पशु के प्रसव
को लेकर किसान ज्यादा चिंतित नहीं होते। उनकी चिंता पशु के बच्चा देने के बाद
शुरू होती है। इसका अहम कारण यह है कि किसान को पशु चिकित्सक ग्रामीण अंचल में
बेहद कम मिल पाते हैं।
यदि किसान
प्रसव से पूर्व, ब्याने के समय
और बाद की स्थिति में ठीक से देखभाल करें तो उनके पशु के जीवन काल के सभी
गर्भकाल ठीक-ठाक गुजरेंगे।
गर्भावस्था के
अंतिम तीन महीनों में पशु के शरीर की आवश्यकता बढ़ जाती है। उसे अपने और पेट में
पल रहे जीव के पोषण के लिए पर्याप्त दाना और हरा चारा देना चाहिए। स्वस्थ्य
बच्चे के लिए डेढ़ से दो किलोग्राम ठोस दाना अतिरिक्त देना चाहिए। इसके अलावा
पशु की पाचन क्रिया ठीक रखने के लिए विटामिन ए आवश्यक होता है। इसकी पूर्ति हरे
चारे से की जा सकती है। गर्भकाल के अन्तिम तीन महीनों में पशु को कैल्शियम नहीं
देना चाहिए।
यह उसे
गर्भकाल के प्रारंभ में खिलाना चाहिए।
ब्याने से 48 घण्टे पूर्व कैल्शियम देने से दुग्ध ज्वर
जैसी बीमारी होने का खतरा कम हो जाता है।
ब्याने से एक
दिन पहले पशु के जननांग से द्रव्य का स्त्राव होने लगता है। यह स्थिति उत्पन्न
होने के बाद रात और दिन में हर घण्टे बाद पशु बगैर छेड़े निगरानी में रखना
चाहिए। ब्याने से पूर्व जननांग से एक द्रव्य से भरा बुलबुला निकलता है जो
धीरे-धीरे बड़ा होता है और अंत में फट जाता है। इसमें से ही बच्चे के पैर के खुर
निकलते हैं।
इसके बाद अगले
पैरों के घुटनों के बीच सिर दिखाई देता है। कभी कभी अपने आप बच्चा निकल आता है
और कई बार पशु कमजोर होने पर बच्चे को बाहर निकालने में परेशानी होती है।
परेशानी वाली
स्थिति में तत्काल कुशल पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। ब्याने से तीन-चार
दिन पूर्व से ही पशु को अलग बाड़े में बांधना चाहिए। एक हफ्ते पहले से विटामिन
डी-3 देना चाहिए।
ब्याने के बाद
जेर गिरने का इंतजार करना चाहिए। जेर आठ से 12 घण्टे में गिर जाता है।
इसे गिरते ही
उठाकर गड्ढ़े में दबा देना चाहिए।
12 घण्टे में भी
जेर न गिरे तो उसे पशु चिकित्सक से संपर्क करके निकलवाना चाहिए। ब्याने के तुरंत
बाद सबसे पहले बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। पशु का दूध ब्याने के 15-20 मिनट बाद निकालना चाहिए।
पहला दूध
एकबार में नहीं निकालना चाहिए। इससे पशु के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती
है। बच्चा देने के बाद पशु को काफी थकान हो जाती है। इसलिए पशु को उवले हुए चावल, उबला बाजरा, तेल मिलाए हुए गेहूं, गुड़, अजवायन, मेथी, अदरक आदि देनी
चाहिए। पशु को गर्म पानी नहीं देना चाहिए।
जेर देने के
बाद यदि ठंड के दिन हों तो ताजे पानी से नहलाना चाहिए। ब्याने के 45 से 60 दिन बाद पशु गर्मी में आता है। उसके गर्मी में आने का ध्यान भी रखना चाहिए।
यदि ऐसा नहीं होता तो पशु चिकित्सक से संपर्क करना चहिए।
डा. गुंजन
बघेल वेटरिनरी विश्वविद्यालय मथुरा
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Source –
KalpatruExpress News Papper
|
OnlineEducationalSite.Com
शनिवार, 15 मार्च 2014
प्रसव के पूर्व और बाद में पशु सुरक्षा कैसे करें
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