गुरुवार, 21 अगस्त 2014

अपील का जादू



अपील का जादू हरिशंकर परसाई ए क देश है! गणतंत्र है! समस्याओं को इस देश में झड़-फूंक, टोना-टोटका से हल किया जाता है! गणतंत्र जब कुछ चरमराने लगता है, तो गुनिया बताते हैं कि राष्ट्रपति की बग्घी के कील-कांटे में कुछ गड़बड़ आ गई है। राष्ट्रपति की बग्घी की मरम्मत कर दी जाती है और गणतंत्र ठीक चलने लगता है। सारी समस्याएं मुहावरों और अपीलों से सुलझ जाती हैं। सांप्रदायिकता की समस्या को इस नारे से हल कर लिया गया हिंदू-मुस्लिम, भाई-भाई!एक दिन कुछ लोग प्रधानमंत्री के पास यह शिकायत करने गये कि चीजों की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं। प्रधानमंत्री उस समय गाय के गोबर से कुछ प्रयोग कर रहे थे। वे स्वमूत्र और गाय के गोबर से देश की समस्याओं को हल करने में लगे थे। उन्होंने लोगों की बात सुनीं, चिढ़कर कहा, ‘आप लोगों को कीमतों की पड़ी है! देख नहीं रहे हो, मैं कितने बड़े काम में लगा हूं। मैं गोबर में से नैतिक शक्ति पैदा कर रहा हूं। जैसे गोबर गैस वैसे गोबर नैतिकता। तीस साल के कांग्रेसी शासन ने देश की नैतिकता खत्म कर दी है। एक मुंहफट आदमी ने कहा, ‘इन तीस में से बाइस साल आप भी कांग्रेस के मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहे हैं, तो तीन-चौथाई नैतिकता तो आपने ही खत्म की होगी! प्रधानमंत्री ने गुस्से से कहा, ‘बको मत, तुम कीमतें घटवाने आए हो न! मैं व्यापारियों से अपील कर दूंगा।एक ने कहा, ‘साहब, कुछ अर्थशास्त्र के भी नियम होते हैं।प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरा विश्वास न अर्थशास्त्र में है, न प्रशासकीय कार्यवाही में। यह गांधी का देश है, यहां हृदय परिवर्तन से काम होता है। मैं अपील से उनके दिलों में लोभ की जगह त्याग फिट कर दूंगा। मैं सर्जरी भी जानता हूं।रेडियो से प्रधानमंत्री ने व्यापारियों से अपील कर दी, ‘व्यापारियों को नैतिकता का पालन करना चाहिए।
उन्हें अपने हृदय में मानवीयता को जगाना चाहिए। इस देश में बहुत गरीब लोग हैं। उन पर दया करनी चाहिए।अपील से जादू हो गया।
दूसरे दिन शहर के बड़े बाजार में बड़े-बड़े बैनर लगे थे, ‘व्यापारी नैतिकता का पालन करेंगे। मानवता हमारा सिद्धांत है। कीमतें एकदम घटा दी गई हैं। जगह-जगह व्यापारी नारे लगा रहे थे, नैतिकता!
मानवीयता! वे इतने जोर से और आक्रामक ढंग से ये नारे लगा रहे थे कि लगता था, चिल्ला रहे हैं, हरामजादे! सूअर के बच्चे! गल्ले की दुकान पर तख्ती लगी थी, गेहूं सौ रुपये कुंतल! ग्राहक ने आंखें मलीं फिर पढ़ा। फिर आंखें मलीं फिर पढ़ा। वह आंखें मलता जाता। उसकी आंखें सूज गईं, तब उसे भरोसा हुआ कि यही लिखा है। उसने दुकानदार से कहा, ‘क्या गेहूं सौ रुपये कुंतल कर दिया, परसों तक दो सौ रुपये था।सेठ ने कहा, ‘हां, अब सौ रुपये के भाव देंगे।ग्राहक ने कहा, ‘ऐसा गजब मत कीजिए। आपके बच्चे भूखे मर जाएंगे।सेठ ने कहा, ‘चाहे जो हो जाए, मैं अपना और परिवार का बलिदान कर दूंगा, पर कीमत नहीं बढ़ाऊंगा।
नैतिकता, मानवीयता का तकाजा है।ग्राहक गिड़गिड़ाने लगा, ‘सेठजी, मेरी लाज रख लो। दो सौ पर ही दो। मैं पत्‍नी से दो सौ के हिसाब से लेकर आया हूं, सौ के भाव से ले जाऊंगा तो वह समङोगी कि मैंने पैसे उड़ा दिए और गेहूं चुरा कर लाया हूं।दूसरा ग्राहक आया। वह अक्खड़ था। उसने कहा, ‘ऐ सेठ, यह क्या अंधेर मचा रखा है, भाव बढ़ाओ वरना ठीक कर दिए जाओगे। सेठ ने जवाब दिया, ‘मैं धमकी से डरने वाला नहीं हूं। तुम मुङो काट डालो, पर मैं भाव नहीं बढ़ाऊंगा। नैतिकता, मानवीयता भी कोई चीज है।एक गरीब आदमी झोला लिये दुकान के सामने खड़ा था। दुकानदार आया और उसे गले लगाने लगा। गरीब आदमी डर से चिल्लाया, ‘अरे, मार डाला! बचाओ! बचाओ!सेठ ने कहा, ‘तू इतना डरता क्यों है?’ गरीब ने कहा, ‘तुम मुङो दबोच जो रहे हो!
मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है।सेठ ने कहा, ‘अरे भाई, मैं तो तुझसे प्यार कर रहा हूं। प्रधानमंत्री ने मानवीयता की अपील की है न!एक दुकान पर ढेर सारे चाय के पैकेट रखे थे। दुकान के सामने लगी भीड़ चिल्ला रही थी, ‘चाय को छिपाओ। हमें इतनी खुली चाय देखने की आदत नहीं है। हमारी आंखें खराब हो जाएंगी।उधर से सेठ चिल्लाया, ‘मैं नैतिकता में विश्वास करता हूं। चाय खुली बेचूंगा और सस्ती बेचूंगा। कालाबाजार बंद हो गया है।एक मध्यमवर्गीय आदमी बाजार से निकला। एक दुकानदार ने उसका हाथ पकड़ लिया। उस आदमी ने कहा, ‘सेठजी, इस तरह बाजार से बेइज्जत क्यों करते हो! मैंने कह तो दिया कि दस तारीख को आपकी उधारी चुका दूंगा। सेठ ने कहा, ‘अरे भैया, पैसे कौन मांगता है, जब मर्जी हो, दे देना।
चलो, दुकान पर चलो।कुछ शक्कर लेते जाओ। दो रुपये किलो।
एक दिन कुछ लोग प्रधानमंत्री के पास यह शिकायत करने गये कि चीजों की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं। प्रधानमंत्री उस समय गाय के गोबर से कुछ प्रयोग कर रहे थे। वे स्वमूत्र और गाय के गोबर से देश की समस्याओं को हल करने में लगे थे। उन्होंने लोगों की बात सुनीं, चिढ़कर कहा, ‘आप लोगों को कीमतों की पड़ी है! देख नहीं रहे हो, मैं कितने बड़े काम में लगा हूं। मैं गोबर में से नैतिक शक्ति पैदा कर रहा हूं। जैसे गोबर गैस वैसे गोबर नैतिकता।
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Source – KalpatruExpress News Papper








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