सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘मेक इन इंडिया’ के सामने सवाल यही है इसके तहत कितनी नौकरियां पैदा होंगी। दरअसल भारत की आधी से अधिक आबादी 25 साल से कम उम्र की है जो निश्चित रूप से भारत के लिए एक बड़ी ताकत है। लेकिन, लाखों लोगों के लिए नौकरी मुहैय्या कराना भी चुनौती है। अब सवाल उठता है कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत लाखों युवाओं के लिए रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा सकता। यदि इतनी बड़ी अर्द्ध-शिक्षित आबादी को नौकरी नहीं मिली तो डर इस बात का है कि कहीं वह रास्ता न भटक जाए। जिसके कारण सामाजिक संघर्ष की लहर पैदा हो सकती है और कुछ युवा नक्सली तक बन सकते हैं। जबकि कुछ युवा धार्मिक कट्टरपंथ का रास्ता अपना सकते हैं। वहीं, बचे हुए अन्य युवाओं में से कुछ अपराध का सहारा ले सकते हैं। इसलिए यह भयावह दु:स्वपन होगा कि इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद भारत को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा।
पूर्वी एशियाई देशों विशेष रूप से चीन को अधिक जनसंख्या का फायदा मिल रहा है। जिसकी वजह से चीन में गरीबी कम हुई है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि वहां शिक्षा हासिल करने के बाद लेबर फोर्स को तेजी से रोजगार उपलब्ध कराए जाते हैं। खासतौर पर बेहतर अवसर के लिए कृषि छोड़ने वालों को उद्योग और सेवाओं के अलावा निर्यात आधारित निर्माण के क्षेत्र में बेहतर नौकरी उपलब्ध कराया जाता है। एक ओर, जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था में आए संकट की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजगार के अवसर कम हुए हैं। ऐसे में भारत को घरेलू स्तर पर नौकरियों की मांग को देखते हुए बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे। इसके लिए सरकार को ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत प्राइवेट इंडस्ट्री और सेवाओं में ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। ताकि आने वाली लेबर फोर्स को नौकरी मिल सके।
दरअसल यह डराने वाला मिथक है कि 1.2 करोड़ लोग प्रत्येक साल लेबर फोर्स में शामिल हो रहे हैं। जिसके लिए 10 लाख रोजगार प्रत्येक महीने और 30 हजार रोजगार के नए अवसर प्रतिदिन उपलब्ध कराने होंगे। भ्रम की ऐसी स्थिति नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) के गलत अनुमानों के कारण पैदा हुआ है। जिसमें बताया गया है कि पिछले एक दशक की पहली छमाही में 6 करोड़ लेबर फोर्स पैदा हुआ है। इतनी बड़ी संख्या में लेबर फोर्स का एक साथ तैयार होना इसके पहले नहीं देखा गया। जिसका मतलब है कि जनसंख्या वृद्धि भारत के आर्थिक विकास को लेकर डूब जाएगी। जो डराने के लिए प्रयोग में आने वाले जुमले का आधुनिक संस्करण है।
वहीं, जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है जो 1.4 फीसदी सलाना है। सच्चाई यह है कि 0 से 6 साल के बीच के बच्चों की जनसंख्या 2011 में 2001 से ज्यादा नहीं हुई जो कि उस समय थी। इसका मतलब यह है कि लेबर फोर्स की आयु धीमी गति से बढ़ रही है। जिससे भारत को जनसंख्या की लिहाज से मिलने वाला लाभ अधिक से अधिक 25 सालों में समाप्त हो जाएगा। इसलिए अहम सवाल यह है कि औद्योगिक और सेवा के क्षेत्र में प्रत्येक साल कितनी नौकरियां पैदा की जाएं। ताकि, एनएसएस ने 2011-12 से 2019-20 के बीच के 8 साल के लिए नौकरी का जो अनुमान लगाया है उसे पूरा किया जा सके। क्योंकि सरकार के कार्यकाल का यह अंतिम वर्ष है।
साल 2004-05 और 2011-12 के बीच जीडीपी का ग्रोथ रेट तेजी से बढ़ा। जिसकी वजह से इंडस्ट्री और सेवा के क्षेत्र में 75 लाख नौकरी के अवसर पैदा हुए। यह स्थिति 1999-2000 से 2004-05 के बीच भी थी। उसी तरह लेबर फोर्स 6.36 करोड़ के हिसाब से बढ़ेगा जो सामान्य रूप से 2011-12 से 2019-20 के बीच सलाना 78 लाख रहेगा जिसको रोजगार उपलब्ध कराना संभव होगा। जब हम लेबर फोर्स के उम्र की तय करते हैं तो उसमें सेकेंडरी और उससे ऊपर के पढ़े-लिखे लोगों की भागीदारी 5 फीसदी है।
भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को लेकर जो भय है उसके लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करने की जरूरत है। सबसे अहम पहलू यह है कि नौकरियों की मांग को देखते हुए ‘मेक इन इंडिया’ के तहत प्रत्येक महीने 10 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। जिसकी तुलना में हम कहीं नहीं हैं जिसे पहले ही पूरा हो जाना चाहिए था। गैर कृषि क्षेत्र में नौकरियों का सृजन किए जाने की जरूरत है खासकर निर्माण के क्षेत्र में जहां तेजी से रोजगार के अवसर विकसित हो रहे हैं। आज के युवा लोग ज्यादा पढ़े लिखे हैं और कृषि के क्षेत्र में काम नहीं करना चाहते हैं। जो वर्तमान में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है और कुल श्रमबल का आधा रोजगार मुहैय्या कराता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि होगी जिससे सामाजिक संघर्ष की लहर पैदा हो सकती है।
लेबर फोर्स में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत विश्व के उन देशों में शामिल है जो पहले से ही सबसे निचले स्तर पर है। इसमें बदलाव लाना होगा और गैर कृषि क्षेत्रों में नौकरी के अवसर उपलब्ध कराना होगा। जिसमें वस्त्र निर्माण या संगठित खुदरा व आधुनिक सेवा क्षेत्र शामिल है, क्योंकि आमतौर पर लड़कियां इन क्षेत्रों में काम करना पसंद करती हैं। जैसा कि सभी दक्षिण पूर्व एशिया और बांग्लादेश में वस्त्र निर्माण के क्षेत्र में हुआ है। ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि माध्यमिक स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वालों में लड़कियों की संख्या बढ़ रही है।
वास्तव में कृषि के क्षेत्र में रोजगार के अवसर में 2 करोड़ के दर से वृद्धि हुई है। वहीं, यूपीए सरकार के समय में गैर कृषि और कृषि के क्षेत्र में रोजगार के अवसर 50 लाख थी जो स्थिति अभी भी बनी हुई है। रोजगार के अवसर सिर्फ लेबर फोर्स में शामिल होने वालों के लिए पैदा किए जाने की जरूरत नहीं है। बल्कि कृषि को छोड़कर निर्माण के क्षेत्र में बेहतर काम करने वालों के लिए भी जरूरी है। क्योंकि भारत के आर्थिक इतिहास में पहली बार कृषि के क्षेत्र में 2004-05 के बाद से रोजगार के अवसरों में कमी आई है। 2014 में चुनाव जीतकर आई नई एनडीए सरकार को इस वास्तविकता से सामना करना पड़ रहा है जैसा कि उन्हें 1999-2000 और 2004-05 के बीच उन्हें करना पड़ा था।
हालांकि सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यदि हमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बुनियादी सुविधा बढ़ाना है तो आवास और ग्रामीण लोक निमार्ण के कार्यों को निरंतर जारी रखना होगा। पिछले एक दशक के अंदर कृषि को छोड़ने वालों को निर्माण के क्षेत्र में समायोजित करना होगा। इसके अलावा इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को नौकरियों के नए अवसर तलाशने होंगे।
लेखक डॉ. संतोष मेहरोत्रा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और योजना आयोग के एक शोध संस्थान के प्रमुख रह चुके हैं।
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