इष्टान्भोगान्हि
वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविता:।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो
यो भुक्ते स्तेन एव स: ।।
तुम लोग जो
मांग रहे हो, यज्ञ से खुश
होकर देवता उस इच्छा को पूरा करेंगे। लेकिन इच्छापूर्ति के बाद मिले फल को ईश्वर
को अर्पित किए बिना भोग करने वाला मनुष्य चोर ही है।
यज्ञ का मतलब
है कि जो भी कर्म करो, भगवान को
अर्पण कर दो और उसमें अपना स्वार्थ नहीं, बल्कि सबकी भलाई का भाव हो। जब हर काम भगवान को समर्पित करके किया जाता है
तो यज्ञ भाव से कर्म होगा और प्रभु प्रसन्न होकर हमारी हर जरूरत अवश्य पूरी करते
रहेंगे और हमारी सभी आवश्यक इच्छाओं का ध्यान रखेंगे।
जब भगवान की
कृपा से इच्छा पूरी हो जाए, तब उनके द्वारा दिए गए भोग को पहले उनको ही अर्पण के भाव से समर्पित कर दो।
वैसे भी ब्रrांड में जो
कुछ भी है ईश्वर का ही है, ऐसे में सब पहले उसको ही समर्पित कर दें। भगवान को अर्पण करने का अर्थ है कि
उस भोग में मेरा भाव हटाकर, भगवान की दी हुई चीजों को लेने की आज्ञा लेना।
वैसे भी अगर
हम किसी की चीज ले रहे हैं तो उससे अनुमति तो लेनी ही पड़ती है, वरना वह चोरी ही कहलाती है। भगवान भी यही
कह रहे हैं कि भोगने से पहले मुङो अर्पण कर दो वरना चोर ही कहलाओगे।
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Source –
KalpatruExpress News Papper
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गुरुवार, 29 मई 2014
सब भगवान को अर्पण कर दो
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