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प्रश्न-
  अनुवांशिक रोगों में ज्यादातर किन आशंकाओं की जांच की जाती है?  
 
उत्तर- अनुवांशिक रोगों की जांच के लिए
  विभिन्न प्रकार के स्क्रीनिंग टेस्ट अलग-अलग आयु वर्ग, 
विवाह के पहले  
या बाद में, गर्भावस्था के दौरान या जन्म के पश्चात
  नवजात शिशुओं में किए जाते हैं। बीटा  
थैलेसीमिया भारत में सबसे आम अनुवांशिक
  रोगों में से एक है जिसके लिए स्क्रीनिंग टेस्ट शादी  
के तुरंत बाद अथवा
  गर्भावस्था के शुरुआती एक-दो माह के भीतर कराया जाता है। इस जांच से  
थैलेसीमिया
  मेजर का पता लगाया जा सकता है। बीटा थैलेसीमिया मेजर रोग से ग्रसित बच्चे को  
हर
  माह रक्त चढ़वाने की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त डाउन सिंड्रोम, मंदबुद्धि, बहरापन  
और आंतों व गुर्दे की कुछ विकृतियों का 70-95 फीसदी तक ही पता लगाया जा सकता है। 
 
प्रश्न- क्या
  गर्भस्थ शिशु में कोई बड़ी शारीरिक विकृति पाए जाने पर उपचार संभव है?  
 
उत्तर- शारीरिक विकृति की गम्भीरता का पता
  लगने के बाद ही उसके उपचार के विषय में  
बताया जा सकता है। 16- 20 हफ्ते के दौरान कराए गए एनॉमली स्कैन (एक
  विशेष प्रकार का  
अल्ट्रासाउंड) 70-95 फीसदी तक शारीरिक विकृतियों की जानकारी
  देता है। कुछ विकृतियां जैसे  
सिर की हड्डी व रीढ़ की हड्डी के ठीक से न बनने का 95-100 फीसदी तक पता लगाया जा  
सकता है लेकिन कुछ
  विकृतियां जैसे हृदय में छेद होना, होंठ व तालू का कटा होना, गुर्दे की  
खराबियां 50-70 फीसदी ही पता
  लगते हैं। आंतों की विकृतियां अल्ट्रासांउड से पता नहीं लगती हैं। 
 कुछ विकृतियों
  को जन्म के बाद ऑपरेशन से ठीक किया जा सकता है लेकिन कुछ विकृतियां  
बच्चे में
  गम्भीर शारीरिक व मानसिक विकलांगता का कारण हो सकती हैं या फिर जन्म के कुछ  
समय
  पश्चात बच्चे की मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं। 
 
प्रश्न- क्या
  एनॉमली स्कैन से गर्भस्थ शिशु में डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है?  
 
उत्तर- नहीं, डाउन सिंड्रोम एक प्रकार का अनुवांशिक रोग गुण सूत्रों में दोष की वजह से
  होता है।  
एनॉमली स्कैन से कुछ हल्के परिणाम ही देखे जा सकते हैं जैसे- गर्दन की
  त्वचा में सूजन, हृदय  
में सफेद
  बिन्दु, आंतों की
  सफेदी, गुर्दे में
  पानी इकट्ठा होना, हाथ पैरों की
  हड्डियों की लम्बाई में कमी होना। हालांकि ये परिणाम सामान्य बच्चों में भी हो
  सकते हैं लेकिन इनके होने से डाउन सिंड्रोम या अन्य  
गुणसूत्रों का दोष होने की
  सम्भावना बढ़ जाती है। 
 
प्रश्न- क्या
  जन्मजात बहरापन परिवार के किसी अन्य सदस्य को न होने पर भी हो सकता है? 
 
उत्तर- हां, परिवार में पहले सभी सदस्यों के सामान्य रहने के बावजूद बच्चे में जन्मजात
  बहरापन  
हो सकता है। इसके कई और कारण हो सकते हैं लेकिन आधे से अधिक बच्चों में
  ये कारण  
अनुवांशिक होते हैं। आमतौर पर प्रति 1000 बच्चों में दो से तीन बच्चे जन्मजात बहरेपन
  का  
शिकार होते हैं। यह खतरा तब बढ़ जाता है जब मां को गर्भावस्था के दौरान
  टोक्सोप्लाज्मा, रूबेला  
या
  साइटोमिगेलो वायरस जैसे इंफेक्शन हुए हों या मां ने गर्भावस्था के दौरान बच्चे
  के सुनने की  
क्षमता को असर करने वाली दवाइयां खाई हों, बच्चे को जन्म के उपरान्त नवजात केयर यूनिट
  में  
रखने की आवश्यकता हुई हो, बच्चे को जन्म के तुरंत बाद गंभीर पीलिया हुआ हो या बच्चे के  
सिर, चेहरे या बाहरी कान की बनावट सामान्य
  बच्चों से अलग हो। इसकी जांच बच्चे के जन्म के  
24 घंटे बाद से एक माह के दौरान कभी भी कराई जा सकती है। 
 
प्रश्न- क्या
  जन्म के बाद भी अनुवांशिक बीमारियों की जांच संभव है?  
 
उत्तर- बच्चे के जन्म के पश्चात दूसरे से
  चौथे दिन के बीच में कुछ गम्भीर रोगों के लिए  
परीक्षण किए जाते हैं जिनका शीघ्र
  उपचार मिलने के बाद बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास  
सुचारू रूप से होता है।
  आमतौर से इन बीमारियों के लक्षण जब तक पता लगते हैं तब तक बच्चे 
 के मानसिक विकास
  को हानि हो चुकी होती है जिसको उपचार के बाद भी ठीक नहीं किया जा  
सकता है।
  स्क्रीनिंग टेस्ट में बच्चे की एड़ी से रक्त की 3-4 बूंदें एक विशेष फिल्टर पेपर पर ली  
जाती
  है। जन्म के दूसरे से तीसरे दिन के बीच जांच होने से जल्दी ही बीमारियों का पता
  चल  
सकता है जिससे फौरन इलाज शुरू करके मंदबुद्धि जैसी विकृतियों से बचा जा सकता
  है। 
 
प्रश्न- नवजात
  शिशु की जांच किन बीमारियों के लिए की जाती है?  
 
उत्तर- हालांकि पश्चिमी देशों में नवजात शिशुओं में 30 से अधिक बीमारियों के लिए परीक्षण  
किए जाते
  हैं लेकिन एसजीपीजीआई में इनमें से तीन बीमारियों का परीक्षण किया जाता है। 
वे हैं
  कनजनाइटल हाइपोथाइरॉयडिस्म, बायोटिनिडेस की कमी और गैलेक्टोसिमिया। 
अक्सर लोग
  बातचीत में अनुवांशिकता यानी माता-पिता या घर के किसी अन्य सदस्य से मिले  
गुणों, अवगुणों और बीमारियों की चर्चा करते हैं।
  असल मायनों में अनुवांशिकता के कई और पहलू  
भी हैं। एक तरफ परिवार के सदस्यों में
  कोई शारीरिक विकृति होना, मां का
  बार-बार गर्भपात होना 
 व बिना किसी कारण के बच्चों की मृत्यु हो जाने से परिवार
  में अनुवांशिकता रोग से ग्रस्त बच्चा पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है। वहीं
  दूसरी तरफ अनुवांशिक रोगों से ग्रस्त बच्चे ज्यादातर उन परिवारों में  
पैदा होते
  हैं, जिनके परिवार
  के अन्य सदस्य सामान्य होते हैं। अनुवांशिक बीमारियां और  
जन्मजात विकृतियां किसी
  भी परिवार में हो सकती हैं। स्वस्थ शिशु के जन्म के लिए जितना मां  
की सेहत और
  खानपान का खयाल रखना आवश्यक है उतनी ही आवश्यकता इस समस्या को  
उचित समय पर
  पहचानने के लिए जांच की है। मां की उचित देखभाल के बाद भी प्रत्येक 100 में  
से दो से पांच बच्चों में कोई न कोई
  गम्भीर अनुवांशिक बीमारी या शारीरिक विकृति पायी जाती  
है जो कि बच्चे के शारीरिक
  व मानसिक विकास के लिए हानिकारक होती है। यूं तो अनुवांशिक  
बीमारियां और शारीरिक
  विकृतियां कई प्रकार की होती हैं लेकिन इनमें अधिक पाई जाने वाली  
बीमारियों की
  विस्तृत जानकारी के लिए यहां प्रस्तुत हैं संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीटय़ूट
  ऑफ  
मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआई) के अनुवांशिक विभाग की विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर  
 डॉ. शुभा फड़के से रिया तुलसियानी की बातचीत के अंश.. डॉ. शुभा फड़के 
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Source –
  KalpatruExpress News Papper 
 
 
 
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