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एक शिष्य बहुत
  दिनों बाद अपने गुरु से मिला। कुशल पूछने के बाद अचानक उसके मुंह से निकल पड़ा, और बताइए गुरु जी, क्या चल रहा है? गुरु जी बोले, मृत्यु की तैयारी। शिष्य आश्चर्य से बोला,ऐसा क्यों गुरु जी? महात्मा कुछ रुक कर बोले, डर मनुष्य अपने भीतर लेकर पैदा होता है।
  जन्म के साथ ही मृत्यु का डर उसके साथ-साथ चलता है। मृत्यु अवश्यंभावी है। लेकिन
  मनुष्य इस परम सत्य से जीवन भर जी चुराता है। वह मृत्यु के विषय में चर्चा करने
  से कतराता रहता है। यह कतराहट भय के कारण पैदा होती है। इसी डर की वजह से अपनी
  मत्यु को सुखद रूप देने की कोशिश भी वह नहीं करता। डर इंसान के मन में बचपन से
  ही घर कर जाता है। 
किसी के डराने
  या धमकाने पर अपनी आंखें बंद कर वह डर को भगाने और उससे बचने की कोशिश करता है।
  मृत्यु का डर सबसे भयानक कहा जा सकता है। इस पर विजय पाने के अनेक उपाय हमारे
  धर्म ग्रंथों में बताए गये हैं। इससे जुड़ा पूरा दर्शन हमारे यहां है। किसी धर्म
  में जीवन के आवागमन से छुटकारे के उपाय बताये गए हैं तो किसी धर्म में मौत के
  बाद स्वर्ग का रास्ता बहुत विस्तार से बताया गया है। लेकिन कोई विरला ही अपनी
  मृत्यु के भय से मुक्त हो पाता है। 
मनुष्य के पास
  बुद्धि कौशल तथा साधन हैं, जिनसे वह अपने जीवन में ही सुखद मृत्यु के उपाय कर सकता है। अब यह उस पर ही
  निर्भर करता है कि इस काम के लिए वह कौन सा रास्ता अपनाता है। दरअसल जन्म लेना
  अपने हाथ में नहीं होता। 
जन्म कैसे हो, कहां हो,यह इंसान के वश में नहीं है। मृत्यु कब होगी, इसका पूर्वानुमान भी नहीं किया जा सकता। लेकिन मृत्यु कैसी हो, इसकी कोशिश जरूर की जा सकती है। 
भारतीय
  साहित्य और दर्शन के अनुसार मनुष्य जीवन पाना अपने आप में एक उपलब्धि है। कहा भी
  गया है- बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथनि गावा। इसी प्रकार मृत्यु को भी सार्थक बनाना एक
  उपलब्धि माना जा सकता है। 
लेकिन इससे
  बड़ा व्यावहारिक सच यह है कि इंसान को जो क्षण जीने के लिए मिले हैं, पहले वह उन्हें जिम्मेदारी से जी ले। यदि
  हम मिली हुई जिंदगी को न जीकर सुखद मृत्यु के फेर में पड़ जाएंगे तो न इधर के
  रहेंगे न उधर के। मृत्यु के भय से बाहर निकलना एक बात है और उसी के भय में डूबे
  रह जाना दूसरी। मृत्यु के भय से जीवन के सुख को न मारें। जो चीज बड़े भाग्य से
  मिल सकी है, उसे ही तरीके
  से न जिया तो मृत्यु के बारे में सोच कर क्या लाभ। 
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Source – KalpatruExpress
  News Papper | 
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रविवार, 30 मार्च 2014
मृत्यु के भय से जीवन के सुख को न मारें
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