शनिवार, 29 अगस्त 2015

रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व





रक्षा बंधन का इतिहास हिन्दू पुराण कथाओं में है। वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कहानी है कि राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर
अधिकार का प्रयत्न किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राrाण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु के मना करने पर भी बलि ने
तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप
 कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। लेकिन, उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु
जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई।
नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गईं और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई
 बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आईं। उस दिन र्शावण मास की
पूर्णिमा तिथि थी।

इस त्योहार के साथ एक और कहानी भी जुड़ी हुई है- एक बार राजा इन्द्र की राक्षसों से लड़ाई छिड़ गई। लड़ाई कई दिनों तक होती रही। न राक्षस हारते थे, न इन्द्र जीतते दिखाई देते थे। इन्द्र बड़ी सोच में पड़ गए। वह अपने गुरु बृहस्पति के पास आकर बोले ,गुरुदेव, इन राक्षसों से मैं न जीत सकता हूं, न हार सकता हूं। न मैं उनके सामने ठहर सकता हूं, न भाग सकता हूं। इसलिए मैं आपसे अंतिम बार आशीर्वाद लेने आया हूं। अगर अबकी बार भी मैं उन्हें हरा न सका तो युद्ध में लड़ते-लड़ते वहीं प्राण दे दूंगा। उस समय इन्द्राणी भी पास बैठी हुई थीं। इन्द्र को घबराया हुआ देखकर बोलीं, पतिदेव,मैं ऐसा उपाय बताती हूं, जिससे इस बार आप अवश्य लड़ाई में जीतकर आएंगे। इसके बाद इन्द्राणी ने गायत्री मंत्र पढ़कर इन्द्र के दाहिने हाथ में एक डोरा बांध दिया और कहा, पतिदेव यह रक्षाबंधन मैं आपके हाथ में बांधती हूं। इस रक्षाबंधन-सूत्र को पहन कर एक बार फिर युद्ध में जाएं। इस बार अवश्य ही आपकी विजय होगी। इन्द्र अपनी प}ी की बात को गांठ बांधकर और रक्षा बंधन को हाथ में बंधवाकर चल पड़े। इस बार लड़ाई के मैदान में इन्द्र को ऐसा लगा जैसे वह अकेले नहीं लड़ रहे, इन्द्राणी भी कदम से कदम मिलाकर उनके साथ लड़ रही हैं। उन्हें ऐसा लगा कि रक्षाबंधन सूत्र का एक-एक तार ढाल बन गया है और शत्रुओं से उसकी रक्षा कर रहा है। इन्द्र जोर-शोर से लड़ने लगे। इस बार सचमुच इन्द्र की विजय हुई। तब से रक्षाबंधन का त्योहार प्रारंभ हो गया। यह त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसलिए इसे सावनी या सूलनो भी कहते हैं।
महाभारत में राखी.. 
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। शिशुपाल का वध करते समय सुदर्शन चक्र से कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रोपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दिया था। यह भी र्शावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। इस रक्षाबंधन के पर्व में एक-दूसरे की रक्षा, प्रेम व और सहयोग की भावना निहित है।




Courtesy- Kalpatru Express Newspapper

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