या तीन साल बाद कार खरीदने का, एक बार इस तरह के लक्ष्य निर्धारित करने से आपमें बचत की प्रवृत्ति विकसित होती है। लक्ष्य हमेशा ही एक समय-सीमा के साथ निर्धारित की जानी चाहिए। अचानक होने वाले हेल्थ प्रॉब्लम एवं दुर्घटनाओं के लिए इमरजेंसी फंड बनाना जरूरी है। फाइनेंशियल प्लानिंग करते समय इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए प्रति महीने एक छोटी राशि बचाने की आदत बना लेनी चाहिए।
ज्यादा रिटर्न के लिए जरूरत से ज्यादा रिस्क न लें
निवेश के विभिन्न विकल्पों में रिस्क यानी जोखिम भी विभिन्न स्तर के होते हैं। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति जितना अधिक जोखिम उठाता है उसकी पूंजी में उतनी अधिक वृद्धि भी हो सकती है और घाटा भी उसी अनुपात में हो सकता है। चाहे आप निवेश के किसी भी इंस्ट्रूमेंट का सहारा लें, आपकी पूंजी को निवेश के उस विकल्प से जुड़े सिस्टेमेटिक एवं अनसिस्टेमेटिक जोखिम से खतरा तो होता ही है। इसलिए निवेश के विकल्प से संबंधित सभी प्रकार के जोखिमों के बारे में पहले ही जान लें। बाजार के जोखिम, ब्याज दर के जोखिम, व्यावसायिक जोखिम, पुनर्निवेश का जोखिम, लिक्विडिटी का जोखिम, विनिमय दर का जोखिम, महंगाई आदि निवेश को प्रभावित करते हैं एवं इनका सीधा प्रभाव आपकी पूंजी और रिटर्न पर पड़ता है।
असेट एलोकेशन का महत्व
सामान्य शब्दों में कहें तो असेट एलोकेशन का मतलब है निवेश की जाने वाली राशि को विभिन्न असेट जैसे कि इक्विटी, डेट, गोल्ड, रियल एस्टेट आदि में बांटना। निवेशक की जोखिम उठाने की क्षमता कितनी है, यह देखते हुए ही निवेश के विकल्प का चुनाव किया जाना चाहिए।
कम उम्र में उठा सकते हैं ज्यादा रिस्क
एक जवान इंसान जिसने कुछ दिनों पहले ही रोजगार प्राप्त किया है, अगर चाहे तो इक्विटी में भारी मात्रा में निवेश कर सकता है। आय एवं उम्र के स्थायित्व की बदौलत वह ज्यादा जोखिम उठा सकता है। लेकिन रिटायरमेंट को कुछ सालों में प्राप्त करने वाला व्यक्ति इक्विटी में कभी उस अनुपात में निवेश नहीं कर सकता है। उसे निवेश का ऐसा विकल्प चाहिए जिसमें नियमित तौर पर कुछ आमदनी होती रहे और पूंजी डूबने का खतरा भी नहीं हो। रिटायर्ड व्यक्ति के निवेश का उद्देश्य भविष्य के लिए धनार्जन करना नहीं बल्कि अपने वर्तमान जीवनशैली को बरकरार रखना होता है।
अगर आपमें निवेश की आदत नहीं है तो यह मत समझिए कि देर हो चुकी है, आज से ही निवेश की शुरुआत कीजिए,फायदे में रहेंगे।
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