शुक्रवार, 27 जून 2014

यहां कल क्या हो, किसने जाना?



शीर्षक गीतों के माहिर गीतकार हसरत जयपुरी
हिन्दी फिल्मों में जब भी टाइटल गीतों का जिक्र होता है गीतकार हसरत जयपुरी का नाम सबसे 
 पहले लिया जाता है। वैसे तो हसरत जयपुरी ने हर तरह के गीत लिखे, लेकिन फिल्मों के टाइटल
 पर गीत लिखने में उन्हें महारत हासिल थी। हिन्दी फिल्मों के स्वर्णयुग के दौरान टाइटल गीत 
लिखना बड़ी बात समङी जाती थी। निमार्ताओं को जब भी टाइटल गीत की जरूरत होती थी, हसरत 
जयपुरी से गीत लिखवाने की गुजारिश की जाती थी। उनके लिखे टाइटल गीतों ने कई फिल्मों को 
सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हसरत जयपुरी के लिखे कुछ टाइटल गीत हैं- 
दीवाना मुझको लोग कहें (दीवाना), दिल एक मंदिर है (दिल एक मंदिर), रात और दिन दीया जले 
(रात और दिन), तेरे घर के सामने इक घर बनाऊंगा (तेरे घर के सामने), ऐन इवनिंग इन पेरिस 
(ऐन इवनिंग इन पेरिस), गुमनाम है कोई बदनाम है कोई (गुमनाम), दो जासूस करें महसूस (दो 
जासूस) आदि।
हसरत जयपुरी अब भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अपने गीतों के जरिए वे सदियों तक 
जिंदा रहेंगे। जयपुर के रामगंज की घोड़ा निकास रोड पर इनकी हवेली पत्थरों वाली हवेली के नाम 
से मशहूर है। इस हवेली में पत्थर कंगूरों की तरह जड़े गए थे, इसलिए इन्होंने इसमें कभी प्लास्टर 
नहीं करवाया।
15 अप्रैल, 1918 को जन्मे जज्बातों के इस मसीहा का मूल नाम इकबाल हसरत हुसैन था। उन्होंने 
जयपुर में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद अपने दादा फिदा हुसैन से उर्दू और फारसी की 
तालीम हासिल की। बीस वर्ष का होने तक उनका झुकाव शेरो-शायरी की तरफ होने लगा और वह 
छोटी-छोटी कविताएं लिखने लगे।
शुरूआती दौर में वे नगीने तराशने का काम करते थे। वर्ष 1940 में दोस्तों ने इनके मुंबई जाने 
और
 वहां कुछ दिन रहने लायक पैसे एकत्रित कर इन्हें वहां के लिए रवाना किया, लेकिन काम नहीं 
मिला और ये वहां कंडक्टरी कर बैठे। इस काम के लिए उन्हें मात्र 11 रुपये प्रति माह वेतन मिला 
करता था। बस में वह हर खुशदिल इंसान को अपनी शायरी सुनाने से नहीं चूकते। इस बीच उन्होंने 
मुशायरा के कार्यक्रम में भाग लेना शुरू किया। उसी दौरान एक कार्यक्रम में पृथ्वीराज कपूर उनके 
गीत को सुनकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अपने पुत्र राजकपूर को हसरत जयपुरी से मिलने 
की सलाह दी।
राजकपूर उन दिनों अपनी फिल्म बरसातके लिए गीतकार की तलाश कर रहे थे। उन्होंने हसरत 
जयपुरी को मिलने का न्यौता भेजा। राजकपूर से हसरत जयपुरी की पहली मुलाकात रायल ओपेरा 
हाउस में हुई और उन्होंने अपनी फिल्म बरसातके लिए उनसे गीत लिखने की गुजारिश की। इसे 
महज संयोग ही कहा जाएगा कि फिल्म बरसातसे ही संगीतकार शंकर जयकिशन ने भी अपने 
सिने कैरियर की शुरूआत की थी। राजकपूर के कहने पर शंकर जयकिशन ने हसरत जयपुरी को 
एक धुन सुनाई और उस पर उनसे गीत लिखने को कहा। धुन के बोल कुछ इस प्रकार थे- अंबुआ 
का पेड़ है, वहीं मुंडेर है, आजा मेरे बालमा काहे की देर है। शंकर जयकिशन की इस धुन को सुनकर 
हसरत जयपुरी ने गीत लिखा- जिया बेकरार है, छाई बहार है, आजा मेरे बालमा तेरा इंतजार है।
वर्ष 1949 में प्रदर्शित फिल्म बरसात में अपने इस गीत की कामयाबी के बाद हसरत जयपुरी 
गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद हसरत जयपुरी की शायरी 
का दुपट्टा बॉलीवुड में ऐसा लहराया कि हर फिल्म निर्माता-निर्देशक उनको झपटने के लिए आतुर हो 
उठा। आज बॉलीवुड अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर चुका है, तो इसमें जयपुर की इस अजीम 
शख्सियत के सौ से भी अधिक लिखे गीत भी जुगनुओं की तरह टिमटिमा रहे हैं। बरसात की 
कामयाबी के बाद राजकपूर, हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन की जोड़ी ने कई फिल्मों में एक 
साथ काम किया। इनमें आवारा (1951), श्री 420 (1955), चोरी चोरी (1956), अनाड़ी (1959), जिस 
देश में गंगा बहती है (1960), संगम (1964), तीसरी कसम (1966), दीवाना (1967), एराउंड द वल्र्ड 
(1967), मेरा नाम जोकर (1970), कल आज और कल (1971) जैसी फिल्में शामिल हैं।
हसरत जयपुरी के सिने कैरियर पर निगाह डालने पर पता चलता है कि उनकी जोड़ी संगीतकार 
शंकर जयकिशन के साथ खूब जमी। इस जोड़ी के गीतों में शामिल कुछ गीत हैं- छोड़ गए बालम 
 मुङो हाय अकेला.. (बरसात,1949), हम तुम से मोहब्बत करके सनम.. (आवारा,1951), इचक दाना
 बीचक दाना.. (श्री 420,1955), आजा सनम मधुर चांदनी में हम.. (चोरी चोरी,1956), जाऊं कहां 
बता ए दिल.. (छोटी बहन,1959), एहसान तेरा होगा मुझ पर.. (जंगली,1961), तेरी प्यारी प्यारी 
सूरत को.. (ससुराल,1961), तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं.. (आस का पंछी,1961), इब्तिदा ए इश्क में 
हम सारी रात जागे.. (हरियाली और रास्ता,1962), बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है.. 
(सूरज,1966), दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई.. (तीसरी कसम,1966), कौन है जो सपनों 
में आया.. (झुक गया आसमान, 1968), रूख से जरा नकाब उठाओ मेरे हुजूर.. (मेरे हुजूर,1968), पर्दे 
में रहने दो पर्दा ना उठाओ.. (शिकार,1968), जाने कहां गए वो दिन.. (मेरा नाम जोकर,1970) और 
जिंदगी एक सफर है सुहाना.. (अंदाज,1971)
हसरत जयपुरी की जोड़ी राजकपूर के साथ वर्ष 1971 तक कायम रही। संगीतकार जयकिशन की 
मृत्यु और फिल्म मेरा नाम जोकरऔर कल आज और कलकी बॉक्स ऑफिस पर नाकामयाबी के 
बाद राजकपूर ने हसरत जयपुरी की जगह आनंद बख्शी को अपनी फिल्मों के लिए लेना शुरू कर 
दिया। हालांकि, अपनी फिल्म प्रेम रोगके लिए राजकपूर ने एक बार फिर से हसरत जयपुरी को 
मौका देना चाहा, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद हसरत जयपुरी ने राजकपूर के लिए वर्ष 1985
मे प्रदर्शित फिल्म राम तेरी गंगा मैलीमें सुन साहिबा सुनगीत लिखा, जो काफी लोकप्रिय हुआ।
हसरत जयपुरी को दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें पहला फिल्म 
फेयर पुरस्कार वर्ष 1966 में फिल्म सूरजके गीत बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया हैके 
लिए दिया गया। वर्ष 1971 में फिल्म अंदाजमें जिंदगी एक सफर है सुहानागीत के लिए भी वह 
सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
हसरत जयपुरी वल्र्ड यूनिवर्सिटी टेबुल के डाक्ट्रेट अवार्डऔर उर्दू कान्फ्रेंस में जोश मलीहाबादी 
 अवार्डसे भी सम्मानित किए गए। फिल्म मेरे हुजूरमें हिन्दी और ब्रज भाषा में रचित गीत 
झनक झनक तोरी बाजे पायलियाके लिए वह अम्बेडकर अवार्ड से सम्मानित किए गए।
महान गायक मुकेश को शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचाने में हसरत जयपुरी के गीतों का अहम 
 योगदान रहा है। मुकेश और हसरत जयपुरी की जोड़ी के गीतों में छोड़ गए बालम मुङो हाय 
अकेला.. (बरसात), आजा रे अब मेरा दिल पुकारा (आह), आंसू भरी है ये जीवन की राहें (परवरिश),
वो चांद खिला वो तारे.. (अनाड़ी), जाऊं कहां बता ऐ दिल.. (छोटी बहन), हाले दिन हमारा जाने ना.. 
(श्रीमान सत्यवादी), तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं.. (आस का पंछी), ओ मेहबूबा ओ मेहबूबा.. (संगम)
, दीवाना मुझको लोग कहें.. (दीवाना) प्रमुख हैं।
हसरत जयपुरी ने यूं तो कई रूमानी गीत लिखे, लेकिन असल जिंदगी में उन्हें अपना पहला प्यार 
नहीं मिला। बचपन के दिनों में उनका राधा नाम की हिन्दू लड़की से प्रेम हो गया था, लेकिन उन्होंने 
अपने प्यार का इजहार नहीं किया। उन्होंने पत्र के माध्यम से अपने प्यार का इजहार करना चाहा,
लेकिन उसे देने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाए। बाद में राजकपूर ने उस पत्र में लिखी कविता ये 
मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना..का इस्तेमाल अपनी फिल्म संगमके लिए किया। 
हसरत जयपुरी ने तीन दशक लंबे अपने सिने कैरियर में 300 से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 
2000 गीत लिखे।
अपने गीतों से कई वर्षो तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाला यह शायर और गीतकार 17 सिंतबर,
 1999 को संगीतप्रेमियों को अपने एक गीत की इन पंक्तियों तुम मुङो यूं भूला ना पाओगे, जब 
कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे..की स्वर लहरियों में छोड़कर इस दुनिया 
को अलविदा कह गए।
यहां कल क्या हो, किसने जाना? अपनों के लिए लिखते थे.. हसरत जयपुरी अक्सर अपनों के लिए 
गीत लिखा करते थे। जयपुर से मुंबई भेजने वालों का शुक्रिया अदा करने के लिए उन्होंने एक गीत 
लिखा अहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों, ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों..बाद में यह 
गीत फिल्म मेहरबानमें फिल्माया गया। रात को देर से पहुंचने की वजह से खफा पत्‍नी दिलकिस 
को अपनी मजबूरी बताने के लिए इन्होंने लिखा- गम उठाने के लिए मैं तो जिए जाऊंगा, सांस की 
लय पे तेरा नाम लिए जाऊंगा..
तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को किसी की नजर ना लगे चश्मेबद्दूर..गीत उन्होंने अपनी बेटी के लिए 
लिखा।
हसरत जयपुरी (मध्य में) संगीतकार शंकर जयकिशन के साथ।
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Source – KalpatruExpress News Papper











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