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आदि
  शंकराचार्य के बचपन का नाम शंकर था। आठ साल की उम्र में ही उन्होंने तत्व ज्ञान
  की प्राप्ति के लिए घर छोड़ने का निश्चय किया। यह उनकी माता विशिष्टा देवी के
  लिए एक आघात था। उन्होंने जब अपने बेटे को रोकना चाहा तो शंकर ने उन्हें नारद से
  संबंधित कथा सुनाई। कथा के मुताबिक नारद जब मात्र पांच वर्ष के थे, तभी वे अपने स्वामी की अतिथिशाला में
  अतिथियों के मुंह से हरिकथा सुनकर साक्षात हरि से मिलने के लिए व्याकुल हो गए।
  मगर अपनी मां के स्नेह के कारण गृह त्याग का साहस न जुटा पाए। एक रात सर्पदंश से
  मां की मृत्यु हो गई। इसे ईश्वर की कृपा मानकर नारद ने गृह त्याग कर दिया। 
यह कथा सुनाकर
  बालक शंकर ने अपनी मां से कहा- मां, जब नारद ने घर का त्याग किया, तब वे मात्र पांच वर्ष के थे। उन्हें मातृ वियोग सहन करना पड़ा था। मैं तो
  आठ वर्ष का हूं और मेरे ऊपर तो मातृछाया सदैव रहेगी चाहे मैं कहीं भी क्यों न
  रहूं। 
मां के प्रति
  शंकराचार्य की अटूट भक्ति थी। 
जब उन्होंने
  मां को छोड़ा तो बार-बार कहा- मैं कोई पत्थर हृदय नहीं हूं जो मां को
  रोता-बिलखता छोड़कर जा रहा हूं। 
बाद में शंकर
  ने लोगों को बताया- मेरी मां ने जब संतान मांगी थी, तो उन्हें बता दिया गया था कि पुत्र यदि
  अल्पज्ञ होगा तो दीर्घजीवी होगा और सर्वज्ञ होगा तो अल्पजीवी होगा। मां ने तब
  सर्वज्ञ मांगा था। चूंकि अल्पायु में ही मुङो बहुत कुछ करना है, इसलिए वृहत्तर कल्याण के लिए मैंने अपनी
  मातृभक्ति का बलिदान दिया। 
शंकराचार्य ने
  जो संकल्प किया था, वह करके
  दिखाया। 
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Source –
  KalpatruExpress News Papper | 
OnlineEducationalSite.Com
रविवार, 30 मार्च 2014
आदि शंकराचार्य के बारे जाने
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