समरथ के ही
भगवान कहे जाने वालों की संख्या कम नहीं है, किन्तु हमारे ग्रंथ स्पष्ट कर देते हैं कि भगवान माला और माल से प्रसन्न
नहीं होते, बल्कि हमारे
कर्मो से प्रसन्न होते हैं।
इसी क्रम में
गीता निष्काम कर्मो के द्वारा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताती है। इसके अनुसार
श्रेष्ठ कर्मो को ही सच्ची भक्ति समझो। अपने कर्मो को ही पूजा बना लो। जिस
प्रकार कमल के पत्ते पानी में रहते हुए भी जल को अपने ऊपर नहीं आने देते। ऐसे ही
निष्काम कर्मयोगी संसार में रहते हुए भी कर्मो के बंधन तथा मोह में आसक्त नहीं
होते हैं।
गीता संसार को
कर्मशील व पुरुषार्थी होने का संदेश देती है। वह हमारे मन में स्वार्थ, लोभ, अहंकार से ऊपर उठकर निष्काम व परोपकार के कर्मो की भावना जागृत करती है। वह
श्रेष्ठ कर्म करते हुए इहलोक तथा परलोक दोनों के लिए उन्नति करने के लिए प्रेरणा
देती है। हे मनुष्यों, वर्तमान जीवन
और जगत को कर्मो की सुगंध से भरते चलो। कर्त्तव्य व दायित्व को ईमानदारी व
कुशलता से निभाओ।
गीता कह रही
है- योग: कर्मसु कौशलम्
अर्थात जो भी
कर्म करो, उसको पूर्णता, निपुणता, सुन्दरता और कुशलता से करो। जो इस तरह से जीवन को जीता है, गीता के अनुसार वह इस जीवन व जगत को सफल कर
लेता है और उसका अगला जन्म भी सुधर जाता है। तन के श्रृंगार में ही जो समय गंवा
देते हैं, वह इस नाशवान
संसार में भटक कर रह जाते हैं लेकिन जो मन का श्रृंगार कर उसमें बैठे परमात्मा
की आराधना करते हैं, वह संसार की
मलिनता से बच जाते हैं। वस्तुत: दुगरुणों से ही जीवन में मलिनता आती है। इनसे
बचने का एकमात्र उपाय वेद शास्त्र और पुराणों का मंथन करना तथा सज्जनों की संगति
है। अत: हमें अपने कर्मो पर ध्यान देते हुए जीवन जीना चाहिए।
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Source –
KalpatruExpress News Papper
|
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गुरुवार, 29 मई 2014
अपने कर्म को ही बनाएं पूजा
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