व्यस्तता, प्रतिस्पर्धा और सिमटते परिवारों के इस
दौर में बहुत कुछ बदलता और पीछे छूटता जा रहा है लेकिन इस दौर में दादी और
नानी की जरूरत ज्यादा महसूस होने लगी है। क्योंकि बच्चों के भविष्य के निर्माण
में उनकी खास भूमिका होती है।
एक बैंक में
काम करने वाले पंकज और उनकी पत्नी सरिता कहती हैं कि अगर बच्चों का बेहतर
भविष्य चाहिए तो पति और पत्नी दोनों के लिए काम करना जरूरी होता है। ऐसे में
बच्चों की देखभाल बड़ी समस्या हो जाती है। पंकज की पत्नी एक ट्रैवल कंपनी में
काम करती हैं।
पंकज बताते
हैं कि उनकी मां अपने पोते और पोती की देखभाल बखूबी करती हैं। वह कहते हैं
बच्चों को समय पर स्कूल भेजना, उनको लेने जाना, उनके खाने, पीने, सोने, खेलने से लेकर हर बात का ध्यान मेरी मां
ही रखती हैं। बच्चों को खेल खेल में ही वह बड़े काम की बातें सिखा देती हैं।
मेरे बच्चों को पता है कि रावण कौन था, उसे किसने मारा और दीपावली का पर्व क्यों
मनाया जाता है। मेरी मां ने उन्हें बताया है।
दरअसल ऐसी
कई बातें होती हैं जो हमें हमारी दादी-नानी ही बताया करती थीं। फिर चाहे वे राम
और रावण के किस्से हों या कंस-कृष्ण और राजा व रानी की कहानियां हों या फिर
बकरी और शेर की। ऐसे में आजकल जब दादी और नानी बच्चों के साथ नहीं रहतीं तो
उनके लिए ये सब कहानियां सुनना और किस्सों के जरिए अपने इतिहास और परंपराओं को
जानना बहुत मुश्किल हो जाता है लेकिन अगर दादी-नानी साथ रहती हैं तो बच्चे
संस्कारी भी हो जाते हैं और उनके मां-पापा आसानी से अपना काम भी कर पाते हैं।
मनीषा अपना
बुटीक चलाती हैं। वह कहती हैं मुङो काम के लिए ज्यादा समय देना पड़ता है इसलिए
बेटी की जवाबदारी पूरी तरह मेरी मां ने संभाल रखी है। उसे होमवर्क कराना है, उसे खाने में क्या पसंद है, उसे अपनी सहेली के घर जाना है।
यहां तक कि
उसकी सहेलियों के जन्मदिन पर उनके लिए उपहार खरीदने के लिए भी मेरी मां ही
मेरी बेटी की मदद करती हैं।
मनीषा कहती
हैं कई बार लगता है कि मेरी मां अपने अनुभव के आधार पर मेरी बेटी को मुझसे
कहीं ज्यादा समझती हैं। यह अच्छा भी है। कम से कम मेरी बच्ची को आज भले बुरे
की जानकारी तो वह दे रही हैं। उसका ध्यान तो रख रही हैं। नौकरों पर मुङो कभी
विश्वास नहीं रहा। मेरी बेटी अपनी दादी की छत्रछाया में बड़ी हो रही है, इससे ज्यादा तसल्ली की बात और क्या होगी।
मनीषा कहती हैं, भारत जैसे
देश में सबंधों को अधिक तरजीह दी जाती है लेकिन अब देखा जा रहा है कि यहां भी
रिश्ते सिमट रहे हैं। बच्चे भूमंडलीकरण के इस दौर में अपने मां बाप तक ही सिमट
कर रह जाते हैं। यह सही नहीं है क्योंकि बच्चों के चरित्र निर्माण से लेकर
सामाजिक व्यवस्था, सभ्यता, मूल्यों और परंपरागत रीति रिवाजों के
प्रचार प्रसार में जो भूमिका दादी-नानी की है वह किसी की नहीं है।
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Source –
KalpatruExpress News Papper
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