सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

मां-वह आइना जिसमें खुद को देखते हैं हम



ईश्वर ने दुनिया बनाई, जब उसे लगा कि वह अकेले इसकी देखभाल नहीं कर सकता तो उसने औरत की रचना की। वह औरत मां, बहन,पत्‍नी और बेटी बनकर हमारे हर सुख-दुख में साथ रहती है। लेकिन औरत का सबसे खूबसूरत रूप है मां। मां एक एहसास है, प्यार भरी लोरी है, जिसे सुनते ही बच्चे को नींद आ जाती है, वह आंख है, जो बच्चे के लिए रात-रात भर जागती है। तावीज बनकर बुरी नजर से बचाती है तो गर्म दुपहरी में छांव बन जाती है। मां सुबह की नर्म-मुलायम धूप है, जो तन-मन में ऊर्जा जगा देती है, हवा है- छू कर गुजरे तो दिल को सुकून मिल जाता है, वह आंचल है, जिसमें छुप कर हम दुनिया की हर तकलीफ को भुला देते हैं, वह गोद है जो हमारी ख्वाबगाह बन जाती है। मां कोई जादूगर है, जो हमारे मन की हर बात समझ जाती है, जिसे हमारा चेहरा देखते ही समझ आ जाता है कि हमें क्या चाहिए। मां वह आईना है, जिसमें हम खुद को देखते हैं और खुदा को महसूस करते हैं।
फिर से नई शुरुआत सारी चिंताओं से मुक्त होने के बाद वह मातृत्व से इतर अपने स्वतंत्र अस्तित्व की अभिव्यक्ति कर सकती है, अपने शौक जगा सकती है और जीवनसाथी के साथ फिर से सुहाने सफर की शुरुआत कर सकती है। एक नन्हीं चिड़िया से प्रेरणा लें। कैसे वह तिनका-तिनका चुनकर घोंसला बनाती है, बच्चों को खिलाती-बड़ा करती है। एक दिन बच्चे बड़े हो जाते हैं और उड़ जाते हैं। घोंसला खाली रह जाता है। लेकिन यह भी जरूरी है कि युवा बच्चों को, खासतौर पर अगर वे विवाहित हों तो बिना मांगे कोई सलाह देने से बचें। हां, जरूरत के समय उन्हें अवश्य मदद दें, उन्हें सहयोग दें, लेकिन इस दौर में अधिक जरूरी यह है कि अपने सामाजिक रिश्ते आगे बढ़ाएं, भाई-बहनों, संबंधियों और दोस्तों से नजदीकी बढ़ाएं और नए शौक पैदा करें।
चुनौतियां तो यहां भी हैं औरत के लिए बड़ी चुनौती है संयुक्त परिवारों को जोड़े रखना। परिवार के साथ उन्हें मानसिक-भावनात्मक बल मिलता है। बच्चों से पेरेंटिंग के तौर-तरीकों को लेकर विवाद संभव है, लेकिन सोचें कि जैसे कुम्हार अपनी इच्छानुसार मिट्टी को आकार देना चाहता है, उसी तरह हर माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश अपने हिसाब से करना चाहते हैं।
खुश रहें, संतुष्ट रहें शरीर की सीमाएं हैं, लेकिन मन की कोई सीमा नहीं। शरीर चुकने लगे तो मन को जवां बनाएं। अपनों का साथ हो तो उम्र का यह दौर बहुत संबल देता है। इस दौर में अगर दो पीढ़ियां तीसरी पीढ़ी को अपने-अपने समय के सर्वोत्तम मूल्य दे सकें तो बहुत अच्छा हो। नानी-दादी प्रेरणादायक कहानियां सुना सकती हैं, मूल्यों व परंपराओं के बारे में बता सकती हैं। थोड़ी-सी समझदारी से मातृत्व का यह चौथा पड़ाव खूबसूरत बन सकता है, बस जरूरत है युवाओं को भी दृष्टिकोण बदलने की। अपनी आंखों में नई दुनिया बसाएं और मां के इस सफरनामे में खुशनुमा अध्याय जोड़ें।
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Source – KalpatruExpress News Papper

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