चन्द्रेष
कुमार जैन राजस्थान में महावीरजी राजस्थान के करौली जिले में दिगम्बर जैन
अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी स्थित है। यह तीर्थ-स्थल जैन-अजैन सभी का श्रद्धा, आस्था व भक्ति का केन्द्र है। यहां महावीर
बाबा के दर्शनों से ही श्रद्धालुओं का मन प्रफुल्लित हो जाता है।
श्रीमहावीरजी
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी राजस्थान (भारत) के पूर्वी अंचल में
करौली जिले के हिण्डौन उपखण्ड में गंभीर नदी के तट पर स्थित है। नई दिल्ली से
मुम्बई जाने वाली पश्चिमी-मध्य रेलवे की बड़ी लाइन पर श्रीमहावीरजी नामक रेलवे
स्टेशन स्थित है, जहां सभी
प्रमुख रेलगाड़ियां ठहरती हैं। रेलवे स्टेशन से श्रीमहावीरजी तीर्थस्थल करीब
सात किलोमीटर दूर है।
यहां
क्षेत्र कमेटी की ओर से यात्रियों के आने-जाने के लिए नि:शुल्क बस व्यवस्था
सदैव उपलब्ध है।
दर्शन व
आस्था स्थल श्रीमहावीरजी अतिशय क्षेत्र के प्रादुर्भाव की एक चमत्कारी
जनश्रुति है। बताया जाता है कि लगभग 412 वर्ष पूर्व चांदन गांव में विचरण करने
वाली एक गाय का दूध प्रतिदिन गंभीर नदी के तट के पास एक टीले पर स्वत: ही झर
जाता था। गाय कई दिनों तक बिना दूध के घर लौटने लगी तो गाय के मालिक चर्मकार
को अनेक आशंकाओं व विकल्पों ने आ घेरा। एक रात उसको स्वप्न आया- गाय अपना दूध
टीले में दबी हुई मूर्ति को अर्पित करती है।
चर्मकार उस
टीले पर गया और खुदाई की। खुदाई में परम दिगम्बर भगवान महावीर की पद्मासन प्रतिमा
निकली।
इसके बाद
महावीर बाबा का जयघोष हुआ और लोग दर्शन हेतु उमड़ पड़े। क्षेत्र मंगलमय हो
उठा।
मुख्य
जिनालय मुख्य मंदिर की पाश्र्ववेदी में भू-गर्भ से प्राप्त हुई भगवान महावीर
की प्रतिमा विराजित की गई है तथा दाईं व बाईं ओर र्तीथकर पुष्पदंत एवं आदिनाथ की
प्रतिमायंे विराजित की गईं। इसके अतिरिक्त अनेक कलात्मक वेदियों का निर्माण
कराकर मूर्तियां विराजित की गईं। दानदाताओं और श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर
की बनावट, सुन्दरता और
भव्यता में पर्याप्त वृद्धि हुई। मंदिर के शीर्ष पर लाल रंग के तीन गगनचुम्बी
शिखरों का निर्माण हुआ। स्वर्ण भित्ति चित्रांकन हुआ। परिक्रमा में कलात्मक
चित्र उत्कीर्ण किये गये।
मान स्तम्भ
मंदिर के मुख्य द्वार के सम्मुख संगमरमर से निर्मित 52 फीट ऊंचा आकर्षक मानस्तम्भ है। इसके
शीर्ष पर र्तीथकरों की चार मूर्तियां विराजमान हैं, जिनका अभिषेक तीन वर्ष में एक बार होता
है।
चरण-चिन्ह
छत्री भगवान महावीर की प्रतिमा के उद्गम स्थल पर एक कलात्मक छत्री निर्मित है, जिसमें भगवान के चरण-चिन्ह स्थापित हैं।
छत्री के
चारों ओर उद्यान विकसित किया गया है।
महावीर
स्तूप उद्यान में चरण-चिन्ह छत्री के सामने वाले भाग में 29 फीट ऊंचा ‘महावीर स्तूप’ है, जिसके फलकों पर भगवान महावीर के उपदेश
अंकित हैं और शीर्ष पर आकर्षक धर्मचक्र अंकित है। अतिषय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
स्थित कटला परिसर में चारों तरफ धार्मिक उपदेश व शिक्षाप्रद दोहे लिखे हुये
हैं। भक्ति और श्रद्धा की शक्ति के द्वारा यहां के रज कणों में ऐसे पावन तत्व
मिल गये हैं कि यहां की रज को मस्तक पर लगाने मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं।
स्वागत कक्ष
कटले के बाहर प्रवेश द्वार के निकट निर्मित स्वागतकक्ष में यात्री विभिन्न
धर्मशालाओं में आवासीय सुविधा एवं क्षेत्र संबंधी समस्त जानकारी प्राप्त कर
सकते हैं। स्वागत कक्ष 24 घण्टे सेवारत रहता है।
कटला परिसर
कटला परिसर के मध्य ही र्तीथकर महावीर स्वामी का मुख्य जिनालय स्थापित है।
वर्तमान में जहां भगवान की मूलनायक प्रतिमा विराजमान है, उसके नीचे की मंजिल में ही लाल पाषाण से
निर्मित प्राचीन कलात्मक मंदिर है। इस स्थल की सफाई कराकर इसे ध्यान केन्द्र
के रूप में विकसित किया गया।
श्रीमहावीरजी
वार्षिक मेला महावीर जयंती पर प्रतिवर्ष यहां विशाल मेला लगता है। यह मेला
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल दशमी से वैशाख कृष्णा द्वितीया तक लगता है, जो लक्खी मेला कहलाता है। राजस्थान के
ग्रामीण अंचल के साथ ही पूरे भारत से जैन-अजैन श्रद्धालु मेले में भाग लेते
हैं और मूलनायक भगवान श्रीमहावीर की मूंगावर्णी प्रतिमा के दर्शन करते हैं।
इसके अतिरिक्त अन्य अलौकिक मनोज्ञ प्रतिमाओं के दर्शन का भी लाभ मिलता है। कई
भक्तजन तो मीलों दूर से साष्टांग कनक दण्डवत करते हुए आते हैं और भगवान के
समक्ष मनोकामनाएं लेकर श्रद्धासुमन चढ़ाते हैं।
मेले की
व्यवस्था में श्री वीरसेवक मण्डल, जयपुर का सहयोग लिया जाता है।
एक रात उसको
स्वप्न आया-गाय अपना दूध टीले में दबी हुई मूर्ति को अर्पित करती है। चर्मकार
उस टीले पर गया और खुदाई की। खुदाई में परम दिगम्बर भगवान महावीर की पद्मासन
प्रतिमा निकली और महावीर बाबा का जयघोष हुआ।
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Source – KalpatruExpress News Papper
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